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This Article is From Aug 01, 2016

लोन लिया है तो चुकाना तो पड़ेगा ही : लोकसभा में वित्त मंत्री अरुण जेटली

लोन लिया है तो चुकाना तो पड़ेगा ही : लोकसभा में वित्त मंत्री अरुण जेटली
वित्त मंत्री अरुण जेटली (फाइल फोटो)
नई दिल्‍ली: बैंकों के बढ़ते एनपीए को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर फैली चिंता के बीच वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सोमवार को कहा कि समाज का कोई भी वर्ग हो, यदि वह बैंकों से लोन लेता है तो उसे उस लोन को चुकाना होगा.

उन्होंने साथ ही कहा कि लोन को बट्टे खाते में डालने का मतलब बैंकिंग व्यवस्था को ऐसी स्थिति में धकेलना होगा जहां वह और लोन नहीं दे सकेगी. लोकसभा में कुछ विपक्षी सदस्यों द्वारा शिक्षा ऋण (एजुकेशन लोन) की अदायगी पर एक निश्चित समयावधि तक रोक लगाए जाने और गारंटी प्रदाता को परेशान नहीं करने के प्रावधान की मांग पर वित्त मंत्री ने यह बात कही.

वित्त मंत्री ने ‘प्रतिभूति हितों का प्रवर्तन और ऋणवसूली विधि तथा प्रकीर्ण उपबंध (संशोधन) विधेयक, 2016’ पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा, ‘‘ऋणों को बट्टे खाते में डालने का मतलब बैंकिंग व्यवस्था को ऐसी स्थिति में धकेलना होगा जहां वह और ऋण नहीं दे सकती.’’ मंत्री के जवाब के बाद सदन ने ध्वनिमत से विधेयक को पारित कर दिया.

इससे पूर्व वित्त मंत्री ने विधेयक को चर्चा के लिए पेश करते हुए कहा था कि ‘‘मौजूदा विधेयक प्रक्रिया को सरल करता है जिससे ऋण वसूली अधिकरण (डीआरटी) द्वारा बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों के लंबित मामलों का त्वरित निस्तारण किया जाएगा.’’ जेटली ने कहा कि ऋण वसूली अधिकरणों (डीआरटी) में पांच लाख करोड़ रुपये से अधिक के करीब 70,000 मामले लंबित हैं और प्रस्तावित संशोधन भरपाई की प्रक्रिया का त्वरित निस्तारण सुनिश्चित करेंगे. जेटली ने कहा कि विधेयक का उद्देश्य देश में कारोबार करना आसान बनाना है.

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने इस साल बजट में परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (एआरसी) के संबंध में कई सुधारों की घोषणा की थी.’’ इस विधेयक को चार विधेयकों - वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम, 2002, बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को शोध ऋण वसूली अधिनियम, 1993, भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 और निक्षेपागार अधिनियम, 1996 में संशोधन करके लाया गया है.

जेटली ने शिक्षा ऋण के संबंध में कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा रिण व्यवस्था काफी सफल रही है लेकिन भारतीय संदर्भ में शिक्षा ऋण क्षेत्र का एनपीए काफी अधिक है. इस विधेयक को पिछले सत्र में सदन में पेश किया गया था और संसद की संयुक्त समिति को अध्ययन के लिए भेजा गया था. विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए जेटली ने कहा कि यह विधेयक संसदीय समिति की प्रभावशीलता का श्रेष्ठ उदाहरण है जहां मई में पेश होने के बाद इसे संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया था.

जुलाई में समिति ने सर्वसम्मत रिपोर्ट सौंप दी और उसके बाद आज अगस्त महीने के पहले ही दिन यह विधेयक चर्चा के लिए सदन में आ गया. उन्होंने एनपीए के संबंध में कहा कि यह एक अलग किस्म का मामला होता है. कंपनियों द्वारा बैंकों से लोन लेने में कोई बुराई नहीं है. बैंकों का ऋण देना अच्छी बात है जो कि अर्थव्यवस्था में वृद्धि का संकेत है लेकिन अर्थव्यवस्था को सुचारू बनाए रखने के लिए इन ऋणों की अदायगी भी उतनी ही जरूरी है.

जानबूझकर बकाया अदा नहीं करने वालों के अलावा कुछ मामले ऐसे होते हैं जहां कंपनियों को ऋण पूरी तरह सही तरीके से दिए गए लेकिन अर्थव्यवस्था के विपरीत प्रभावों के चलते उस पूरे सेक्टर पर ही मुसीबत आ पड़ी. जैसा कि विश्वस्तरीय आर्थिक मंदी के समय हुआ. जेटली ने कहा कि ऐसी स्थिति में यह देखना पड़ता है कि किस प्रकार राष्ट्रहित में संबंधित उद्योग सेक्टर को चालू हालत में बनाये रखा जाए क्योंकि बहुत से लोगों का उससे रोजगार जुड़ा होता है. उन्होंने कहा कि आज इसी प्रकार इस्पात, ढांचागत और उर्जा सेक्टर विभिन्न कारणों से दबाव में हैं.

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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