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This Article is From Oct 17, 2016

'घर में मौजूद अखिलेश यादव समर्थकों' की मुलायम सिंह को चेतावनी, 'इतिहास किसी को नहीं बख्शता'

'घर में मौजूद अखिलेश यादव समर्थकों' की मुलायम सिंह को चेतावनी, 'इतिहास किसी को नहीं बख्शता'
लखनऊ: चुनावी माहौल से पहले उभरते पारिवारिक कलह के बीच समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव को चेताया गया है - 'इतिहास बेहद निष्ठुर होता है... वह किसी को नहीं बख्शता...'

76-वर्षीय दिग्गज समाजवादी नेता के चचेरे भाई रामगोपाल यादव ने उन्हें लिखे एक खत में चेतावनी दी है कि अगर पूरे उत्तर प्रदेश की कुल 403 में से समाजवादी पार्टी को मिलने वाली सीटें इस चुनाव में 100 से कम रह गईं, तो 'सिर्फ आप ही को ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा...'

इन दिनों में मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री और अपने पुत्र अखिलेश यादव तथा अपने छोटे भाई व राज्य में कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव के बीच चल रही 'जंग' को सुलझाने में लगे हुए हैं. अब तक उन्होंने अपने भाई की तरफ झुकाव के संकेत दिए हैं, और पिछले हफ्ते भी वह इस बात को लेकर गोलमोल बात करते सुनाई दिए कि अगले चुनाव में अखिलेश यादव ही मुख्यमंत्री के रूप में पार्टी की ओर पेश किए जाने वाला चेहरा होंगे या नहीं.

लेकिन अपने पिता का 'साथ' न हासिल कर पाने वाले अखिलेश यादव की तरफदारी रामगोपाल यादव जमकर कर रहे हैं, जो लंबे समय से शिवपाल यादव की मुखालफत करते रहे हैं. धीरे-धीरे रामगोपाल मुख्यमंत्री के करीबी साथियों में शुमार हो गए, जबकि मुलायम के चार भाइयों में से शिवपाल उनके सबसे करीबी बने हुए हैं.

कुछ ही हफ्ते पहले शिवपाल यादव ने मुख्यमंत्री की साफ-साफ जताई आपत्ति को दरकिनार करते हुए एक पूर्व अपराधी के नेतृत्व में चलने वाली एक छोटी राजनैतिक पार्टी का विलय समाजवादी पार्टी में करवाया था, क्योंकि उस नेता की मुस्लिमों में खासी पकड़ है, और राज्य की 18 फीसदी आबादी मुस्लिम ही है.

लेकिन रामगोपाल यादव ने अपने खत में लिखा है, "अखिलेश निःसंदेह इस समय राज्य के सबसे लोकप्रिय नेता हैं, और उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश ने अभूतपूर्व विकास परियोजनाओं को फलीभूत होते देखा है... यदि पार्टी को चुनाव में जीत हासिल करनी है, अखिलेश को मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करना ही चाहिए..."

सितंबर के मध्य में मुलायम सिंह यादव ने पार्टी की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष के रूप में अखिलेश को हटाकर शिवपाल को बिठाया था. इस कदम से अब विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों के चयन का अधिकारी शिवपाल को मिल गया है. इस कदम से हाशिये पर सरका दिए गए अखिलेश यादव ने अपने चाचा से महत्वपूर्ण मंत्रालय वापस ले लिए, जिन्होंने इसके बाद सरकार और पार्टी पदों से इस्तीफा दे दिया.

फिर मुलायम सिंह यादव की कोशिशों से 'संधि' हो गई. शिवपाल मंत्री के रूप में वापस आ गए, और अखिलेश को आश्वासन दिया गया कि चुनावी प्रत्याशियों के चयन में उनकी अहम भूमिका रहेगी.

रविवार को शिवपाल यादव ने राजनीति में रहने के लिए 'बेहद ज़रूरी कला' का प्रदर्शन करते हुए इस तरह अखिलेश को समर्थन देने का ऐलान किया, जिससे ये संकेत भी साफ थे कि समर्थन आसानी से नहीं मिलेगा. उन्होंने कहा, "अगर पार्टी 2017 में जीत हासिल करती है, तो मैं खुद मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश के नाम का प्रस्ताव रखूंगा..." हालांकि जो वह कह रहे थे, वह अखिलेश को समर्थन के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन इसका अर्थ (कम से कम दूसरा गुट तो इसे इसी तरह देख रहा है) यह संकेत भी हो सकता है - शिवपाल को भरोसा नहीं है कि चुनाव प्रचार के लिए उनके भतीजे को मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया जाएगा.

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