नई दिल्ली:
हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड यानी एचएएल ने एक और मील का पत्थर हासिल किया. बेंगलुरु में एचएएल ने देश में बने लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर यानी एलयूएच का तकनीकी उड़ाऩ भरी. हेलीकॉप्टर ने करीब 15 मिनट तक उड़ान भरी. ये उड़ान पूरी तरह से सफल रही. ये उड़ान एलयूएच के प्रोटोटाइप के परीक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण शुरुआत है.
एचएएल ने पहले एडवांस लाइट हेलीकॉप्टर ध्रुव फिर लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर रुद्र बनाया और अब लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर बना रही है. एचएएल को उम्मीद है कि वायुसेना और थल सेना से जब पुराने पड़ चुके चीता और चेतक जैसे हेलीकॉप्टर हटाए जाएंगे तो उसकी जगह एलयूएच ले सकता है. इतना ही नहीं, एलयूएच न केवल घरेलू बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बड़े बजार पर कब्जा कर सकता है.
तीनों सेनाओं में 600 के करीब चीता और चेतक हेलीकॉप्टर हैं. इनमें से ज्यादातर का जीवन समाप्त होने को है और किसी तरह उन्हें अपग्रेड कर काम चलाया जा रहा है. छह यात्रियों और दो पायलट के साथ एलयूएच 3150 किलोग्राम भार तक उड़ान भर सकता है.
इस हेलीकॉप्टर को इस तरह डिजाइऩ किया गया है कि इसका इस्तेमाल इस्तेमाल टोह लेने, परिवहन, माल ढ़ुलाई और बचाव कार्य जैसे कामों में किया जा सकता है. इस हेलीकॉप्टर में ऐसी क्षमता है कि वो हिमालय की ऊंचाई पर उड़ान भर सकता है. करीब आठ साल पहले इस हेलीकॉप्टर के निमार्ण का काम शुरू किया गया था लेकिन जमीनी परीक्षण होने में ही सात साल लग गए. अब कहा जा रहा है कि 2018 तक यह पूरी तरह से ऑपरेशनल हो पायेगा, उसके बाद ही सेना में शामिल हो पाएगा.
एचएएल ने पहले एडवांस लाइट हेलीकॉप्टर ध्रुव फिर लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर रुद्र बनाया और अब लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर बना रही है. एचएएल को उम्मीद है कि वायुसेना और थल सेना से जब पुराने पड़ चुके चीता और चेतक जैसे हेलीकॉप्टर हटाए जाएंगे तो उसकी जगह एलयूएच ले सकता है. इतना ही नहीं, एलयूएच न केवल घरेलू बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बड़े बजार पर कब्जा कर सकता है.
तीनों सेनाओं में 600 के करीब चीता और चेतक हेलीकॉप्टर हैं. इनमें से ज्यादातर का जीवन समाप्त होने को है और किसी तरह उन्हें अपग्रेड कर काम चलाया जा रहा है. छह यात्रियों और दो पायलट के साथ एलयूएच 3150 किलोग्राम भार तक उड़ान भर सकता है.
इस हेलीकॉप्टर को इस तरह डिजाइऩ किया गया है कि इसका इस्तेमाल इस्तेमाल टोह लेने, परिवहन, माल ढ़ुलाई और बचाव कार्य जैसे कामों में किया जा सकता है. इस हेलीकॉप्टर में ऐसी क्षमता है कि वो हिमालय की ऊंचाई पर उड़ान भर सकता है. करीब आठ साल पहले इस हेलीकॉप्टर के निमार्ण का काम शुरू किया गया था लेकिन जमीनी परीक्षण होने में ही सात साल लग गए. अब कहा जा रहा है कि 2018 तक यह पूरी तरह से ऑपरेशनल हो पायेगा, उसके बाद ही सेना में शामिल हो पाएगा.
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