भारत की आजादी स्‍पेशल : गूगल ने नेहरू के ऐतिहासिक भाषण पर पेश किया डूडल

भारत की आजादी स्‍पेशल : गूगल ने नेहरू के ऐतिहासिक भाषण पर पेश किया डूडल

आजादी को समर्पित गूगल का डूडल

खास बातें

  • गूगल ने आजादी की 70 वीं वर्षगांठ का मनाया जश्‍न
  • पंडित नेहरू का वह भाषण 20 सदी के सर्वश्रेष्‍ठ भाषणों में शुमार
  • 14-15 अगस्‍त 1947 की मध्‍य रात्रि को दिया था भाषण
नई दिल्‍ली:

देश की आजादी की 70वीं वर्षगांठ के मौके पर गूगल प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के ऐतिहासिक 'नियति से साक्षात्‍कार' भाषण का डूडल बनाकर अपने तरीके से इस जश्‍न को मना रहा है. 14-15 अगस्‍त 1947 की मध्‍य रात्रि को पंडित नेहरू का संविधान सभा में दिया गया भाषण 20वीं सदी के सर्वश्रेष्‍ठ भाषणों में शुमार किया जाता है. एक ऐसा संबोधन जिसमें सैकड़ों वर्षों की गुलामी से गुजरकर अहिंसक आंदोलन के जरिये मिली आजादी की अनुगूंज सुनाई देती है. यहां पेश है इसका अंश...

पंडित नेहरू का नियति से साक्षात्‍कार भाषण...
बहुत साल पहले हमने नियति से एक वादा किया था और अब उस वादे का पूरी तरह तो नहीं लेकिन काफी हद तक पूरा करने का वक्‍त आ गया है. आज जैसे ही घड़ी की सुईयां मध्‍यरात्रि की घोषणा करेंगी, जब सारी दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और आजादी की करवट के साथ उठेगा.

यह एक ऐसा क्षण है, जो इतिहास में यदा-कदा आता है, जब हम पुराने से नए में कदम रखते हैं, जब एक युग का अंत होता है, और जब एक राष्ट्र की लंबे समय से दमित आत्‍मा नई आवाज पाती है. यकीकन इस विशिष्‍ट क्षण में हम भारत और उसके लोगों और उससे भी बढ़कर मानवता के हित के लिए सेवा-अर्पण करने की शपथ लें.

इतिहास की शुरुआत से ही भारत ने अपनी अनंत खोज आरंभ की. अनगिनत सदियां उसके उद्यम, अपार सफलताओं और असफलताओं से भरी हैं. अपने सौभाग्‍य और दुर्भाग्‍य के दिनों में उसने इस खोज की दृष्टि को आंखों से ओझल नहीं होने दिया और न ही उन आदर्शों को ही भुलाया, जिनसे उसे शक्ति प्राप्त हुई. हम आज दुर्भाग्य की एक अवधि पूरी करते हैं. आज भारत ने अपने आप को फिर पहचाना है.

आज हम जिस उपलब्धि का जश्‍न मना रहे हैं, वह हमारी राह देख रही महान विजयों और उपलब्धियों की दिशा में महज एक कदम है. इस अवसर को ग्रहण करने और भविष्य की चुनौती स्वीकार करने के लिए क्या हमारे अंदर पर्याप्त साहस और अनिवार्य योग्यता है?

स्वतंत्रता और शक्ति जिम्मेदारी भी लाते हैं. वह दायित्‍व संप्रभु भारत के लोगों का प्रतिनिधित्‍व करने वाली इस सभा में निहित है. स्वतंत्रता के जन्म से पहले हमने प्रसव की सारी पीड़ाएं सहन की हैं और हमारे दिल उनकी दुखद स्‍मृतियों से भारी हैं. कुछ पीड़ाएं अभी भी मौजूद हैं. बावजूद इसके स्याह अतीत अब बीत चुका है और सुनहरा भविष्‍य हमारा आह्वान कर रहा है.

अब हमारा भविष्य आराम करने और दम लेने के लिए नहीं है, बल्कि उन प्रतिज्ञाओं को पूरा करने के निरंतर प्रयत्न से हैं जिनकी हमने बारंबार शपथ ली है और आज भी ऐसा ही कर रहे हैं ताकि हम उन कामों को पूरा कर सकें. भारत की सेवा का अर्थ करोड़ों पीडि़त जनों की सेवा है. इसका आशय गरीबी, अज्ञानता, बीमारियों और अवसर की असमानता के खात्‍मे से है.

हमारी पीढ़ी के सबसे महानतम व्‍यक्ति की आकांक्षा हर व्‍यक्ति के आंख के हर आंसू को पोछने की रही है. ऐसा करना हमारी क्षमता से बाहर हो सकता है लेकिन जब तक आंसू और पीड़ा है, तब तक हमारा काम पूरा नहीं होगा.

इसलिए हमें सपनों को धरातल पर उतारने के लिए कठोर से कठोरतम परिश्रम करना है. ये सपने भले ही भारत के हैं लेकिन ये स्वप्न पूरी दुनिया के भी हैं क्योंकि आज सभी राष्ट्र और लोग आपस में एक-दूसरे से इस तरह गुंथे हुए हैं कि कोई भी एकदम अलग होकर रहने की कल्‍पना नहीं कर सकता...जय हिंद.


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