प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सिफारिश की है कि जिन लोगों के बच्चों की उम्र छह से 14 साल के बीच है, वे स्थानीय निकाय और पंचायत के चुनाव तब ही लड़ पाएंगे अगर उनके बच्चे स्कूल जाते हों.
एनसीपीसीआर ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्रों में उनसे स्थानीय निकायों तथा पंचायती राज संस्थानों के चुनाव नियमों में संशोधन करने की सिफारिश की है, ताकि बच्चों की स्कूल की पढ़ाई छोड़ने पर रोक लगे और शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अनुरूप उनकी उपस्थिति बेहतर हो.
पत्र में कहा गया, 'आयोग इसलिए सिफारिश करता है कि सभी राज्य शहरी स्थानीय निकायों एवं पंचायती राज संस्थानों के अपने निर्वाचन संबंधी नियमों में संशोधन कर सकते हैं कि छह से 14 वर्ष की उम्र के बच्चों के उम्मीदवार माता पिता स्कूल के प्राचार्य से एक हस्ताक्षर युक्त प्रमाणपत्र हासिल करें.'
इसमें कहा गया कि इस तरह की पहल के दो मकसद हैं. पत्र के अनुसार, 'इससे स्कूलों के साथ चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों का संपर्क बढ़ेगा, जिससे वे शिक्षा संस्थानों के सामने मौजूद समस्याओं से वाकिफ होंगे.' इसमें कहा गया, 'साथ ही इससे संविधान द्वारा सुनिश्चित किए गए हर बच्चे के निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के मौलिक अधिकार के संबंध में जागरूकता एवं गंभीरता बढ़ेगी.'
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
एनसीपीसीआर ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्रों में उनसे स्थानीय निकायों तथा पंचायती राज संस्थानों के चुनाव नियमों में संशोधन करने की सिफारिश की है, ताकि बच्चों की स्कूल की पढ़ाई छोड़ने पर रोक लगे और शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अनुरूप उनकी उपस्थिति बेहतर हो.
पत्र में कहा गया, 'आयोग इसलिए सिफारिश करता है कि सभी राज्य शहरी स्थानीय निकायों एवं पंचायती राज संस्थानों के अपने निर्वाचन संबंधी नियमों में संशोधन कर सकते हैं कि छह से 14 वर्ष की उम्र के बच्चों के उम्मीदवार माता पिता स्कूल के प्राचार्य से एक हस्ताक्षर युक्त प्रमाणपत्र हासिल करें.'
इसमें कहा गया कि इस तरह की पहल के दो मकसद हैं. पत्र के अनुसार, 'इससे स्कूलों के साथ चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों का संपर्क बढ़ेगा, जिससे वे शिक्षा संस्थानों के सामने मौजूद समस्याओं से वाकिफ होंगे.' इसमें कहा गया, 'साथ ही इससे संविधान द्वारा सुनिश्चित किए गए हर बच्चे के निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के मौलिक अधिकार के संबंध में जागरूकता एवं गंभीरता बढ़ेगी.'
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