ईवीएम जैसी मशीन की टेंपरिंग का लाइव डेमो दिखाने के लिए दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया
नई दिल्ली:
आम आदमी पार्टी ने विधानसभा के विशेष सत्र को बिल्कुल आम सत्र में बदल डाला है. दो साल में वे 5 बार विशेष सत्र बुला चुकी है. इसको लेकर जानकार सवाल खड़े कर रहे हैं. मंगलवार को आम आदमी पार्टी सरकार ने ईवीएम पर एक दिन का विशेष सत्र बुला लिया. दो साल में यह पांचवां विशेष सत्र रहा. इसके पहले इसी साल 17-18 जनवरी को विशेष सत्र रखा गया. एक दिन निगम पर चर्चा हुई, दूसरे दिन रोहित वेमुला की ख़ुदकुशी पर. 2016 में केजरीवाल सरकार ने तीन विशेष सत्र रख दिए. 9 जून को निगम के कामकाज पर चर्चा की. 3 अगस्त को महिला सुरक्षा को मुद्दा बनाया और 9 सितंबर को दिल्ली पुलिस के खिलाफ प्रस्ताव पास किया.
दिल्ली विधानसभा और संसद भवन में 40 साल तक सचिव रह चुके एसके शर्मा कहते हैं, विशेष सत्र सिर्फ इमरजेंसी के लिए होते हैं. एसके शर्मा (पूर्व सचिव, दिल्ली विधानसभा) ने कहा कि आपातकालीन स्थिति में जैसे कोई भूकंप आ गया या कुछ और हो गया तो कोई तब विपक्ष को विश्वास में लेने के लिए आपातकालीन सत्र बुलाया जाता है. इसका नाम विशेष सत्र रखकर गलत नाम दिया गया. केजरीवाल से पहले के मुख्यमंत्रियों में विशेष सत्र को लेकर ऐसी कोई बेताबी नहीं दिखती.
दिल्ली की गद्दी पर 15 साल तक सत्ता संभालने वाली शीला दीक्षित ने महज तीन विशेष सत्र बुलाए. शीला दीक्षित ने पहला दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र तब बुलाया जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया कि दिल्ली में कोई भी नॉन CNG गाड़ियां नहीं चलेंगी. इस स्थिति से निपटने के लिए विपक्ष को भरोसे में लेकर सुप्रीम कोर्ट से वक्त मांगने का फैसला लिया गया.
दूसरा विधानसभा का विशेष सत्र सुप्रीम कोर्ट के एक और फैसले पर बुलाया गया, जिसमें कहा गया कि दिल्ली के लघु उद्योग को रिहायशी इलाकों से तुरंत बाहर किया जाए. इससे लाखो लोगों की रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया था. विशेषसत्र बुलाकर इसमें भी सुप्रीम कोर्ट से वक्त मांगने का प्रस्ताव पास किया गया.
तीसरा विधानसभा का विशेष सत्र बीजेपी की केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार से कहा कि पूर्ण राज्य का दर्जा का प्रस्ताव पास करके भेजे. उस पर विशेषसत्र बुलाकर प्रस्ताव पास करके भेजा गया था. दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा बताते हैं कि 20 साल में बीजेपी और कांग्रेस के शासन में तीन विशेषसत्र बुलाए गए थे. बाकी संविधान में उल्लेख है कि बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र को बुलाया जाता है. जब आपात स्थिति होती है तभी विशेषसत्र बुलाया जाना चाहिए.
आजकल हर राजनीतिक पार्टी की कोशिश रहती है कि संवैधानिक परंपरा और संस्थाओं की इस तरह से आलोचना की जाए ताकि उनकी बात मीडिया की सुर्खियां बन सके, लेकिन दिल्ली सरकार को ये जरूर सोचना चाहिए कि बात बात पर इसी तरह विशेष सत्र बुलाते रहने पर सरकार के कामकाज पर तो सवाल उठेगा ही.
दिल्ली विधानसभा और संसद भवन में 40 साल तक सचिव रह चुके एसके शर्मा कहते हैं, विशेष सत्र सिर्फ इमरजेंसी के लिए होते हैं. एसके शर्मा (पूर्व सचिव, दिल्ली विधानसभा) ने कहा कि आपातकालीन स्थिति में जैसे कोई भूकंप आ गया या कुछ और हो गया तो कोई तब विपक्ष को विश्वास में लेने के लिए आपातकालीन सत्र बुलाया जाता है. इसका नाम विशेष सत्र रखकर गलत नाम दिया गया. केजरीवाल से पहले के मुख्यमंत्रियों में विशेष सत्र को लेकर ऐसी कोई बेताबी नहीं दिखती.
दिल्ली की गद्दी पर 15 साल तक सत्ता संभालने वाली शीला दीक्षित ने महज तीन विशेष सत्र बुलाए. शीला दीक्षित ने पहला दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र तब बुलाया जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया कि दिल्ली में कोई भी नॉन CNG गाड़ियां नहीं चलेंगी. इस स्थिति से निपटने के लिए विपक्ष को भरोसे में लेकर सुप्रीम कोर्ट से वक्त मांगने का फैसला लिया गया.
दूसरा विधानसभा का विशेष सत्र सुप्रीम कोर्ट के एक और फैसले पर बुलाया गया, जिसमें कहा गया कि दिल्ली के लघु उद्योग को रिहायशी इलाकों से तुरंत बाहर किया जाए. इससे लाखो लोगों की रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया था. विशेषसत्र बुलाकर इसमें भी सुप्रीम कोर्ट से वक्त मांगने का प्रस्ताव पास किया गया.
तीसरा विधानसभा का विशेष सत्र बीजेपी की केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार से कहा कि पूर्ण राज्य का दर्जा का प्रस्ताव पास करके भेजे. उस पर विशेषसत्र बुलाकर प्रस्ताव पास करके भेजा गया था. दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा बताते हैं कि 20 साल में बीजेपी और कांग्रेस के शासन में तीन विशेषसत्र बुलाए गए थे. बाकी संविधान में उल्लेख है कि बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र को बुलाया जाता है. जब आपात स्थिति होती है तभी विशेषसत्र बुलाया जाना चाहिए.
आजकल हर राजनीतिक पार्टी की कोशिश रहती है कि संवैधानिक परंपरा और संस्थाओं की इस तरह से आलोचना की जाए ताकि उनकी बात मीडिया की सुर्खियां बन सके, लेकिन दिल्ली सरकार को ये जरूर सोचना चाहिए कि बात बात पर इसी तरह विशेष सत्र बुलाते रहने पर सरकार के कामकाज पर तो सवाल उठेगा ही.
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