
राजेंद्र कुमार (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
क्या मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खास अफ़सर पूर्व प्रधान सचिव रहे राजेंद्र कुमार सिविल सेवा से अब VRS यानी स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेकर राजनीति में जा सकते हैं? ये सवाल इसलिए उठा क्योंकि 4 जनवरी को राजेंद्र कुमार ने दिल्ली के मुख्य सचिव को चिट्ठी लिखकर VRS मांगते हुए हुए आरोप लगाया कि पूछताछ के दौरान लगातार दबाव बनाकर कहा गया कि अगर वह सीएम केजरीवाल को इस मामले में फंसा देंगे तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा.
इसके बाद गुरुवार सुबह मीडिया के सामने आकर उन्होंने कहा कि अब सरकार नहीं बल्कि दूसरे तरीकों से वे लोगों की सेवा करना जारी रखेंगे. ऐसे में एनडीटीवी ने पूछा कि राजनीति में भी लोगों की सेवा करने का तरीका है तो क्या आप राजनीति में आएंगे तो राजेंद्र कुमार बोले. बहुत तरीके होते हैं पब्लिक सर्विस के और उसमें से राजनीति भी एक है, हालांकि अभी मैंने इसके लिए सोचा नहीं है, लेकिन जो भी सबसे अच्छे तरीका होगा लोगों की सेवा करने का उसे मैं जरूर अपनाऊंगा.
सवाल इससे आगे बढ़कर यह भी उठता है कि अगर राजनीति में आते हैं तो क्या वह आम आदमी पार्टी का दामन थामेंगे? केजरीवाल के करीबी होने के चलते यह चर्चा जोरों पर है. साथ में ध्यान रखने वाली बात यह भी है कि बहुत ज़ाहिर है कि अगर राजेंद्र कुमार आम आदमी पार्टी में आना चाहें तो पार्टी के दरवाज़े उनके लिए खुले हैं.
केजरीवाल आज भी राजेंद्र कुमार को एक ईमानदार अफसर मानते हैं और आलम यह है कि बीते 6 महीने से जबसे राजेंद्र कुमार गिरफ्तार हुए तब से लेकर आज तक किसी दूसरे अफ़सर को उन्होंने अपना सचिव नियुक्त नहीं किया है, लेकिन राजेंद्र कुमार का अगला कदम सरकार से VRS मिलने के बाद ही तय हो सकता है क्योंकि जब तक उनकी VRS नहीं मिल जाती तब तक वह एक निलंबित अफ़सर हैं, जो सर्विस के नियम से बंधा है.
राजेंद्र कुमार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के करीबी माने अधिकारी माने जाते हैं. राजेंद्र कुमार वह पहले अफ़सर थे, जिनको केजरीवाल ने पहली बार सरकार बनाते हुए अपना सचिव नियुक्त किया था. पहली बार दिसम्बर 2013 में दिल्ली में कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने के बाद केजरीवाल ने राजेंद्र कुमार को अपना प्रधान सचिव चुना था. उसके बाद केजरीवाल की सरकार जाने के बाद जब दोबारा सत्ता में आई तब भी राजेंद्र कुमार ही उनके प्रधान सचिन बने.
दिसंबर 2015 में सीबीआई ने उनके खिलाफ कथित भ्रष्टाचार के मामले में पहले उनके दिल्ली सचिवालय के दफ़्तर पर छापा मारा और फिर जुलाई 2016 में गिरफ्तार करना लिया था. राजेंद्र कुमार पर अदालत में आरोप पत्र दाखिल हो चुका है और फिलहाल वो निलंबित हैं और अब उनके सामने ज़्यादा विकल्प भी नहीं बचे हैं.
इसके बाद गुरुवार सुबह मीडिया के सामने आकर उन्होंने कहा कि अब सरकार नहीं बल्कि दूसरे तरीकों से वे लोगों की सेवा करना जारी रखेंगे. ऐसे में एनडीटीवी ने पूछा कि राजनीति में भी लोगों की सेवा करने का तरीका है तो क्या आप राजनीति में आएंगे तो राजेंद्र कुमार बोले. बहुत तरीके होते हैं पब्लिक सर्विस के और उसमें से राजनीति भी एक है, हालांकि अभी मैंने इसके लिए सोचा नहीं है, लेकिन जो भी सबसे अच्छे तरीका होगा लोगों की सेवा करने का उसे मैं जरूर अपनाऊंगा.
सवाल इससे आगे बढ़कर यह भी उठता है कि अगर राजनीति में आते हैं तो क्या वह आम आदमी पार्टी का दामन थामेंगे? केजरीवाल के करीबी होने के चलते यह चर्चा जोरों पर है. साथ में ध्यान रखने वाली बात यह भी है कि बहुत ज़ाहिर है कि अगर राजेंद्र कुमार आम आदमी पार्टी में आना चाहें तो पार्टी के दरवाज़े उनके लिए खुले हैं.
केजरीवाल आज भी राजेंद्र कुमार को एक ईमानदार अफसर मानते हैं और आलम यह है कि बीते 6 महीने से जबसे राजेंद्र कुमार गिरफ्तार हुए तब से लेकर आज तक किसी दूसरे अफ़सर को उन्होंने अपना सचिव नियुक्त नहीं किया है, लेकिन राजेंद्र कुमार का अगला कदम सरकार से VRS मिलने के बाद ही तय हो सकता है क्योंकि जब तक उनकी VRS नहीं मिल जाती तब तक वह एक निलंबित अफ़सर हैं, जो सर्विस के नियम से बंधा है.
राजेंद्र कुमार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के करीबी माने अधिकारी माने जाते हैं. राजेंद्र कुमार वह पहले अफ़सर थे, जिनको केजरीवाल ने पहली बार सरकार बनाते हुए अपना सचिव नियुक्त किया था. पहली बार दिसम्बर 2013 में दिल्ली में कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने के बाद केजरीवाल ने राजेंद्र कुमार को अपना प्रधान सचिव चुना था. उसके बाद केजरीवाल की सरकार जाने के बाद जब दोबारा सत्ता में आई तब भी राजेंद्र कुमार ही उनके प्रधान सचिन बने.
दिसंबर 2015 में सीबीआई ने उनके खिलाफ कथित भ्रष्टाचार के मामले में पहले उनके दिल्ली सचिवालय के दफ़्तर पर छापा मारा और फिर जुलाई 2016 में गिरफ्तार करना लिया था. राजेंद्र कुमार पर अदालत में आरोप पत्र दाखिल हो चुका है और फिलहाल वो निलंबित हैं और अब उनके सामने ज़्यादा विकल्प भी नहीं बचे हैं.
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