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This Article is From Mar 01, 2017

नोटबंदी के बाद अब जुबान-बंदी और सोच-बंदी चाहती है मोदी सरकार : कांग्रेस

नोटबंदी के बाद अब जुबान-बंदी और सोच-बंदी चाहती है मोदी सरकार : कांग्रेस
कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला (फाइल फोटो)
नई दिल्‍ली: एक शहीद की बेटी को ‘बलात्कार’ की धमकियां मिलने के बाद कांग्रेस ने मंगलवार को कहा कि नोटबंदी के बाद अब नरेंद्र मोदी सरकार जुबान-बंदी और सोच-बंदी भी कराना चाहती है ताकि लोग स्वतंत्र होकर सोच और बोल नहीं सकें. कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने थलसेना के एक शहीद कैप्टन की बेटी गुरमेहर कौर की ओर से आरएसएस की छात्र इकाई एबीवीपी के खिलाफ चलाए गए अभियान के बाद उस पर हुए जहरीले हमलों की बौछार पर यह टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि देश की संस्कृति और परंपरा हिसाब चुकता करने के लिए ऐसे तरीकों को स्वीकार नहीं करती. उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार से असहमत होने वालों के लिए धमकी की भाषा और गालियों का इस्तेमाल भी स्वीकार नहीं किया जा सकता. भाजपा पर हमला बोलते हुए सुरजेवाला ने कहा कि सर्जिकल स्ट्राइकों की कसमें खाने वाले और हमारे सैनिकों की शहादत का चुनावों में इस्तेमाल करने का एक मौका नहीं गंवाने वाली पार्टी 20 साल की एक छात्रा को मिली बलात्कार की धमकी का समर्थन करती है.

कांग्रेस नेता ने कहा कि यूनिवर्सिटी और कॉलेज शिक्षकों की पिटाई, छात्रों के खिलाफ हिंसा की संस्कृति को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. इस बीच, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी ने कहा कि इन दिनों छात्र आंदोलन ‘स्वत: स्फूर्त’ न होकर ‘पूर्व नियोजित’ होते हैं. देश भर में कॉलेजों में बिगड़ते माहौल पर चिंता जताते हुए द्विवेदी ने कहा कि यह सिर्फ अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल नहीं है बल्कि इससे कहीं गंभीर मुद्दा आने वाली पीढ़ियों का भविष्य है.

कांग्रेस महासचिव ने कहा, ‘आज देश में शैक्षिक संस्थाओं का माहौल वैसे ही दूषित किया जा रहा है, जैसे समाज का... समाज को जातिगत एवं सांप्रदायिक आधारों पर बांटा जा रहा है.’ उन्होंने कहा, ‘यह सिर्फ अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल नहीं है. यह शैक्षणिक संस्थाओं में शैक्षणिक माहौल का और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के साथ-साथ देश के व्यापक हित का सवाल है, जिसे दिमाग में रखा जाना चाहिए.’

द्विवेदी ने कहा कि इन दिनों राजनीतिक फायदे के लिए मुद्दे उठाए जाते हैं. उन्होंने कहा, ‘इन दिनों समस्याएं सुलझाने के लिए मुद्दे नहीं उठाए जाते. इनकी अब पहले योजना बनाई जाती है, फिर इस पर अमल किया जाता है. अब किसी मुद्दे को उठाने के लिए साजिश रची जाती है और मुद्दे के राजनीतिकरण के लिए पहले ही योजनाएं बनाई जाती हैं. इससे टकराव पैदा होता है.’

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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