यह ख़बर 03 मार्च, 2014 को प्रकाशित हुई थी

अभिज्ञान का प्वाइंट : बिहार के बदलते समीकरण

नई दिल्ली:

यह बात सियासत में बहुत लंबे समय से कही जाती रही है कि यूपी और बिहार से चलकर निकलता है रास्ता दिल्ली का… किसी और की तरह नरेंद्र मोदी को भी यह बात बखूबी पता है। यह भी साफ है कि बीजेपी को अब सबसे ज्यादा उम्मीदें, राजस्थान और मध्य प्रदेश के अलावा यूपी और बिहार से ही है।

पासवान का साथ और मुजफ्फरपुर में रैली... मोदी की एक नई बहस छेड़ने की कोशिश भी है। यह बहस उनके सेकुलरिज्म की छवि से जुड़ी हुई है। इसीलिए नरेंद्र मोदी ने कहा कि विरोधियों की राजनीति मोदी रोको पर टिकी हुई है और चुनाव आते ही थर्ड फ्रंट खड़ा हो जाता है। वहीं 12 साल पहले गुजरात दंगों पर एनडीए का साथ छोड़ने वाले पासवान भी मोदी की तारीफों के पुल बांधते दिखे।

इन सबके बीच कांग्रेस की चिंता यह है कि जब उसे अपना गठबंधन बढ़ाने की जरूरत है, बाकी नेता साथ छोड़कर जा रहे हैं। बिहार में कांग्रेस की हालत इतनी खराब है कि वह अपने पुराने साथी लालू के साथ भी गठबंधन नहीं कर पाई है और अब उसे सावर्जनिक तौर पर लालू के बयानों का विरोध झेलना पड़ रहा है।

वहीं एक समय मायावती से गठबंधन की खबर चली तो जरूर, लेकिन कभी भी सच साबित नहीं हुई। इन सबके बीच नीतीश कुमार भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के मुद्दे पर कांग्रेस के खिलाफ पटना में सड़कों पर उतर आए हैं। यानी बीजेपी का कोई पुराना साथी फिलहाल तो कांग्रेस का नया साथी बनता नजर नहीं आ रहा है।


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