विज्ञापन
This Article is From Dec 01, 2017

जब श्री कृष्ण ने शिव नगरी काशी को कर दिया था भस्म, जानिए क्या थी कहानी

काशी नरेश पुत्र ने श्रीकृष्‍ण पर द्वारका में यह कृत्या फेंका. लेकिन वह ये भूल गए कि श्रीकृष्‍ण खुद एक ब्राह्मण भक्‍त हैं.

जब श्री कृष्ण ने शिव नगरी काशी को कर दिया था भस्म, जानिए क्या थी कहानी
क्यों कृष्ण ने जलाई काशी
नई दिल्ली:

हिंदू धर्म में आस्था का सबसे बड़ा केन्द्र है काशी. इस नगरी को खुद भगवान शिव ने बनाया था. लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि इसी काशी नगरी को श्रीकृष्‍ण ने अपने सुदर्शन चक्र से जलाकर राख कर दिया था. इसके पीछे द्वापर युग की एक कथा बहुत प्रचलित है. क्या है वो कथा, जानिए यहां. 

ये भी पढ़ें - क्यों और कितनी बार करनी चाहिए मंदिर में परिक्रमा? जानिए

पौराण‍िक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में  मगध पर राजा जरासंध का राज था. अपने आतंक की वजह से पूरी प्रजा इससे डरा करती थी. राजा जरासंध की क्रूरता और असंख्य सेना कि वजह से आस-पास के सभी  राजा-महाराजा डरा करते थे.  मगध के इस राजा की दो बेटियां भी थीं. जिनका नाम अस्ति और प्रस्ति था.  इन दोनों की शादी जरासंध ने मथुरा के दुष्ट राजा और श्री कृष्ण के मामा कंस से कर दी थी. 

ये भी पढ़ें - गीता जयंती 2017: इन 8 बिंदुओं में जनिए संपूर्ण गीता सार

जैसा कि सभी को मालूम है कि राजा कंस को ये श्राप था कि उसकी बहन देवकी की आठवीं संतान ही कंस का वध करेगी. इसी वजह से राजा कंस ने बहन देवकी और उसके पति को बंदी बनाकर रखा. कई कोशिशों के बाद भी वो आठवीं संतान को जीवित रहने से नहीं रोक पाया. अपनी संतान को कंस से बचाने के लिए वासुदेव ने उसे यशोदा के घर में छोड़ा. माता यशोदा ने ही श्री कृष्ण का पालन पोषण किया. भगवान कृष्ण विष्णु के अवतार थे. 

कृष्ण जी ने अपने मामा कंस का वध किया. इस बात की खबर मगध के राजा जरासंध को हुई. क्रोध में आकर उन्होंने श्री कृष्ण को मारने की योजना बनाई लेकिन अकेले वो सफल ना हो पाए. इसीलिए जरासंध ने काशी के राजा के साथ मिलकर कृष्ण को मारने की फिर योजना बनाई और कई बार मथुरा पर आक्रमण किया. इन आक्रमणों में मथुरा और भगवान कृष्ण को कुछ नहीं हुआ लेकिन काशी नरेश की मृत्यु हो गई. 

अपने पिता की मृत्‍यु का बदला लेने के लिए काशी नरेश के पुत्र ने काशी के रचय‍िता भगवान शिव की कठोर तपस्या की.  भगवान शिव तपस्या से खुश हुए. काशी नरेश के पुत्र ने शिव जी से श्रीकृष्‍ण का वध करने का वर मांगा. भगवान शिव के काफी समझाने के बाद भी वह अपनी बात पर अड़े रहे और शिव जी को उन्‍हें ये वर देना पड़ा. वर में काशी नरेश पुत्र को एक कृत्या बनाकर दी और कहा कि इसे जहां मारोगे वह स्थान नष्ट हो जाएगा, लेकिन शंकर जी ने एक बात और कही कि यह कृत्या किसी ब्राह्मण भक्त पर मत फेंकना. ऐसा करने से इसका प्रभाव निष्फल हो जाएगा.     

काशी नरेश पुत्र ने श्रीकृष्‍ण पर द्वारका में यह कृत्या फेंका. लेकिन वह ये भूल गए कि श्रीकृष्‍ण खुद एक ब्राह्मण भक्‍त हैं. इसी वजह से यह कृत्या द्वारका से वापस होकर काशी गिरने के लिए लौट गई. इसे रोकने के लिए श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र कृत्या के पीछे छोड़ दिया. काशी तक सुदर्शन चक्र ने कृत्या का पीछा किया और काशी पहुंचते ही उसे भस्म कर दिया. लेकिन सुदर्शन चक्र का वार अभी शांत नहीं हुआ इससे काशी नरेश के पुत्र के साथ-साथ पूरा काशी राख हो गई.


देखें वीडियो - भगवान शिव को प्रसन्न करने अवश्य जपें यह प्रभावशाली मंत्र 

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com