जगन्नाथ पुरी रथयात्रा के प्रतिमाओं और रथ-निर्माण के लिए इस प्रकार चुने जाते हैं पेड़

जगन्नाथ पुरी रथयात्रा के प्रतिमाओं और रथ-निर्माण के लिए इस प्रकार चुने जाते हैं पेड़

फोटो साभार: india.com

प्रत्येक वर्ष आषाढ़ शुक्लपक्ष की द्वितिया तिथि को ओडिशा स्थित पुरी में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा निकाली जाती है। इस साल यह रथयात्रा 6 जुलाई, बुधवार से शुरू हुई।
 
इस विशाल रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमाओं को तीन अलग-अलग भव्य और विशाल रथों पर नगर भ्रमण कराया जाता है। ये प्रतिमाएं अलग-अलग ओडिशा के अलग-अलग हिस्सों से लाए गए नीम के विशेष वृक्षों से ही निर्मित की जाती हैं।
 
नीम के इन विशेष वृक्षों को दारू कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि इसके लिए जगन्नाथ मंदिर एक खास समिति का गठन करती है, जो नीम के स्वस्थ और शुभ पेड़ की पहचान करती है।
 
प्रतिमा निर्माण के लिए इस प्रकार चुने जाते है नीम के पेड़
भगवान जगन्नाथ का रंग सांवला होता है, इसलिए समिति यह सुनिश्चित करती है कि नीम के वृक्ष की लकड़ी गहरे रंग की होनी चाहिए। चूंकि भगवान जगन्नाथ के भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा का रंग गोरा है, इसलिए उनकी प्रतिमाओं के निर्माण के लिए हल्के रंग का नीम का वृक्ष ढूंढा जाता है।

समिति भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमा और रथ के निर्माण के लिए नीम का पेड़ चुनने के लिए इन खास विशेषताओं का ख़ास ध्यान रखती हैं:

-- नीम के पेड़ (दारु) में चार प्रमुख शाखाएं होनी अनिवार्य है।
-- नीम के पेड़ के पास में तालाब या चीटियों की बांबी या श्मशान का होना जरूरी है।
-- नीम के उस पेड़ को प्रमुखता दी जात है, जिसकी जड़ में सांप का बिल होता है।
-- नीम का वह किसी तिराहे के पास हो या फिर तीन पहाड़ों से घिरा हुआ होना चाहिए।
-- नीम के उस पेड़ के पास वरूण, सहौदा और बेल का वृक्ष होना चाहिए।


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