
गुरु अर्जुन देव सिखों के दस गुरुओं मे से एक हैं. उन्हें शहीदों का सरताज कहा जाता है. ब्रह्मज्ञानी कहे जाने वाले गुरु अर्जुन देव ने के बारे में ये बातें जानते हैं आप-
गुरु अर्जुन देव बचपन से ही बहुत शांत और पूजा-पाठ करने वाले थे. उनके बचपन में ही गुरु अमरदास जी ने भविष्यवाणी की थी कि वह बहुत बाणी की रचना करेंगे. उन्होंने कहा था- ‘दोहता बाणी का बोहेथा’
1604 में ग्रंथ साहिब का संपादन गुरु अर्जुन देव जी ने ही किया था. इसमें भाई गुरदास ने उनकी सहायता की थी. गुरु अर्जुन देव ने रागों के आधार पर श्री ग्रंथ साहिब जी में वाणियों का वर्गीकरण किया. श्री ग्रंथ साहिब जी में 36 महान वाणीकारों की वाणियां हैं. श्री गुरु ग्रंथ साहिब के 5894 शब्दों में 2216 श्री गुरु अर्जुन देव जी महाराज के हैं.
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अकबर की मौत के बाद जब उसका बेटा जहांगीर बादशाह बना, तो उसे गुरु अर्जुन देव जी द्वारा उसके भाई खुसरो की मदद करना कतई पसंद नहीं आया. जहांगीर ने अपनी जीवनी ‘तुजके जहांगीर’ में लिखा भी है कि वह अर्जुन देव जी की लोकप्रियता को पसंद नहीं करता था. उसने इसी के चलते उन्हें शहीद करने का फैसला लिया.
गुरु अर्जुन देव को ‘यासा व सियासत’ के तहत शहीद किया गया. ‘यासा व सियासत’ का मतलब है कि व्यक्ति का खून जमीन पर गिराए बिना उसे तड़पा-तड़पा कर मार देना. लाहौर में 30 मई, 1606 ई. को भीषण गर्मी के दौरान उन्हें लोहे की गर्म तवी पर बैठा कर यातना दी गई.
गुरु अर्जुनदेव ने अपने जीवनकाल में एक नगर भी बसाया था. इस नगर का नाम तरनतारन रखा गया था.
गुरु अर्जुन देव बचपन से ही बहुत शांत और पूजा-पाठ करने वाले थे. उनके बचपन में ही गुरु अमरदास जी ने भविष्यवाणी की थी कि वह बहुत बाणी की रचना करेंगे. उन्होंने कहा था- ‘दोहता बाणी का बोहेथा’
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गुरु अर्जुन देव को ‘यासा व सियासत’ के तहत शहीद किया गया. ‘यासा व सियासत’ का मतलब है कि व्यक्ति का खून जमीन पर गिराए बिना उसे तड़पा-तड़पा कर मार देना. लाहौर में 30 मई, 1606 ई. को भीषण गर्मी के दौरान उन्हें लोहे की गर्म तवी पर बैठा कर यातना दी गई.
गुरु अर्जुनदेव ने अपने जीवनकाल में एक नगर भी बसाया था. इस नगर का नाम तरनतारन रखा गया था.
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