किरण बनाम केजरीवाल की जमीनी हकीकत का हमने जायजा लिया, और शुरुआत उन ऑटो वालों से की, जिन्हें 'आप', यानि आम आदमी पार्टी का समर्थक माना जाता है। यकीन मानिए, करीब 20-25 ऑटो वालों की भीड़ में दो ही लोग मिले, जिनका इरादा किरण बेदी के नाम पर डोल गया, या यूं कहें, जिनकी आस्था अरविंद केजरीवाल से डगमगा गई। बाकी सबकी जुबान पर आज भी अरविंद केजरीवाल ही राज करते नजर आए। कुछ ने तो नारा तक लगा डाला, "चलेगी झाड़ू, उड़ेगी धूल... न रहेगा पंजा, न खिलेगा फूल..."
ऐसा नहीं है कि किसी ने किरण बेदी की ईमानदारी को कठघरे में खड़ा किया, लेकिन उन्हें अपना नेता मानने से इनकार करते नजर आए। कहा, नेता तो वह ईमानदार हैं, लेकिन पार्टी ठीक नहीं। हमने इरादा बना रखा है, एक मौका उसको ही देंगे, जो हमारी बात करता है।
फिर लगा, क्यों न उन झुग्गीवालों के दिल भी टटोल लिए जाएं, जिन्हें आम आदमी पार्टी का वोट बैंक माना जाने लगा है। हम पहुंचे मिंटो रोड की एक झुग्गी में, जो कालीबाड़ी मंदिर के ठीक पीछे है। चाय वाले से बात की तो कहा कि हमारी सुध तो एक ही लेता है, जो इस बात की गारंटी भी देता है कि आपसे कोई रिश्वत नहीं लेगा। जब 49 दिन की सरकार थी तो कोई भी पुलिस वाला फ्री का कुछ नहीं लेता था, अब तो फिर पुराना ही हाल है।
किरण बेदी के नाम पर झुग्गी के वे लोग ज्यादा झुकते नहीं दिखे, जो आप के वोटर हैं। हां, बीजेपी की तरफ इरादा उसने ही जाहिर किया, जिसने पिछले चुनाव में भी बीजेपी को ही वोट किया था, यानि कट्टर समर्थक। झुग्गी-झोंपड़ी में भी किरण की रोशनी बिखरती नहीं दिख रही। 10-12 लोगों से बात की तो तीन बीजेपी के पक्ष में दिखे, लेकिन बेदी के नाम पर नहीं, मोदी और भाजपा के नाम पर।
अब अगला पड़ाव रेहड़ी-पटरीवाले थे। पहुंच गए आरके पुरम के पास हफ्ते में एक दिन रोड किनारे लगने वाली मंडी पर। करीब 30 दुकानदारों से बात करने पर संकेत यही मिले कि अगर कोई भाजपाई है, तो ही वोट बीजेपी को देगा। नहीं तो किरण बेदी के नाम ने किसी के इरादे को असमंजस में फिलहाल तो नहीं डाला है... सो, यहां भी किरण रेहड़ी वालों की जुबान से नदारद दिखीं। मानो सबका दिल केजरीवाल ने पहले ही जीत रखा हो। हर कोई वोट देने के पीछे मकसद भी गिनाना नहीं भूलता। रिश्वतखोरी बंद हो गई, हमारी रेहड़ी वालों को कोई पुलिस वाला परेशान नहीं करता था, और क्या चाहिए। हमारी रोजी-रोटी की जिसने परवाह की है, जिसने घूस को बंद करा दिया, हमारा नेता तो वही है।
फिलहाल ये कहना जल्दबाजी है कि कौन जीतेगा और कौन हारेगा, क्योंकि किरण बेदी भी घर की भेदी हैं। दिल्ली के मतदाताओँ में इनकी भी छवि साफ-सुथरी बताई है और साथ में बीजेपी का भी सहारा जिसने पिछले चुनाव में सर्वाधिक सीट अर्जित की थी और लोकसभा में भी पार्टी ने दिल्ली की सातों सीटों पर कब्जा किया था। लिहाजा चंद लोगों की राय पर यह निष्कर्ष निकालना शायद जल्दबाजी होगी कि जीतेगा कौन और हारेगा कौन?
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