
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव ऐसे दोराहे पर खड़े हैं, जहां एक-दूसरे के साथ की कसमें तो गठबंधन के दोनों सहयोगी खा रहे हैं, लेकिन नीयत पर शक भी साथ-साथ चल रहा है। सियासी मोलभाव की यह बहुत पेचीदगी-भरी तस्वीर है, जहां सब यह मानकर चल रहे हैं कि एक के बिना दूसरे का काम नहीं चलने वाला, सो, अपने साथ का मोल वसूलने की पूरी तैयारी है।
महाराष्ट्र में कुल 288 विधानसभा सीटें हैं, और शिवसेना-बीजेपी गठबंधन के बीच अब तक 169−119 का फॉर्मूला चलता रहा है, जिसे बीजेपी अब किसी भी हाल में बदलना चाहती है। उसकी यह मांग उस आत्मविश्वास से पैदा हुई है, जिसका आधार उसका अब तक का शानदार स्ट्राइक रेट है। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 23 और शिवसेना को 18 सीटें मिली हैं, और बीजेपी महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा वोट पाने वाली पार्टी के तौर पर उभरी है।
लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी को 27 फीसदी वोट मिले थे, जबकि शिवसेना को 21 फीसदी, और यही बढ़े हुए वोट बीजेपी का हौसला बुलंद कर रहे हैं, और इसीलिए बार-बार शिवसेना याद दिलाना नहीं भूलती कि लोकसभा की बात और थी, विधानसभा की कहानी कुछ और है। वैसे इस गठबंधन की लोकसभा की जीत को विधानसभा सीटों में तब्दील कर दिया जाए तो इन्हें करीब 231 सीटें मिल सकती हैं। बीजेपी कह रही है कि अब 135−135 का फॉर्मूला लागू किया जाए, यानि बराबर सीटें, और बची हुई 18 सीटें साथी दलों को दे दी जाएं। बीजेपी का नया फॉर्मूला है - जिसकी जितनी ताकत, उसकी उतनी हैसियत... शिवसेना इसके लिए तैयार नहीं है, वह मानती रही है कि लोकसभा चुनावों में वह बीजेपी को तरजीह देती रही है।
पिछले कुछ समय में बीजेपी ने खुद को नए सिरे से पेश किया है, और दोनों दलों के बीच का शिष्टाचार भी इस अंकगणित की भेंट चढ़ चुका है। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह मुंबई आए, तो सारे कायर्क्रम पहले से तय थे, और शिवसेना प्रमुख के घर जाने का कोई प्रोग्राम नहीं था, लेकिन उनके आने के बाद घर जाने की औपचारिकता भी पूरी कर दी गई।
यह बताता है कि शिवसेना अब सिर्फ बीजेपी के कदमों पर कयास लगा सकती है, और कयासों का यह दौर आगे भी जारी रहने वाला है, क्योंकि अमित शाह फिर राज्य के तीन दिन के दौरे पर आने वाले हैं, और ऐसा कोई संकेत अब तक नहीं मिला है कि वह इस गणित को सुलझाने के लिए आगे आएंगे। कयास लगाने के इस दौर पर दोनों पार्टियों के छोटे नेता एक-दूसरे के खिलाफ माहौल बना रहे हैं, लेकिन बड़े नेता चुप हैं, क्योंकि कोई भी 'इस पार' या 'उस पार' जाने की हालत में फिलहाल नहीं है।
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