लोकसभा चुनाव के आखिरी दौर का प्रचार अभियान शुक्रवार शाम 6 बजे खत्म हो गया। तमाम पार्टियों के नेता और उम्मीदवार इसके बाद अमूमन अपने बूथ वर्कर आदि के साथ वोट वाले दिन की रणनीति बनाते हैं। किसी भी वोटर से वोट मांगने या उन्हें प्रभावित करने की कोई कोशिश अगर प्रशासन या चुनाव आयोग की नजर में आता है, तो उस पार्टी या उम्मीदवार पर कार्रवाई का प्रावधान है। इसलिए अगर कुछ उम्मीदवार ऐसा करते भी हैं तो बहुत ही गुपचुप तरीके से, यहां तक विरोधी दल और उनके कार्यकर्ताओं से भी नजर बचा कर।
न्यूज रिपोर्ट्स और प्रचार को लेकर मीडिया के लिए भी चुनाव आयोग के नियम या गाइड लाइंस तय हैं। मोटे तौर पर यह कि कोई भी मीडिया संस्थान या न्यूज चैनल प्रचार अभियान की समय सीमा खत्म हो जाने के बाद ऐसा कुछ भी नहीं दिखाएंगे जो एकपक्षीय हो। नियम कानून के अलावा ये मीडिया संस्थानों की नैतिक जिम्मेदारी भी है कि वह अगर प्रचार के आखिरी दिन की रिपोर्ट शाम 6 बजे के बाद भी दिखाते हैं तो उनमें संतुलन का ख्याल रखा जाए। यानि सिर्फ किसी एक दल के प्रचार से जुड़ी रिपोर्ट नहीं, बल्कि मुकाबले में दूसरी पार्टियों की रिपोर्ट या पक्ष को भी समानुपात में जगह देकर ही उसे प्रसारित किया जाए। ये लाइन इस बार टूट गई लगती है।
कल शाम से कई न्यूज चैनल, जिनका नाम लेना उचित नहीं होगा, लगातार एक पक्षीय तौर पर ऐसे कार्यक्रम या रिपोर्ट्स पेश कर रहे हैं जिससे लगता है कि मानों संतुलन रखना न तो उनकी कोई जिम्मेदारी है और न ही कोई बाध्यता ही। गांव-देहात और शहरों में इसे लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं। कोई चैनल पुराने इंटरव्यू के टुकड़ों को जोड़ जोड़ कर तो कोई उसकी नई तरह से पैकेजिंग कर लगातार रिपीट किए जा रहा है। कुछ ने तो नेता विशेष के बचपन से लेकर इस मुकाम तक पहुंचने के लंबे कार्यक्रम भी पेश किए हैं। उन कार्यक्रमों में व्यक्तिविशेष के राजनीति से लेकर भावनात्मक पहलू तक को इस तरह से दर्शाया गया है, मानों उस शख्स को नतीजे के पहले ही विजयी बताया जा रहा हो। कुछ प्रोग्राम तो ऐसे नजर आए हैं, जो किसी के सीएम या पीएम बनने की कामयाबी के बाद दिखाए जाते हैं।
बेशक चुनाव पूर्व का आकलन कुछ भी कहता हो, किसी भी पार्टी को कितनी भी सीट मिलने का पूर्वानुमान हो, किसी की हार या किसी की जीत के कयास लगाए जा रहे हों, मतदान से 48 घंटे पहले की पाबंदी वाले वक्त में एकपक्षीय तौर पर ऐसे प्रोग्राम दिखाना वोटरों को प्रभावित करने की श्रेणी में आता है। यही वजह से एक्जिट पोल पर भी मतदान के आखिरी दौर के खत्म होने तक पाबंदी है। 12 मई को आखिरी दौर का मतदान होना है। 41 सीटों पर मतदान होना है जो अपने आप में बड़ी तादाद है। ऐसे में किसी व्यक्ति विशेष को केंद्रित कर महिमामंडन करने वाले या कम से कम ऐसा आभास देने वाले कार्यक्रम सीधे तौर पर उस व्यक्ति और उसकी पार्टी के प्रचार सरीखे लगते हैं। व्यक्तिगत तौर पर मुझे तो ऐसा ही लगता है।
जिन मीडिया संस्थान या चैनलों ने इस तरह के प्रोग्राम या रिपोर्ट्स दिखाए हैं या दिखा रहे हैं, जाहिर है या तो उन्हें चुनाव आयोग की परवाह नहीं, पेशेवर नैतिकता का ख्याल नहीं या फिर गंभीर किस्म की लापरवाही है। अनुभवी एडिटोरियल टीम के रहते यह नहीं माना जा सकता कि यह सब अनजाने में हो रहा है। यहां ये साफ करना जरूरी है कि ऐसे प्रोग्राम या रिपोर्ट के पीछे मैं किसी भी संस्थान पर पैसा लेने या बिकाऊ होने का आक्षेप नहीं लगा रहा हूं। बल्कि अपने नजरिए से अपनी बात रखने की कोशिश कर रहा हूं। आखिर जिस लोकतंत्र मीडिया की महती भूमिका हो और उसे अभिव्यक्ति की आजादी हो, ऐसे में उसमें सेल्फ रेगुलेशन का भाव भी गहरा होना चाहिए।
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