कांग्रेस के पूर्व सांसद रामसेवक सिंह (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
2005 में एक सांसद के फर्जी दस्तखत कर किसी ने अलग-अलग मंत्रालयों से 31 सवाल पूछे. लोकसभा सचिवालय ने फर्जी दस्तखत तो पकड़े, लेकिन फर्जीवाड़ा करने वालों का अब तक कुछ पता नहीं चला है. शनिवार को इस मामले में दिल्ली पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी है. ग्वालियर से पूर्व कांग्रेस सांसद रामसेवक सिंह 12 साल से एक ही लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन इंसाफ की उम्मीद अब जगी है. शनिवार को उनकी शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली. मामला 12 अगस्त 2005 का है जब लोकसभा सचिवालय ने रामसेवक सिंह को चिट्ठी भेजकर बताया कि उनके नाम पर 6 मंत्रालयों से 31 सवाल पूछे गए हैं, लेकिन उनके दस्तखत मेल नहीं खा रहे. उसके बाद दिसंबर 2005 में एक स्टिंग ऑपरेशन में जो 10 सांसद पैसा लेकर सवाल पूछने के दोषी पाए गए, उनमें कांग्रेस सांसद रामसेवक सिंह का नाम भी आ गया. तब संसद की जांच कमेटी की सिफारिश के चलते रामसेवक सिंह की सदस्यता बर्खास्त हुई.
रामसेवक सिंह कहते हैं कि जिस दिन (12 दिसंबर 2005) उनके खिलाफ स्टिंग ऑपरेशन एक निजी चैनल पर प्रसारित हुआ, उसके अगले ही दिन उन्होंने लोकसभा स्पीकर को इन फर्ज़ी सवालों के बारे में बता दिया था. एक जवाब में जब लोकसभा सचिवालय ने कहा कि 2004 से 2014 तक कोई फ़र्ज़ी सवाल नहीं पूछा गया, जबकि खुद रामसेवक सिंह को 2005 में चिट्ठी भेजकर सचिवालय ने ही कहा था कि उनके नाम पर किसी ने फर्जी दस्तखत कर सवाल लगाए हैं.
रामसेवक का कहना है कि वो हिंदी में साइन नहीं करते, जबकि उन सवालों के साथ किए गए दस्तखत हिंदी में थे. रामसेवक के मुताबिक कभी लोकसभा सचिवालय ने इस मामले की जांच नहीं की लेकिन एक साल पहले पुलिस में शिकायत करने की सलाह जरूर दी. बड़ी मुश्किल से पुलिस ने एक साल बाद मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है.
रामसेवक सिंह कहते हैं कि जिस दिन (12 दिसंबर 2005) उनके खिलाफ स्टिंग ऑपरेशन एक निजी चैनल पर प्रसारित हुआ, उसके अगले ही दिन उन्होंने लोकसभा स्पीकर को इन फर्ज़ी सवालों के बारे में बता दिया था. एक जवाब में जब लोकसभा सचिवालय ने कहा कि 2004 से 2014 तक कोई फ़र्ज़ी सवाल नहीं पूछा गया, जबकि खुद रामसेवक सिंह को 2005 में चिट्ठी भेजकर सचिवालय ने ही कहा था कि उनके नाम पर किसी ने फर्जी दस्तखत कर सवाल लगाए हैं.
रामसेवक का कहना है कि वो हिंदी में साइन नहीं करते, जबकि उन सवालों के साथ किए गए दस्तखत हिंदी में थे. रामसेवक के मुताबिक कभी लोकसभा सचिवालय ने इस मामले की जांच नहीं की लेकिन एक साल पहले पुलिस में शिकायत करने की सलाह जरूर दी. बड़ी मुश्किल से पुलिस ने एक साल बाद मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं