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This Article is From Aug 25, 2017

AAP के 12 विधायकों ने लाभ के पद संबंधी सुनवाई के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया

अदालत ने याचिकाओं की सुनवाई के लिए 21 नवंबर की तारीख तय की है.

AAP के 12 विधायकों ने लाभ के पद संबंधी सुनवाई के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया
प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने लाभ का पद कथित रूप से संभालने के मामले में सुनवाई जारी रखने के निर्वाचन आयोग के निर्णय के खिलाफ 12 आप विधायकों की याचिका पर आयोग से आज जवाब मांगा.

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न्यायमूर्ति इंद्रमीत कौर ने आयोग को नोटिस जारी किया और आम आदमी पार्टी (आप) के विधायकों की याचिकाओं पर उसका जवाब मांगा. इन याचिकाओं में दावा किया है कि उच्च न्यायालय ने जब यह आदेश दे दिया है कि उनकी नियुक्तियां असंवैधानिक हैं और उसने उन्हें दरकिनार कर दिया है, तो इस बात की कोई आवश्यकता नहीं है कि आयोग मामले की सुनवाई जारी रखे.

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अदालत ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता इस चरण पर ईसी के निर्णय पर रोक लगाने का अनुरोध नहीं कर रहे क्योंकि आयोग ने सुनवाई की कोई आगामी तारीख नहीं दी.

उसने कहा कि यदि आयोग इस मामले की सुनवाई के लिए कोई तिथि तय करता है तो याचिकाकर्ता उस पर रोक की याचिका दायर कर सकते हैं. अदालत ने याचिकाओं की सुनवाई के लिए 21 नवंबर की तारीख तय की है.

इससे पहले अदालत ने चार अगस्त को ईसी के 23 जून के इसी निर्णय को चुनौती देने वाली आठ अन्य आप विधायकों की याचिका पर इसी प्रकार का आदेश पारित किया था. आप विधायकों ने दावा किया है कि चुनाव आयोग का आदेश ‘‘पूरी तरह से अयोग्य, अनुचित, मनमाना, अजीब और उसके अधिकारों का गंभीर दुरूपयोग’’ है.

अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी के 21 विधायकों के खिलाफ लाभ के पद को लेकर प्रशांत पटेल नाम के एक व्यक्ति ने याचिका दायर की थी. इसके बाद जरनैल सिंह के पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए राजौरी गार्डन के विधायक के रूप में इस्तीफा देने के साथ उनके खिलाफ कार्यवाही बंद कर दी गई थी. आयोग का कहना है कि जब उच्च न्यायालय ने विधायकों की नियुक्ति को असंवैधानिक बताकर उन्हें दरकिनार कर दिया था, तब ये विधायक 13 मार्च 2015 से आठ सितंबर 2016 तक ‘‘अघोषित तौर पर’’ संसदीय सचिव के पद पर थे.

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अदालत ने आठ सितंबर 2016 को 21 आप विधायकों की संसदीय सचिवों के तौर पर नियुक्तियों को दरकिनार कर दिया था. अदालत ने पाया था कि इन विधायकों की नियुक्तियों का आदेश उप राज्यपाल की सहमति के बिना दिया गया था.

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