कोहली के साथ पांच क्रिकेटर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में आए लेकिन पैर नहीं जमा सके.
नई दिल्ली:
आजकल हर किसी की ज़ुबान पर टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली का नाम है. विदेशी मीडिया से लेकर देसी मीडिया कोहली की तारीफों के पुल बांध रहे हैं. सब यही सवाल पूछते हैं आखिरी क्या है कोहली में जो उनके समय में टीम इंडिया में आए किसी और खिलाड़ी में नहीं रहा है. कोहली के रिकॉर्ड उनके महान होने का सबूत देते हैं तो उनके बल्ले से निकलते रन सभी सवालों के जवाब दे जाते हैं.
कोहली की अगुवाई में भारत ने 2007-08 में मलेशिया में हुए अंडर 19 वर्ल्ड कप जीता. यह दूसरा मौका रहा जब भारत ने यह कप जीता. जाहिर सी बात रही की जीत के बाद कोहली को खूब वाहवाही मिली. अपनी आक्रामक बल्लेबाजी की वजह से कोहली को उसी साल सीनियर टीम में डेब्यू करने का मौका मिल गया. वहीं इसी साल पांच और खिलाड़ियों ने डेब्यू किया लेकिन वह आज कोहली के आसपास भी नजर नहीं आ रहे हैं.
एक नजर डालते हैं उन पांच चेहरों पर जो कोहली के साथ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में आए लेकिन पैर नहीं जमा सके हैं.
यूसुफ पठान
अपनी स्विंग गेंदबाजी की बदौलत इरफान पठान ने 2003-04 के ऑस्ट्रेलियाई दौर पर टीम इंडिया में कदम रखा लेकिन उनके बड़े भाई यूसुफ को चार साल बाद टीम में वनडे डेब्यू करने का मौका मिला. हालांकि यूसुफ आईसीसी वर्ल्ड T20 कप में भारतीय टीम का हिस्सा रहे लेकिन उन्हें पाकिस्तान के खिलाफ सिर्फ एक मैच खेलने का मौका मिला. यूसुफ को सबसे बड़ी सफलता आईपीएल से मिली जब उन्होंने राजस्थान रॉयल्स के 2007 में चैंपियन बनने में खास भूमिका निभाई और अगले साल टीम इंडिया में भी डेब्यू किया. सीनियर पठान ने अपने प्रदर्शन के साथ न्याय नहीं किया इसका साफ पता उनके अंतरराष्ट्रीय T20 करियर से लगता है. पठान ने खेले 22 मैच में से किसी में भी एक भी अर्द्धशतक नहीं बनाया. इस फॉर्मेट में उनका सर्वाधिक स्कोर नाबाद 37 रन है. वहीं यूसुफ 57 वनडे में 1000 रन भी पूरे नहीं कर सके हैं. इस दौरान 41 वनडे पारियों में उन्होंने 810 रन बनाए. इसमें दो शतक और सिर्फ तीन अर्द्धशतक शामिल है.
प्रज्ञान ओझा
बांए हाथ के स्पिनर ओझा के लिए आने वाला दौर वापसी का कहा जा सकता है. गलत गेंदबाजी एक्शन वाले गेंदबाजों पर आईसीसी से गाज गिरने से पहले ही बीसीसीआई ने अपने गेंदबाजों पर लगाम कसनी शुरू कर दी और ओझा इसी में से एक गेंदबाज हैं. सूत्रों के मुताबिक ओझा की गेंदबाजी एक्शन पर विवाद आगे बढ़े इसलिए बीसीसीआई ने ओझा की बॉलिंग एक्शन को ठीक करने की कवायद शुरू कर दी. वापसी के बाद वो अच्छी गेंदबाजी कर रहे हैं लेकिन दमदार नहीं हैं. टीम इंडिया के लिए तीनों फ़ॉमैट में खेल चुके ओझा भी आईपीएल में डेक्कन चार्जर्स के चैंपियन गेंदबाज रह चुके हैं. 30 साल के ओझा टेस्ट में भी हिट रहे हैं. उन्होंने 24 टेस्ट में ही 113 विकेट हासिल किए.
मनोज तिवारी
घरेलू क्रिकेट में बेहतरीन प्रदर्शन की बदौलत 31 साल के मनोज तिवारी ने टीम इंडिया में कदम रखा. ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर 2008 में उन्हें पहला वनडे खेलने का मौका भी मिला लेकिन वो ब्रेट ली की गेंद पर बोल्ड आउट हुए और उनके करियर को ग्रहण लग गया. अगले तीन साल तक वो एक बार फिर घरेलू क्रिकेट में रन बनाते रहे लेकिन मौका 2011 में वेस्ट इंडीज़ दौरे पर मिला जब टीम इंडिया के सीनियर खिलाड़ियों को आराम दिया गया. 12 वनडे में मनोज ने एक शतक बनाया है. प्रतिभा के मामले में मनोज किसी से कम नहीं हैं लेकिन बड़े-बड़े नामों के बीच वे कहीं खो जाते हैं. सीनियरों को आराम देने के क्रम में उन्हें टीम में जगह मिलती है लेकिन बड़े नामों की वापसी के बाद मनोज को दरकिनार किया जाता रहा है. ऐसे में अब उनकी टीम में वापसी मुश्किल नजर आ रही है.
सुब्रमण्यम बद्रीनाथ
बद्रीनाथ की प्रतिभा पर किसी को कभी भी शक नहीं रहा लेकिन वे टीम इंडिया में अपनी जगह पक्की नहीं कर सके. हालांकि 36 साल के बद्रीनाथ ने भारत के लिए तीनों फ़ॉर्मेट में खेला लेकिन कभी पक्के तौर पर टीम का हिस्सा नहीं रहे. घरेलू क्रिकेट में 10 हजार से ज्यादा रन बना चुके बद्रीनाथ के लिए वापसी की राह लगभग बंद हो चुकी है.
मनप्रीत गोनी
आईपीएल में चेन्नई के लिए खेलते हुए मनप्रीत ने अपनी तेजी से सबको प्रभावित किया. तेज गेंदबाज के लिए जरूरी हर मसाला गोनी में था और वे चयनकर्ताओं की पसंद बन गए. दो वनडे में गोनी को खेलने का मौका मिला लेकिन वे कुछ खास नहीं कर सके. 2009 का आईपीएल सीज़न उनके लिए अच्छा नहीं रहा और वे चयनकर्ताओं की नजरों से उतर गए. 2009-10 रणजी सीज़न में गोनी से अपनी फ़ॉर्म वापस पाई और 31 विकेट लिए लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. 33 साल के गोनी की पारिवारिक जिंदगी में कई उतार चढ़ाव आए जिसका असर उनके करियर पर पड़ता रहा है और वे बोर्ड की प्लानिंग का हिस्सा बनने से चूक गए.
अंडर 19 वर्ल्ड कप में विराट की कप्तानी में रवींद्र जडेजा, इकबाल अब्दुल्ला, मनीष पांडे, सौरव तिवारी, तन्मय श्रीवास्तव, प्रदीप सांगवान, अभिनव मुकुंद जैसे खिलाड़ी खेले लेकिन जडेजा को छोड़कर कोई भी बड़ा नाम नहीं बन सका.
कोहली की अगुवाई में भारत ने 2007-08 में मलेशिया में हुए अंडर 19 वर्ल्ड कप जीता. यह दूसरा मौका रहा जब भारत ने यह कप जीता. जाहिर सी बात रही की जीत के बाद कोहली को खूब वाहवाही मिली. अपनी आक्रामक बल्लेबाजी की वजह से कोहली को उसी साल सीनियर टीम में डेब्यू करने का मौका मिल गया. वहीं इसी साल पांच और खिलाड़ियों ने डेब्यू किया लेकिन वह आज कोहली के आसपास भी नजर नहीं आ रहे हैं.
एक नजर डालते हैं उन पांच चेहरों पर जो कोहली के साथ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में आए लेकिन पैर नहीं जमा सके हैं.
यूसुफ पठान
अपनी स्विंग गेंदबाजी की बदौलत इरफान पठान ने 2003-04 के ऑस्ट्रेलियाई दौर पर टीम इंडिया में कदम रखा लेकिन उनके बड़े भाई यूसुफ को चार साल बाद टीम में वनडे डेब्यू करने का मौका मिला. हालांकि यूसुफ आईसीसी वर्ल्ड T20 कप में भारतीय टीम का हिस्सा रहे लेकिन उन्हें पाकिस्तान के खिलाफ सिर्फ एक मैच खेलने का मौका मिला. यूसुफ को सबसे बड़ी सफलता आईपीएल से मिली जब उन्होंने राजस्थान रॉयल्स के 2007 में चैंपियन बनने में खास भूमिका निभाई और अगले साल टीम इंडिया में भी डेब्यू किया. सीनियर पठान ने अपने प्रदर्शन के साथ न्याय नहीं किया इसका साफ पता उनके अंतरराष्ट्रीय T20 करियर से लगता है. पठान ने खेले 22 मैच में से किसी में भी एक भी अर्द्धशतक नहीं बनाया. इस फॉर्मेट में उनका सर्वाधिक स्कोर नाबाद 37 रन है. वहीं यूसुफ 57 वनडे में 1000 रन भी पूरे नहीं कर सके हैं. इस दौरान 41 वनडे पारियों में उन्होंने 810 रन बनाए. इसमें दो शतक और सिर्फ तीन अर्द्धशतक शामिल है.
प्रज्ञान ओझा
बांए हाथ के स्पिनर ओझा के लिए आने वाला दौर वापसी का कहा जा सकता है. गलत गेंदबाजी एक्शन वाले गेंदबाजों पर आईसीसी से गाज गिरने से पहले ही बीसीसीआई ने अपने गेंदबाजों पर लगाम कसनी शुरू कर दी और ओझा इसी में से एक गेंदबाज हैं. सूत्रों के मुताबिक ओझा की गेंदबाजी एक्शन पर विवाद आगे बढ़े इसलिए बीसीसीआई ने ओझा की बॉलिंग एक्शन को ठीक करने की कवायद शुरू कर दी. वापसी के बाद वो अच्छी गेंदबाजी कर रहे हैं लेकिन दमदार नहीं हैं. टीम इंडिया के लिए तीनों फ़ॉमैट में खेल चुके ओझा भी आईपीएल में डेक्कन चार्जर्स के चैंपियन गेंदबाज रह चुके हैं. 30 साल के ओझा टेस्ट में भी हिट रहे हैं. उन्होंने 24 टेस्ट में ही 113 विकेट हासिल किए.
मनोज तिवारी
घरेलू क्रिकेट में बेहतरीन प्रदर्शन की बदौलत 31 साल के मनोज तिवारी ने टीम इंडिया में कदम रखा. ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर 2008 में उन्हें पहला वनडे खेलने का मौका भी मिला लेकिन वो ब्रेट ली की गेंद पर बोल्ड आउट हुए और उनके करियर को ग्रहण लग गया. अगले तीन साल तक वो एक बार फिर घरेलू क्रिकेट में रन बनाते रहे लेकिन मौका 2011 में वेस्ट इंडीज़ दौरे पर मिला जब टीम इंडिया के सीनियर खिलाड़ियों को आराम दिया गया. 12 वनडे में मनोज ने एक शतक बनाया है. प्रतिभा के मामले में मनोज किसी से कम नहीं हैं लेकिन बड़े-बड़े नामों के बीच वे कहीं खो जाते हैं. सीनियरों को आराम देने के क्रम में उन्हें टीम में जगह मिलती है लेकिन बड़े नामों की वापसी के बाद मनोज को दरकिनार किया जाता रहा है. ऐसे में अब उनकी टीम में वापसी मुश्किल नजर आ रही है.
सुब्रमण्यम बद्रीनाथ
बद्रीनाथ की प्रतिभा पर किसी को कभी भी शक नहीं रहा लेकिन वे टीम इंडिया में अपनी जगह पक्की नहीं कर सके. हालांकि 36 साल के बद्रीनाथ ने भारत के लिए तीनों फ़ॉर्मेट में खेला लेकिन कभी पक्के तौर पर टीम का हिस्सा नहीं रहे. घरेलू क्रिकेट में 10 हजार से ज्यादा रन बना चुके बद्रीनाथ के लिए वापसी की राह लगभग बंद हो चुकी है.
मनप्रीत गोनी
आईपीएल में चेन्नई के लिए खेलते हुए मनप्रीत ने अपनी तेजी से सबको प्रभावित किया. तेज गेंदबाज के लिए जरूरी हर मसाला गोनी में था और वे चयनकर्ताओं की पसंद बन गए. दो वनडे में गोनी को खेलने का मौका मिला लेकिन वे कुछ खास नहीं कर सके. 2009 का आईपीएल सीज़न उनके लिए अच्छा नहीं रहा और वे चयनकर्ताओं की नजरों से उतर गए. 2009-10 रणजी सीज़न में गोनी से अपनी फ़ॉर्म वापस पाई और 31 विकेट लिए लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. 33 साल के गोनी की पारिवारिक जिंदगी में कई उतार चढ़ाव आए जिसका असर उनके करियर पर पड़ता रहा है और वे बोर्ड की प्लानिंग का हिस्सा बनने से चूक गए.
अंडर 19 वर्ल्ड कप में विराट की कप्तानी में रवींद्र जडेजा, इकबाल अब्दुल्ला, मनीष पांडे, सौरव तिवारी, तन्मय श्रीवास्तव, प्रदीप सांगवान, अभिनव मुकुंद जैसे खिलाड़ी खेले लेकिन जडेजा को छोड़कर कोई भी बड़ा नाम नहीं बन सका.
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