अंडर-19 वर्ल्‍डकप : कोहली जैसे कई सितारे सीनियर स्‍तर पर भी चमके, वहीं कुछ रह गए गुमनाम

अंडर-19 वर्ल्‍डकप : कोहली जैसे कई सितारे सीनियर स्‍तर पर भी चमके, वहीं कुछ रह गए गुमनाम

नई दिल्‍ली:

कम उम्र के क्रिकेटरों को सीनियर स्‍तर पर आजमाने के पहले उनके खेल कौशल को परखने के लिहाज से अंडर-19 वर्ल्‍डकप एक शानदार प्‍लेटफॉर्म साबित हो रहा है। ऐसे कई उदाहरण हैं जब आईसीसी की ओर से जूनियर खिलाडि़यों के लिए शुरू किए गए क्रिकेट के इस महाकुंभ में अपनी प्रतिभा दिखाने वाले क्रिकेटरों ने सीनियर स्‍तर पर भी जबर्दस्‍त कामयाबी हासिल कीं। विराट कोहली और युवराज सिंह इसकी मिसाल हैं।

दूसरी ओर, कुछ क्रिकेटर ऐसे भी रहे जिन्‍होंने जूनियर स्‍तर के इंटरनेशनल क्रिकेट में तो जबर्दस्‍त प्रतिभा दिखाई लेकिन सीनियर स्‍तर पर या तो आ नहीं सके या कुछ ही मैच खेलकर गुमनामी की सी हालत में परिदृश्‍य से ओझल हो गए। संभवत: सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाना अथवा सीनियर स्‍तर के इंटरनेशनल क्रिकेट के प्रेशर को नहीं झेल पाना इसका कारण रहा।आइए नजर डालते हैं जूनियर वर्ल्‍डकप के बाद इंटरनेशनल क्रिकेट में अपनी प्रतिभा की चकाचौंध बिखरने वाले और जूनियर वर्ल्‍डकप के बाद जल्‍द ही गुमनामी के अंधेरे में गुम हुए कुछ खास भारतीय क्रिकेटरों पर...

इनकी प्रतिभा को क्रिकेट वर्ल्‍ड ने किया  'सलाम'
विराट कोहली : ऐसे खिलाड़ी बिरले ही होंगे जिन्‍होंने अपनी कप्‍तानी में टीम को अंडर-19 वर्ल्‍डकप का सरताज बनाया और बाद में वर्ल्‍डकप विजेता टीम के सदस्‍य भी बने। विराट कोहली ऐसे ही खिलाड़ी है। दिल्‍ली के इस खिलाड़ी ने वर्ष 2008 में मलेशिया में हुए आईसीसी अंडर-19 वर्ल्‍डकप में अपनी कप्‍तानी में टीम इंडिया को खिताबी जीत दिलाई।  महेंद्र सिंह धोनी की कप्‍तानी में 2011 का वर्ल्‍डकप जीतने वाली टीम के भी विराट सदस्‍य रहे हैं। अंडर-19 वर्ल्‍डकप में ही विराट ने अपनी प्रतिभा की झलक दी थी। टूर्नामेंट के छह मैच में 47 के आसपास के औसत से उन्‍होंने 235रन बनाए थे जिसमें एक शतक शामिल था। खासबात यह है कि इस दौरान विराट का स्‍ट्राइक रेट भी 94.75 का था। यही नहीं, कोहली ने मध्‍यम गति की गेंदबाजी से चार विकेट भी झटके थे। प्रतियोगिता में अपनी कप्‍तानी से भी विराट ने हर किसी को प्रभावित किया था। आज विराट सीनियर स्‍तर पर भी टेस्‍ट मैचों में टीम की कप्‍तानी कर रहे हैं। वनडे-टी-20 में वे भविष्‍य के कप्‍तान माने जा रहे हैं। सीनियर स्‍तर पर विराट के बल्‍ले ने जिस तरह से विपक्षी गेंदबाजों की धज्ज्यिां बिखरते हुए रन बटोरे हैं उसे देखते हुए यह कहा जाने लगा है कि अगर महान सचिन तेंदुलकर के रिकॉर्डस को कोई तोड़ेगा तो वे विराट ही होंगे।

 

युवराज सिंह: चंडीगढ़ के युवराज सिंह गेंद पर कितनी बेरहमी से प्रहार करते हैं इसकी झलक वर्ष 2000 में श्रीलंका में हुए अंडर-19 वर्ल्‍डकप में ही मिल गई थी। टूर्नामेंट में युवी को सर्वश्रेष्‍ठ खिलाड़ी घोषित किया गया था। उन्‍होंने इसमें 8 मैचों में 33.83 के औसत से 203 रन बनाए थे। साथ ही अपनी लेग स्पिन गेंदबाजी के बल पर 12 विकेट भी हासिल किए थे। इस प्रदर्शन के कारण युवराज को वर्ष 2000 में ही सीनियर टीम में स्‍थान मिल गया। नैरोबी में हुए आईसीसी चैंपियंस ट्राफी में उन्‍हें यह मौका मिला। टी-20 में स्‍टुअर्ट ब्रॉड के ओवर में लगातार छह छक्‍के जड़ने वाले युवराज भले ही टेस्‍ट टीम में नियमित स्‍थान नहीं बना पाए हों, लेकिन वनडे और टी-20 के बेरहम बल्‍लेबाजों में इनका नाम आता है। वर्ष 2011 में वर्ल्‍डकप (सीनियर)चैंपियन बनी टीम के भी युवराज न केवल सदस्‍य थे बल्कि उन्‍हें टूर्नामेंट का सर्वश्रेष्‍ठ खिलाड़ी भी घोषित किया गया था।

मोहम्‍मद कैफ : 2000 के अंडर-19 वर्ल्‍डकप में टीम इंडिया कैफ की कप्‍तानी में ही विजेता बनी। टूर्नामेंट में कैफ ने 34 के औसत से 170 रन बनाने के अलावा आठ विकेट भी हासिल किए थे। कैफ दुर्भाग्‍यशाली रहे कि सीनियर टीम का सदस्‍य रहते हुए वर्ल्‍डकप जीतने से चूक गए। वर्ष 2003 में दक्षिण अफ्रीका में सौरव गांगुली के नेतृत्‍व वाली टीम को ऑस्‍ट्रेलिया से हारकर उपविजेता बनकर संतोष करना पड़ा था। इस टीम में कैफ भी थे। इलाहाबाद का यह खिलाड़ी 13 टेस्‍ट और 125 वनडे में टीम इंडिया का सदस्‍य रहा। सीनियर स्‍तर पर उनकी खेली शानदार पारियों ने इंग्‍लैंड के खिलाफ नेटवेस्‍ट ट्राफी की मैच जिताऊ पारी शामिल हैं।
 

सुरेश रैना : बाएं हाथ का यह खिलाड़ी बल्‍लेबाजी, गेंदबाजी और फील्डिंग, हर क्षेत्र में 100 फीसदी देने पर यकीन रखता है। वर्ष 2004 के जूनियर वर्ल्‍डकप में शिखर धवन के बाद टीम इंडिया के दूसरे सबसे कामयाब बल्‍लेबाज रहे। उन्‍होंने सात मैचों में 247 रन बनाए और अपनी स्पिन गेंदबाजी से पांच विकेट हासिल किए। पहले टेस्‍ट में शतक बनाने के बाद पांच दिन के क्रिकेट के स्‍थायी सदस्‍य नहीं रह पाए लेकिन 223 वनडे और 40 से अधिक टी-20 मैच खेल चुके हैं। टी-20 क्रिकेट में इंटरनेशनल स्‍तर पर शतक भी लगा चुके हैं।

थोड़ी देर को चमक दिखाई, फिर गुम हो गए
रीतिंदर सोढ़ी : पंजाब का यह हरफनमौला न केवल अंडर-15 और अंडर-19 वर्ल्‍डकप में खेला बल्कि टीम को चैंपियन बनाने में भी कामयाब रहा। रीतिंदर दाएं हाथ से बल्‍लेबाजी के अलावा उपयोगी मध्‍यम गति के गेंदबाज भी थे। जूनियर स्‍तर पर उनकी छवि ऐसे खिलाड़ी की थी जो विपरीत परिस्थितियों में अपना सर्वश्रेष्‍ठ प्रदर्शन देता है। वर्ष 2000 के अंडर-19 वर्ल्‍डकप में उन्‍होंने 134 रन बनाने के अलावा पांच विकेट भी हासिल किए थे। रीतिंदर गजब के क्षेत्ररक्षक भी थे। इस दौर में ऐसा लग रहा था कि सीनियर लेवल पर उच्‍च स्‍तर के आलराउंडर की कमी रीतिंदर ही पूरी करेंगे। दुर्भाग्‍य से सीनियर स्‍तर पर उनका करियर ज्‍यादा नहीं चला और वे केवल 18 वनडे ही खेल पाए।

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अजय रात्रा : हरियाणा का यह खिलाड़ी वर्ष 2000 के अंडर-19 वर्ल्ड कप में विकेटकीपर की हैसियत से खेला। विकेट के पीछे बेहद चुस्‍त-दुरुस्‍त रात्रा निचले क्रम के अच्‍छे बल्‍लेबाज भी थे। टेस्‍ट क्रिकेट में भी वे एक शतक लगा चुके हैं। दुर्भाग्‍य से उनका करियर 6 टेस्ट और 12 वनडे से ज्‍यादा नहीं चल सका। अंडर-19 वर्ल्‍डकप में उन्‍हें केवल तीन पारी खेलने का मौका मिला था जिसमें से दो में नाबाद रहते हुए उन्‍होंने 25 रन बनाए थे।

 

आरपी सिंह : यूपी का बाएं हाथ का यह गेंदबाज वर्ष 2004 में अंडर-19 वर्ल्ड कप खेलने वाली टीम इंडिया के सदस्‍य था। प्रतियोगिता में उन्‍होंने आठ विकेट झटके। गेंद को दोनों ओर स्विंग कराने वाले आरपी वर्ष 2006 में टी-20 वर्ल्‍डकप जीती भारतीय टीम के भी सफल गेंदबाज रहे। दुर्भाग्‍य से सीनियर स्‍तर पर उनका करियर लंबा नहीं चल पाया। उन्‍होंने 14 टेस्‍ट और 58 वनडे मैच खेले।