भारतीय टीम ने वर्ल्डकप में तब तक सिर्फ़ एक मैच जीता था. ऐसे में उस टीम से किसी को कोई उम्मीद नहीं थी. उस टीम में कोई हीरो नहीं था. उस टीम में सीमित ओवर मैच के लिए न तो विशेषज्ञ बल्लेबाज़ था और न गेंदबाज़. फिर भी कुछ तो बात थी क्योंकि वो टीम 15 दिनों के अंदर एक इतिहास लिखने वाली थी. थोड़ी सी किस्मत, थोड़ा सा जज़्बा, निश्वार्थ प्रतिबद्धता, ढेर सारी मेहनत और हर जीत के साथ बढ़ता आत्मविश्वास. बात 1983 वर्ल्ड कप की टीम के बारे में है, जिसके कप्तान थे कपिल देव रामलाल निखंज. तब वर्ल्ड कप में हिस्सा लेना भारत के लिए आौपचारिकता भर हुआ करता था. बिना किसी उम्मीद और बगैर किसी दबाव में वर्ल्डकप खेलने गयी भारतीय टीम में एक शख़्स था, जिसकी कामयाबी एक गाथा बनने जा रही थी. मोहिन्दर जिमी अमरनाथ नाम था उसका. बल्लेबाज़ तो थे ही साथ ही ज़रूरत पड़ने पर उपयोगी गेंदबाज़ी भी कर लेते थे. उनके हरफ़नमौला प्रदर्शन का भारत की ऐतिहासिक जीत में अहम योगदान रहने वाला था. वर्ल्डकप 1983 का फाइनल मैच 25 जून को खेला गया था.
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पिछले दो बार के चैंपियन वेस्टइंडीज़ और ऑस्ट्रेलिया को एक-एक और ज़िम्बाब्वे को दो बार हराने के बाद कपिलदेव की टीम पहली बार वर्ल्ड कप के सेमीफ़ाइनल में थी. किसी को यकीन नहीं हो रहा था. इंग्लैंड के ख़िलाफ़ सेमीफ़ाइनल में मोहिन्दर अमरनाथ ने 27 रन देकर 2 विकेट लिए. दोनों बेहद बेशकीमती विकेट थे- डेविड गावर और माइक गैंटिंग. फिर मोहिंदर अमरनाथ (जिमी) ने 46 रनों की पारी खेल भारत को फ़ाइनल में पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई. ऑलराउंडर अमरनाथ मैन ऑफ़ द मैच रहे. फ़ाइनल में 2 बार की चैंपियन वेस्टइंडीज़ की टीम सामने थी. वेस्टइंडीज़ के कप्तान क्लाइव लॉयड ने टॉस जीतकर भारत को पहले बल्लेबाज़ी करने के लिए कहा था. एंडी रॉबर्ट्स, माइकल होल्डिंग, मैल्कम मार्शल की पेस बैटरी ने अपना काम कर दिया. भारत केवल 183 रन बना पाया था. अमरनाथ ने 26 रन बनाए. वे सबसे लंबे समय (80 गेंद) तक क्रीज़ पर रहे. खतरनाक कैरेबियाई गेंदबाज़ों के सामने ये आसान नहीं थे.
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लेकिन उस दिन क्रिकेट के मक्का कहे जाने वाले लॉर्ड्स के ऐतिहासिक मैदान पर शक्तिशाली वेस्टइंडीज़ के सामने 183 रन भी पहाड़ साबित हुआ. भारतीय टीम का दूसरा विकेट 50 पर गिरा, लेकिन जल्द ही स्कोर 76 पर 6 हो गया. उसके बाद जेफ़ डुजां और और मैल्कम मार्शल ने 43 रन जोड़ भारत की मुश्किलें बढ़ाने की कोशिश की. मोहिन्दर अमरनाथ ने दोनों को आउट कर खतरनाक हो रही साझेदारी को खत्म किया. स्कोर 124 पर 8 कर दिया. जीत की इबारत तय हो चुकी थी.माइकल होल्डिंग का विकेट लेकर मोहिन्दर अमरनाथ ने भारत को वर्ल्ड चैंपियन बना दिया. अमरनाथ फ़ाइनल में भी मैन ऑफ़ द मैच रहे और मैन ऑफ़ द सीरीज़ भी.
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उस साल क्रिकेट की बाइबल मानी जाने वाली पत्रिका विज्डन ने उन्हें साल के 5 सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में चुना. कह सकते हैं कि कपिल देव और मोहिन्दर अमरनाथ भारतीय क्रिकेट में बदलाव के सूत्रधार थे. 1983 वर्ल्ड कप के बाद भारतीय क्रिकेट हमेशा के लिए बदल गया.हमेशा अपनी ट्राउंजर के पॉकेट में लाल रुमाल रखने वाले "मास्टर ऑफ़ कम बैक" मोहिन्दर अमरनाथ को तेज़ गेंदबाज़ों के समक्ष बेहतरीन बल्लेबाज़ माना जाता था. 11 में से 9 टेस्ट शतक उन्होने विदेशी जमीन पर बनाए. स्वतंत्र भारत के पहले टेस्ट कप्तान लाला अमरनाथ के बेटे मोहिन्दर अमरनाथ अपने तेज़तर्रार मिज़ाज और बेबाकी के लिए भी जाने जाते हैं. एक बार उन्होने चयनकर्ताओं को "बंच ऑफ़ जोकर्स" कह डाला था. 2011 में महेन्द्र सिंह धोनी से कप्तानी की बागडोर छीनी जा रही थी, तब चयन समिति में मोहिन्दर अमरनाथ भी थे. हालांकि एन. श्रीनिवासन के हस्तक्षेप से मामला दब गया. कुछ विवादों और ढ़ेर सारी उपलब्धियों के बीच मोहिन्दर जिमी अमरनाथ नाम सुनते ही 25 जून 1983 को वर्ल्ड कप फ़ाइनल का वो दृश्य ज़ेहन में आ जाता है, जिसमें वो विकेट लेकर भीड़ से बचते लॉर्डस के पैवेलियन की ओर भाग रहे होते हैं. 35 साल बाद आज भी वो तस्वीर ताज़ी है...
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