
साल 2013 में सचिन तेंदुलकर ने विंडीज के खिलाफ आखिरी टेस्ट खेला था. अपनी आखिरी पारी में सचिन ने 74 रन बनाए. यह वही पारी थी, जिसमें पुजारा ने शतक जड़ा था, लेकिन सचिन के शोर के सामने पुजारा का शतक छिप कर रह गया था. अगर यह सीरीज सचिन का आखिरी टेस्ट था, तो इसी सीरीज से रोहित शर्मा ने अपने टेस्ट करियर का आगाज किया था. रोहित ने अपने पहले ही टेस्ट में 177 रन की पारी से आगाज किया था, लेकिन तब से लेकर अब तक जहां रोहित सफेद गेंद में दुनिया के दिग्गज खिलाड़ियों में शामिल हो गए हैं, तो उनका टेस्ट करियर उतार-चढ़ाव वाला रहा है. रोहित की तुलना में विराट, अजिंक्य रहाणे और पुजारा बहुत ज्यादा टेस्ट मैच खेल गए, लेकिन रोहित इनसे काफी ज्यादा पिछड़ गए. इसी पहलू पर भारतीय वेटरन विकेटकीपर दिनेश कार्तिक (Karthik speaks about Rohit) ने बताया कि कैसे भारतीय कप्तान रोहित ने अपने टेस्ट करियर के शुरुआती चरण में निराशा का सामना किया.
एक वेबसाइट से बातचीत में कार्तिक ने कहा कि भारत के पहलू से टेस्ट क्रिकेट में ऐसे कम ही बल्लेबाज हुए हैं, जिन्होंने ऐसी शुरुआत ही, जैसी रोहित ने की थी. करियर के शुरुआती टेस्टों में उन्होंने शतक जड़े. तब बड़े वर्ग ने सोचा कि जब सचिन तेंदुलकर रिटायर हो गए हैं, तो रोहित अब यहां से तमाम सवालों के जवाब देंगे. लेकिन जीवन और खेल ऐसी बाते हैं, जो कभी भी आपके हिसाब से नहीं चलते. और तब से लेकर अभी तक रोहित ने खासी मुश्किलों का सामना किया है.
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कार्तिक ने कहा कि रोहित ने कुछ लोगों को जवाब दे दिया है, जबकि कुछ लोगों को नहीं दिया है. रोहित ने हमेशा यह विश्वास किया कि उनके पास टेस्ट क्रिकेट को कुछ देने के लिए था. मेरे और उनके बीच हुई बातचीत में रोहित ने हमेशा महसूस किया कि हो सकता है कि कुछ चीजें उनके हिसाब से नहीं हुई हों. कभी-कभी उन्होंने कुछ खराब शॉट खेले, लेकिन रोहित को भरोसा रहा कि वह वापसी करेंगे. विकेटकीपर बोले कि रुचिकर बात यह है कि रोहित ने उनती तेज गति से वापसी नहीं की और उन्होंने इस तथ्य के आगे हार मान ली या यह हो सकता है कि उन्होंने स्वीकार लिया कि अब उनके लिए व्हाइट बॉल क्रिकेट ही सबकुछ है.
बता दें कि जहां रोहित अभी तक अपने करियर में 233 वनडे और 132 टी20 मैच खेल चुके हैं, तो टेस्ट मैच उन्होंने सिर्फ 45 ही खेले हैं. रोहित इतिहास के इकलौते ऐसे बल्लेबाज हैं, जिन्होंने वनडे में तीन दोहरे शतक जड़े हैं, तो टी20 में उनके बल्ले से चार शतक निकले हैं, लेकिन 45 टेस्ट में वह 8 ही शतक बना सके हैं. और दूसरे चरण में भी शुरुआती दो शतक जड़ने के बाद उनके टेस्ट करियर में रन बनाने की गति या औसत वैसा नहीं रहा, जैसा होना चाहिए था.
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