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This Article is From Jul 25, 2014

वर्ल्ड हेपटाइटिस डे : महामारी की शक्ल ले सकती है ये बीमारी

Hridayesh Joshi, Rajeev Mishra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 28, 2021 08:46 am IST
    • Published On जुलाई 25, 2014 19:12 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 28, 2021 08:46 am IST

वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे के मौके पर स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था मेडिसन सेन्स फ्रंटियर (एमएसएफ) यानी डॉक्टर्स विदआउट बॉर्डर्स ने एक ट्विटर कैंपेन शुरू किया है। ये संस्था सरकार से हेपेटाइटिस-सी के इलाज के लिए अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में आई नई दवा सोफोस्बोविर को भारत में लाने और इसे मरीज़ों को सस्ते दाम में उपलब्ध कराने का दबाव बना रही है।

जानकार चेतावनी दे रहे हैं कि भारत में हेपेटाइटिस-सी महामारी की शक्ल ले सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्लूएचओ का अनुमान है कि देश में हेपेटाइटिस-सी के सवा करोड़ मरीज़ हैं, लेकिन इससे जुड़ा एक खतरनाक पहलू ये है कि इसका वाइरस मरीज़ के भीतर होने के बावजूद लंबे वक्त तक अपना कोई लक्षण नहीं दिखाता और जब बीमारी का पता चलता है तब तक काफी देर हो चुकी होती है, क्योंकि तब तक इंसान का लीवर इतना खराब हो जाता है कि उसका इलाज मुमकिन नहीं होता।

हेपेटाइटिस-सी का वाइरस संक्रमित ख़ून चढ़ाए जाने से इंसान के शरीर में पहुंचता है। इसके अलावा नशेड़ियों में एक ही सीरिंज के इस्तेमाल और कुछ लोगों में असुरक्षित यौन संबंध से भी फैलती है।

सबसे खतरनाक बात ये है कि हेपेटाइटिस-सी उन लोगों में अधिक पाया जा रहा है, जो एचआईवी से ग्रस्त हैं। इसके बावजूद देश में इस बीमारी से प्रभावित लोगों की पहचान के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है। एनडीटीवी इंडिया ने इस बारे में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन से बात की और उनको कुछ सवाल भेजे, जिनका जवाब सरकार ने अभी तक नहीं दिया है।

एमएसएफ की डॉ होमा मंसूर कहती है, 'देश में सवा करोड़ हेपेटाइटिस-सी के मरीज़ होने का दावा तो डब्लूएचओ ही कर रहा है। मरीज़ों की संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है। जब तक ये पता नहीं चलता कि असल में कौन व्यक्ति इससे प्रभावित है, तो इसका इलाज़ कैसे किया जाएगा।'

जिन लोगों में इस बीमारी की पहचान हो भी जाती है, उनकी राह आसान नहीं है क्योंकि हेपेटाइटिस-सी के इलाज के लिए दी जाने वाली दवा पिगलेटेट इंटरफैरोन काफी महंगी है। एक मरीज़ के इलाज में तीन लाख रुपये लगते हैं, लेकिन अगर बीमारी का पता देर से चले तो ज़रूरी नहीं कि डॉक्टर मरीज़ को इंटरफैरोन दे पाएं।

ऐसे में एमएसएफ और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहे संगठन बाज़ार में आई नई दवा सोफोस्बोविर को भारत में उपलब्ध कराने की मांग कर रहे हैं। अमेरिकी कंपनी गिलियड साइंड की ये दवा बेहद कारगर है और किसी भी स्टेज में बीमारी का पता चलने पर भी मरीज को ठीक करती है। दिक्कत है इस दवा की कीमत 12 हफ्ते की दवा का कोर्स 84 हज़ार डॉलर यानी 50 लाख रुपये से अधिक है।

हेपेटाइटिस के खतरे से जूझ रहे जानकार कहते हैं कि सरकार चाहे तो गिलियड साइंस के साथ बात करके इस दवा को सस्ते दाम में भारत में उपलब्ध करा सकती है। पीपुल्स हेल्थ मूवमेंट के अमित सेन गुप्ता का कहना है, 'मिस्र में जहां देश की आबादी के 15 प्रतिशत लोगों को हेपेटाइटिस-सी की समस्या है, वहां कंपनी ये दवा 84 हज़ार डॉलर से घटाकर 900 डॉलर में देने को तैयार है। लेकिन भारत अगर कोशिश करे तो देश के भीतर यही दवा और सस्ते दाम पर उपलब्ध की जा सकती है।'

एक औऱ दिक्कत दवा बनाने वाली कंपनी के पेटेंट अधिकार को लेकर है। गिलियड साइंस ने भारत में भी इस दवा के पेटेंट के लिए अर्ज़ी दी हुई है। हालांकि उसकी अर्ज़ी के खिलाफ कुछ संगठनों ने अपील भी कर दी है। सेन गुप्ता कहते हैं, 'हमें उम्मीद है कि गिलियड साइंस के पेटेंट के दावे को नहीं माना जाएगा, लेकिन अगर उसे पेटेंट मिला भी तो सरकार के पास कानूनी विकल्प खुले हैं और वो अपनी कंपनियों को लाइसेंस देकर सस्ती दवा उपलब्ध करा सकती है।'  

एक अहम बात ये भी है कि हेपेटाइटिस-सी के इलाज के लिए सोफोस्बोविर की ही तरह करीब आधा दर्जन दवाएं बाज़ार में और आने वाली हैं जिससे इस क्षेत्र में क्रांति आने का दरवाज़ा खुलेगा, लेकिन उससे पहले ज़रूरी है कि सरकार राष्ट्रीय स्तर पर इस वाइरस से प्रभावित लोगों की पहचान करना शुरू करे।

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