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This Article is From Oct 15, 2018

क्या सही में नीतीश अगले 10 सालों तक रहेंगे मुख्यमंत्री...

Manish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 16, 2018 08:35 am IST
    • Published On अक्टूबर 15, 2018 23:43 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 16, 2018 08:35 am IST
हाल ही में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ज्वाइन करने वाले चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का मानना है कि अगले दस सालों तक नीतीश कुमार ही बिहार के मुख्यमंत्री रहेंगे. उनके इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं. पहला, पहली बार जेडीयू के किसी नेता ने यह माना है कि अगले दस वर्षों तक भले बिहार की राजनीति में उन्हें कोई चुनौती नहीं हो लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में उनकी कोई दरकार नहीं रही. नीतीश भले भाजपा के साथ सरकार चला रहे हों लेकिन एक सहयोगी के रूप में राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर जैसे वो अब कन्नी काटते हैं उससे वो अपने सभी राजनीतिक विरोधियों का ही हित साधते हैं. धीरे-धीरे राष्ट्रीय राजनीति में नीतीश कुमार की प्रासंगिकता उनके अपने हाव भाव के कारण कम होती जा रही है.

जहां तक बिहार की राजनीति का प्रश्न है, निश्चित रूप से नीतीश को फ़िलहाल चुनौती देने वाला कोई नहीं है. पिछले दस वर्षों में बिहार की राजनीति का दो सच रहा है, एक नीतीश के नाम और चेहरे पर जनता ने लगातार तीन विधानसभा चुनावों में उन्हें वोट दिया है. दूसरा वो चाहे लालू हों या रामविलास पासवान या सुशील मोदी या इनका दल राजद, लोक जनशक्ति, भाजपा या कांग्रेस सबके साथ मिलकर सरकार बनायी चलायी और सबने उनके ख़िलाफ़ ज़ोर आज़माइश की लेकिन विधानसभा चुनावों में उन्हें मुंह की खानी पड़ी.

लेकिन इसमें नीतीश के पक्ष में जो सबसे बड़ी बात है वो यह कि उनके विरोधी और आलोचक भूल जाते हैं कि उनके कामों की बदौलत जनता के बीच उनकी अपनी विश्वासियता है. वो चाहे पहले कार्यकाल में विधि व्यवस्था या सड़क की स्थिति में सुधार हो या राज्य में महादलित या अति पिछड़ा समुदाय के लिए कई सारी योजनाओं का क्रियान्वयन, ये सब ऐसी बातें रहीं जिसके कारण बिहार के वंचित समाज जिनको लालू ने स्वर दिया, उसको नीतीश ने सामाजिक रूप से शक्ति देकर बढ़ाया. इसके अलावा नीतीश की कई सारी योजनाएं ऐसी रहीं जिसका लाभ समाज के सभी जाति के लोगों को एक साथ मिला. जैसे वर्तमान में हर घर बिजली योजना हो या पहले कार्यकाल में साइकल या पोशाक योजना.

नीतीश के लिए सब कुछ उनके दांवों के अनुसार नहीं चल रहा. जैसे इन दिनों बिहार के किसी गांव और क़स्बे मे आप जाएंगे तो आपको तीन बातें मुख्य रूप से सुनने को मिलेंगी. एक शराबबंदी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के तमाम प्रयासों और दावों के बावजूद फ़ेल है. दूसरा उनके सात निश्चय में एक हर घर नल का जल जिसका ज़िम्मा उन्होंने पंचायती राज संस्था के माध्यम से ख़ासकर वार्ड मेम्बर के माध्यम से कराने की ठानी है. वो अबतक का सबसे घटिया निर्माण का एक उदाहरण है और साथ-साथ ये अब तक का सबसे बड़ा घोटाला है जिसकी जब भी जांच होगी तो सैकड़ों नहीं हज़ारों की संख्या में मुखिया और वार्ड सदस्य जेल जाएंगे.

नीतीश कुमार की शराबबंदी के प्रति गंभीरता पर कोई सवाल नहीं कर सकता. लेकिन अगर आज गली-गली गांव-गांव शराब लोगों को महंगे दर पर मुहैया हो रही है तब उसके लिए ज़िम्मेवार भी नीतीश कुमार हैं, जो गृह विभाग के मुखिया हैं. सब जानते हैं कि बिहार पुलिस ने नीतीश कुमार के महत्वाकांक्षी समाज सुधार की योजना शराबबंदी को पूरे तरीक़े से विफल कर दिया है. आज भले मुख्यमंत्री कहें कि चाहे उन्हें ज़मीन में गाड़ दें लेकिन शराबबंदी से समझौता नहीं करेंगे लेकिन इसके पीछे की सच्‍चाई है कि आज शराब पीने वालों को शराब सुलभ, सुगम रूप से उपलब्ध है. इस धंधे में लगे लोगों और अपराधियों की नयी फ़ौज ने पिछले दो वर्षों में राजधानी पटना से गांव-गांव तक समानांतर सरकार क़ायम की हुई है. उसके संरक्षक, सहभागी की भूमिका में पुलिस के एसपी स्तर के अधिकारी से लेकर थाना प्रभारी से सिपाही तक हैं. इसका प्रमाण है कि एसपी के घर पर छापेमारी हो रही है, आय से अधिक संपत्ति ज़ब्त हो रही है, थाना प्रभारी खुले आम शराब माफ़िया की तरफ़दारी करते हैं और जेल जाते हैं लेकिन ये आज बिहार में सबसे फलता फूलता धंधा है.

यूं तो शराबबंदी पूरे विश्व में कहीं सफल नहीं हुई लेकिन नीतीश कुमार ने इसके बावजूद शराबबंदी करने का साहस जुटाया. ये उनका चुनाव पूर्व वादा था जिसे उन्होंने पूरी ईमानदारी से लागू किया. नि:संदेह शुरू के दिनों में बिहार के समाज पर इसका काफ़ी सकारात्मक असर दिखा. लोगों में ख़ासकर महिलाओं में इसको लेकर काफ़ी जोश था. हर घर में जहां शराब पीने वाले लोग थे उस घर में वृद्ध से लेकर बच्चे तक नीतीश कुमार की वाहवाही करते सुने जाते थे. नीतीश भी शराबबंदी को सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा लेकिन जिस गृह विभाग के वो मुखिया हैं उसके एक एक अधिकारी मतलब राज्य पुलिस ने इसे विफल करने में एड़ी चोटी एक कर दी.

लेकिन उसके पहले नीतीश कुमार के अपने अनुभव को समझिए. वो जहां जाते हैं वहां उन्हें ग़रीब, दलित वर्ग के लोगों का स्नेह मिलता है और ये सुनने को मिलता है कि आधे लोग पी कर मर गये और आधे लोगों को आपने बचा लिया. पहले जब शराब उपलब्ध थी तो लोग पी कर जल्द मतलब 50-60 की उम्र तक उनका निधन हो जाता था. लेकिन नीतीश को लगता है कि इस शराबबंदी का असर आप गाव, शहर कहीं जइए और पहले की तुलना में माहौल देखिए, आपको पी कर कोई घूमता नहीं मिलेगा. हालांकि वो मानते हैं कि इक्का दुक्का लोग गड़बड़ ज़रूर करेंगे लेकिन ऐसे लोगों पर नज़र रखी जा रही है. हर व्यक्ति आदर्शवादी नहीं हो सकता. ऐसे लोग आज नहीं तो कल धरे जाएंगे. नीतीश का मानना है कि चंद उदारवादी लोग उनकी इस शराबबंदी की आलोचना करते रहेंगे.

नीतीश शराब की जंग में पस्त हुए हैं तो अपनी ग़लतियों से. उन्होंने अपने अधिकारियों पर ज़रूरत से ज़्यादा भरोसा किया. शराबबंदी लागू होने के चार महीने पहले से जितनी बैठकें हुईं उन बैठकों में लिए गये फ़ैसलों को एक बार देख लें तो कभी किसी स्तर पर उसे लागू करने की कोई गंभीरता नहीं दिखायी गई.

इन सबके बावजूद अगर प्रशांत किशोर अगर भविष्यवाणी कर रहे हैं कि नीतीश दस साल और मुख्यमंत्री रहेंगे तो उसका सच यही है कि वर्तमान में विपक्ष के पास चेहरा तो है तो लेकिन विश्वसिनियता नहीं. और नीतीश अपने कामों की बदौलत एक लंबी रेखा खींचते चले जा रहे हैं जिसको आप दलों के गठबंधन से मात नहीं दे सकते.

मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

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