पिछले साल अप्रैल में तब के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि मरी हुई गाय के अन्दर कम से कम 30 किलो प्लास्टिक मिलता है। सड़क पर फिरने वाली गायों के अन्दर प्लास्टिक के अलावा जहरीला सिन्दूर, चुनरी, ताम्बे के सिक्के और लोहे की कीलें तक मिलती हैं, जिससे गायों की आंतें, भोजन की नली को गम्भीर अन्दरूनी घाव होते हैं और वे मर जाती हैं। डाक्टरों के अनुसार प्लास्टिक को ऑपरेशन से निकालना होता है। सिन्दूर में लेड ॲक्साइड घातक होता है और कीलों से तो आंतों में छेद हो जाते हैं। गायें इनका सेवन इसलिए भी कर लेती हैं क्योंकि ज्योतिष में भाग्य सुधारने के उपायों के लिए लोग इन चीजों को छोड़ जाते हैं।
प्लास्टिक की शिकार ज्यादातर गायें शहरों में होती हैं, लेकिन गाय की हालत डेयरी फार्म कल्चर से भी बिगड़ी है। एक तरफ दूध उत्पादन पर जोर रहता है जिसके लिए उनको हारमोन्स दिए जाते हैं साथ ही ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए भी दवाईयां, आर्टिफीशियल इन्सेमिनेसन की प्रक्रिया भी दर्दनाक होती है। इस पर अगर बच्चा बछड़ा हो जाए तो शहरों में तो मरने के लिए छोड़ दिया जाता है क्योंकि वह दूध नहीं दे सकता। वे गायें भी फिरती रहती हैं जो बूढ़ी होकर किसी काम की नहीं...तो इनका प्रयोग बूचड़खानों में होता है। ज्यादातर गैरकानूनी लेकिन यह भी तो सच्चाई है कि भारत बीफ प्रोडक्शन में दुनियाभर में पहले स्थान पर पहुंच रहा है।
गौरक्षा के नाम पर कुकुरमुत्तों की तरह पनप रहे इन दलों का काम करने का तरीका जब हिंसक होता है तो सवाल उठते हैं।
- 27 जुलाई 2016 को मध्यप्रदेश के मंदसौर में दो महिलाओं की रेलवे स्टेशन पर मांस होने के कारण पिटाई होती है...दोनों महिलाएं मुस्लिम थीं।
- 20 जुलाई 2016 को गुजरात के उना में दलित समुदाय के 7 लोगों की पिटाई हो जाती है। वे मरी गाय की खाल निकाल रहे थे।
- 22 जून 2016 को उत्तरप्रदेश के मथुरा में एक ट्रक में आग लगा दी जाती है। चौमूहन इलाके के लोग नेशनल हाईवे 2 को ब्लॉक भी कर देते हैं क्योंकि ट्रक में 30 मरी हुई गायें थीं।
- 10 जून को गुड़गांव गौरक्षा दल के सदस्य कथित बीफ स्मगलर्स को जबरदस्ती गाय का गोबर और मूत्र पिलाते हैं।
- 3 जून 2016 को राजस्थान के प्रतापगढ़ में बजरंग दल और गौरक्षा दल के करीब 150 लोग गाय का ट्रांसपोर्ट करने वाले 3 लोगों की बहुत पिटाई करते हैं और एक के पूरे कपड़े उतार दिए जाते हैं।
- 27 मार्च 2016 को हरियाणा के कुरुक्षेत्र में एक व्यक्ति को मार दिया गया, जब वह दो बैलों को अपने खेतों में काम के लिए ले जा रहा था।
गौरक्षकों का कहना है कि उनको बदनाम किया जा रहा है गुजरात में पढ़े-लिखे समुदायों से लोग इस काम से जुड़ रहे हैं। एमबीए, इंजीनियर पैसा जमा कर दल बना रहे हैं। इनका कहना है कि जब कानून इजाज़त नहीं देता तो फिर क्यों, लेकिन साथ में कहते हैं कि हम पुलिस को लेकर चलते हैं और कानून को हाथ में नहीं लेते। इस काम में लगी नेहा पटेल ने कार्यक्रम बड़ी खबर में मंदसौर हिंसा की निंदा की और कहा कि हिंसा नहीं होनी चाहिए।
यह भी हकीकत है कि दलित और मुस्लिम समाज को गौमांस के प्रयोग के नाम पर तिरस्कार झेलना पड़ता है, लेकिन जब अगड़ी जाति के लोग ग्रामीण भारत में अपनी बूढ़ी गायों का कोई उपयोग नहीं कर पाते वे उन्हें बेच देते हैं....मरती हैं तो इन्हीं समुदायो के हवाले की जाती हैं। पहाड़ों में भी ऐसी गायों को छोड़ दिया जाता है। बांध दिया जाता है मरने के लिए, जो काम की नहीं रहतीं। इन्हीं समुदायों की आखिरी जिम्मेदारी हो जाती है।
एक तरफ तो मध्यप्रदेश के गृहमंत्री जो महिलाओं की पिटाई को जायज ठहराते हैं तो केंद्र में सामाजिक कल्याण मंत्री थावरचन्द गहलोत बचते हुए बयान देते हैं। उनका कहना है कि यह सामाजिक संस्थाएं हैं जो लोग बना लेते हैं। लेकिन इन लोगों को पहले सच्चाई पता कर लेना चाहिए।
हरियाणा में गौवंश संरक्षण और गौसंवर्धन कानून 2015 तो बना लिया गया है और अब एक टास्क फोर्स बनाने की तैयारी है जो गायों को सहेजे, लेकिन शायद जरूरत है सही सोच की जिसका संवर्धन जरूरी हो और जो न उस पर हिंसा न हो।
(निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं)
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