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This Article is From Feb 29, 2016

बजट 2016 : वादे पूरे करने के लिए नहीं किए गए ठोस उपाय

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 29, 2016 17:03 pm IST
    • Published On फ़रवरी 29, 2016 16:58 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 29, 2016 17:03 pm IST
यह बीजेपी सरकार का तीसरा बजट है, जो पार्टी के घोषणापत्र तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन का सालाना दस्तावेज भी माना जा सकता है। राजनीतिक आग्रहों से इस बार के बजट के थीम को गांव, गरीब और किसान के लिए रखा गया है...

सराहनीय प्रयास...
  • क्रूड ऑयल की कीमतों में कमी का लाभ आम जनता को नहीं मिला है, जिससे सरकार 360 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा भंडार का दावा कर रही है।
  • राजकोषीय घाटा 3.9 फीसदी तक सीमित रखने में सफलता मिली है, और 2017 के लिए 3.5 फीसदी घाटे का अनुमान है।
  • 'आधार' केंद्र सरकार की योजनाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिस पर कानूनी विवाद सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच के सम्मुख लंबित है। सरकार 'आधार' एवं प्राइवेसी पर कानून बनाने के लिए सहमत हुई है, जो एक सराहनीय प्रयास है।

पुराने वायदों पर अमल न होने से हताशा...
  • सातवें वेतन आयोग के क्रियान्वयन के लिए ठोस प्रावधान नहीं किया गया, जिसमें 1.02 लाख करोड़ का खर्च अनुमानित है।
  • भूतपूर्व सैनिकों के लिए ओआरओपी के क्रियान्वयन हेतु ठोस प्रावधान नहीं।
  • मैट की दर को 30 से 25 फीसदी करने का वादा नहीं निभाने से उद्योग जगत हो सकता है नाराज़

बजट में विफलताएं...
  • काले धन पर टैक्स और 45 फीसदी पेनल्टी देने की योजना क्या काले धन पर मोदी सरकार के वादे को पूरा करने में सफल रहेगी...?
  • सर्विस टैक्स बढ़ने से आम जनता की यात्रा, होटल, बीमा, इत्यादि सभी सेवाएं महंगी हो जाएंगी।
  • सब्सिडी के दुरुपयोग को रोकने की नीति बनाने में फिर असफलता।
  • पुरानी सरकार द्वारा राजनीतिक कारणों से एयरपोर्ट में हजारों करोड़ का नुकसान हुआ था, जिनमें 160 एयरपोर्ट को 50-100 करोड़ प्रति निवेश से फिर से बहाल करने का प्रयास किया जाएगा।
  • विदेशी कंपनियों या देश में उनके ग्राहकों से सर्विस टैक्स से वसूली के प्रावधानों का पालन कैसे सुनिश्चित हो, इस पर सरकार फिर विफल रही।
  • बीमार होते बैंकों में सरकार 25,000 करोड़ रुपये फिर डालेगी, जिसका पैसा जनता की जेब से जाएगा, लेकिन विजय माल्या जैसे उद्योगपतियों की मौज में कोई कमी नहीं आएगी।
  • जीएसटी में राज्यों की सहमति मिलने तक केंद्र द्वारा एक्साइज और सर्विस टैक्स के एकीकृत ढांचे की घोषणा से इसके पहले चरण के क्रियान्वयन की शुरुआत की जा सकती थी, परंतु अब जीएसटी पारित भी हुआ तो अगले वर्ष 2017 से ही लागू हो पाएगा।

खेती और गांवों के विकास के लिए कहां से आयेगा पैसा...?
खेती के नाम पर सर्विस टैक्स में 0.5 फीसदी का सेस लगाकर सर्विस टैक्स को 14.5 से 15 फीसदी कर दिया गया है। इसके पहले स्वच्छता अभियान के नाम पर सेस की वसूली का पैसा सही जगह पर खर्च नहीं हुआ था।

इस बार के बजट में - खेती के लिए 9 लाख करोड़ का कर्ज, मनरेगा के लिए 38,500 करोड़ का प्रावधान, ग्रामीण पंचायतों के लिए 2.87 लाख करोड़ का आवंटन - किया गया है। 130 करोड़ की आबादी में सिर्फ 3.5 करोड़ लोग टैक्स के दायरे में हैं, जिनकी संख्या बढ़ाने या बड़े खेतिहरों पर टैक्स लगाने का प्रयास नहीं हुआ। विदेशी कंपनियों तथा ई-कॉमर्स से टैक्स वसूली के लिए स्पष्ट प्रावधान भी नहीं किए गए। उद्योगपतियों से छह लाख करोड़ के फंसे कर्जों की वसूली के लिए सख्त प्रावधान नहीं हुए, तो असल सवाल यह है कि ग्रामीण भारत के लिए पैसा कहां से आएगा और क्या ये वादे कागजी ही रह जाएंगे।

कागज़ी वादे और चुनावी घोषणाएं बन सकती हैं सरकार का सिरदर्द...
  • वर्ष 2019 तक देश में सभी सड़क बनाने का वादा।
  • 1 मई 2018 तक देश के हर गांव में बिजली।
  • प्रधानमंत्री सिंचाई योजना से 28.5 लाख हेक्टेयर खेती की जमीन को सिंचाई सुविधा
  • 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा कैसे पूरा होगा, इस बारे में बजट में विस्तार से नहीं बताया गया।

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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