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This Article is From Jan 15, 2016

जुर्माने के 'ऑड' सिस्टम से 'ईवन' हो सकती है देश में कानून की व्यवस्था...

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 15, 2016 13:39 pm IST
    • Published On जनवरी 15, 2016 13:33 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 15, 2016 13:39 pm IST
दिल्ली में प्रदूषण पर काबू पाने के इरादे से शुरू की गई आम आदमी पार्टी (आप) सरकार की सम-विषम (ऑड-ईवन) योजना को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल सुनवाई से इंकार करते हुए इसे प्रचार का हथकंडा बताया। आज 15 जनवरी को खत्म होने वाली ऑड-ईवन योजना पर हाईकोर्ट द्वारा कोई राहत नहीं मिलने पर भी दायर की गई इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट यदि भारी जुर्माना लगाती तो कानून के शासन में विफलता के मारक प्रदूषण को कम करने की भी अच्छी शुरुआत होती। 15 जनवरी के बाद बगैर 2000 रुपये जुर्माने के भी ऑड-ईवन को लागू किया जाए तो जनता के कथित स्वैच्छिक सहयोग के दावों का सच सामने आ जाएगा। इसके बावजूद ऑड-ईवन ने कानून के शासन की सफलता का व्यावहारिक रास्ता ज़रूर दिखाया है।

कल 14 जनवरी को ही एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के निजी मेडिकल कालेज द्वारा निर्धारित सीटों से अधिक एडमिशन लेने पर पांच करोड़ का जुर्माना लगाया है, वहीं दूसरी ओर ऐसे जुर्माने के अभाव में मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय की जानकारी में 22 से अधिक फर्जी विश्वविद्यालय देश में शैक्षिक प्रदूषण फैला रहे हैं। ऑड-ईवन की नज़ीर पर अगर अदालतों द्वारा गलत तथा फर्जी मुकदमों पर भारी जुर्माना लगाया जाए, तो निर्दोष लोगों को राहत मिलेगी और अदालतों का बोझ भी कम होगा।

बड़े मामलों में कोई कार्रवाई नहीं करने वाली पुलिस ने राजनैतिक दबाव की वजह से कॉमेडियन कीकू शारदा की गिरफ्तारी की। इस तरह के मामलों में लापरवाह अधिकारियों के विरुद्ध भारी जुर्माने से पुलिस व्यवस्था की जवाबदेही तय की जा सकती है। जांच में ढिलाई, समय पर चार्जशीट फाइल न करना, एफआईआर दर्ज न करना तथा आपराधिक मामलों में गैरकानूनी तरीके से मीडिया को ब्रीफ करने पर पुलिस अधिकारियों पर सख्त जुर्माना क्यों नहीं लगना चाहिए...?

राजनैतिक नेताओं द्वारा चुनाव और अन्य रैलियों के समय गैरकानूनी होर्डिंग-पोस्टर लगाने पर नोटिस के बजाए जुर्माना लगाने से लोकतांत्रिक व्यवस्था स्वस्थ होने के साथ-साथ सार्वजनिक संपत्ति का बेहतर संरक्षण भी हो सकेगा। संसद और विधानसभा में अनुपस्थित सदस्यों की वजह से कई बार कोरम भी पूरा नहीं होता। ऐसे माननीय सदस्यों पर भारी जुर्माने से संसद में साड़ियों पर चर्चा के अलावा संसदीय कामकाज बेहतर तरीके से हो सकेगा। राजनेताओं द्वारा सरकारी आवास खाली न करना, बिजली-फोन का भुगतान न करना और सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान पर भारी जुर्माने (हार्दिक पटेल मामले में अदालती टिप्पणी के अनुसार) से देश में कानून के शासन की सही शुरुआत हो सकती है।

कुछ दिन पूर्व कई वरिष्ठ अधिकारियों को लंबे समय से अनुपस्थित रहने पर बर्खास्त कर दिया गया, लेकिन अगर उन पर भारी जुर्माना लगाया गया होता, तो भविष्य में ऐसे मामले नहीं आते। सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय मुकदमा नीति के विरुद्ध अपील फाइल करना, आरटीआई का जवाब न देना, अदालतों के आदेश का पालन नहीं करना और जनता के काम में विलंब पर मेमो की बजाय जुर्माना लगाने से सुस्त नौकरशाही जागेगी तथा प्रशासन की जवाबदेही भी बढ़ेगी।

जनता से जुड़े छोटे मामलों यथा चेक बाउन्सिंग में मुकदमा चलाने की बजाए त्वरित जुर्माना लगाने की व्यवस्था से सरकार और अदालतों का काम कम होगा और जनता भी सजग रहेगी। सरकार जब सार्वजनिक जमीन पर अवैध बस्तियों को कानूनी दर्ज़ा दे रही है, तब निजी मकानों में छोटे अतिक्रमणों को भारी जुर्माना लगाकर कानूनी बनाने से मास्टर प्लान यथार्थवादी बनेंगे तथा निगमों की सालाना आय भी बढ़ेगी। आयोगों द्वारा समय पर रिपोर्ट न देने पर आयोग के सदस्यों पर किया गया पूर्ण व्यय वसूले जाने की व्यवस्था भी होनी चाहिए। गैरकानूनी पार्किंग माफिया तथा गैरकानूनी माइनिंग पर आपराधिक कार्रवाई चालू करने से पहले सख्त जुर्माने से ऐसे अपराध कम होंगे।

भारी जुर्माने के डर के अलावा दिल्ली में ऑड-ईवन योजना की सफलता का श्रेय मेट्रोमैन श्रीधरन को मिलना चाहिए, जिन्होंने गठबंधन सरकार के दौर में समयबद्ध तरीके से मेट्रो का नेटवर्क खड़ा कर दिया। मेट्रो से पहले दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन के लिए डीटीसी का ही विकल्प था, जिसमें 40 फीसदी से अधिक दिल्लीवासी टिकट नहीं लेने के अभ्यस्त थे। अब मेट्रो में सफर करने वाले सभी यात्री टिकट लेते हैं, जो दिल्ली में अराजकता के प्रदूषण को खत्म करने की पहली संस्थागत शुरुआत थी। उम्मीद है, दिल्ली में ऑड-ईवन रूल की सफलता में भारी जुर्माने का जो योगदान रहा, उसे समझते हुए जुर्माने की 'ऑड' व्यवस्था को देशव्यापी तरीके से लागू किया जाएगा, ताकि कानून की 'ईवन' व्यवस्था के प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके।

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और टैक्स मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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