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This Article is From Aug 10, 2017

साइंस मार्च : ऐसा क्या हुआ कि देश के हज़ारों वैज्ञानिकों को सड़क पर उतरना पड़ा...?

Sushil Kumar Mohapatra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 10, 2017 14:04 pm IST
    • Published On अगस्त 10, 2017 13:27 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 10, 2017 14:04 pm IST
22 अप्रैल 2017 को वॉशिंगटन डीसी के नेशनल मॉल के सामने जब हज़ारों की संख्या में वैज्ञानिक हाथ में पोस्टर लेकर सड़क पर उतरे थे तब अलग अलग देशों से उन्हें समर्थन मिला था. दुनिया के 600 शहरों के वैज्ञानिक इनके समर्थन में मार्च करते हुए नज़र आए थे. ‘साइंस फ़ॉर मार्च’ के नाम से लोकप्रिय हुई इस मार्च का मुख्य मकसद था अमेरिका की ट्रंप सरकार की पॉलिसी के खिलाफ आवाज़ उठाना. ट्रंप के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका की साइंस पॉलिसी में कई बदलाव आए हैं. पॉलिसी मेकिंग में वैज्ञानिकों की भूमिका कम हो गई है. ट्रंप सरकार ने वैज्ञानिक रिसर्च के लिए फंड भी कमी कर दिया है.

भारत के कई शहरों में साइंस मार्च : बुधवार को भारत के 30 शहर में इस तरह का मार्च देखने को मिला. हज़ारों की संख्या में वैज्ञानिक, रिसर्च स्कॉलर और छात्र मार्च करते हुए नज़र आए. दिल्ली में करीब 300 वैज्ञानिकों और छात्रों ने मंडी हाउस से जंतर मंतर तक मार्च किया. इन वैज्ञानिकों की मांग है और जो सबसे महत्पूर्ण मांग है, वह है वैज्ञानिक रिसर्च के लिए ज्यादा धनराशि. दरअसल सरकार द्वारा दी गई धनराशि को लेकर वैज्ञानिक खुश नहीं है. इन वैज्ञानिकों का कहना है कि जीडीपी के सिर्फ 0.9 प्रतिशत को ही वैज्ञानिक रिसर्च के लिए दिया जाता है जो काफी कम है. 
 
science march

रिसर्च के लिए ज्यादा धनराशि की मांग : अगर दूसरे देश के साथ तुलना किया जाए तो इस मामले में हम लोग बहुत पीछे हैं. साउथ कोरिया अपने वैज्ञानिक रिसर्च के लिए जीडीपी के 4.15 प्रतिशत खर्च करता है. जापान में यह 3.47 प्रतिशत है जबकि स्वीडन सरकार 3.16 प्रतिशत और डेनमार्क 3.08 प्रतिशत खर्च करता है. ऐसे में इतनी कम राशि में इन देशों के साथ सुविधाओं और उत्पादकता के मामले में प्रतिस्पर्धा करना संभव नहीं है. भारत के वैज्ञानिक जीडीपी के तीन प्रतिशत रिसर्च के लिए मांग कर रहे हैं. इसके अलावा 7 वें वेतन आयोग की सिफ़ारिशों को ध्यान में रखते हुए संस्थानों और वैज्ञानिक संगठनों के लिए वित्तीय सहायता नहीं बढ़ाई गई है, जिसके परिणामस्वरूप अधिकांश संगठनों को वित्तीय संकट में धकेल दिया गया है. ऐसे में उच्च गुणवत्ता और मजबूत विज्ञान के लिए धनराशि की कमी है.  

शिक्षा प्रणाली उपेक्षित है : इन वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत में शिक्षा प्रणाली को गंभीरता से उपेक्षित कर दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप आज़ादी के 70 वर्षों के बाद भी देश का एक बड़ा हिस्सा अनपढ़ या अर्ध-साक्षर है. भारत में सरकारी स्कूल सिस्टम सही रास्ते पर नहीं है. कई जगह सही स्कूल बिल्डिंग नहीं हैं, टीचरों की कमी है और बच्चों के लिए लेबोरेट्री सुविधा भी नहीं है जिसकी वजह से अधिकांश बच्चे वैज्ञानिक जनशक्ति का एक हिस्सा होने के अवसर से वंचित हैं. इन वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत में शिक्षा में खर्च हो रहे बजट बहुत कम है.

अगर दूसरे देश के साथ तुलना किया जाए संयुक्त राज्य अमेरिका अपने जीडीपी के 6.4%, न्यूजीलैंड 6.9%, उत्तर कोरिया 6.7%, नॉर्वे 6.5%, इज़राइल 6.5%, डेनमार्क 8.7%, बेल्जियम 6.6%, फिनलैंड  6.8% और क्यूबा जीडीपी के12.4% शिक्षा के क्षेत्र में खर्च करता है जबकि भारत में यह लगभग 3 प्रतिशत है. ऐसे में वैज्ञानिक मांग कर रहे हैं कि भारत सरकार शिक्षा पर केन्द्रीय और राज्य सरकारों के संयुक्त व्यय को जीडीपी का 10% तक कर दे. 

वीडियो-  जंतर मंतर पर जुटा वैज्ञानिक समुदाय


अवैज्ञानिक विचारों के लेकर चिंता जाहिर की गई : स्कूल और कॉलेज में दी जा रही शिक्षा को लेकर भी इन वैज्ञानिकों ने चिंता जाहिर की है. इनका कहना है वर्तमान विद्यालय और महाविद्यालय प्रणाली से निकलने वाले छात्रों के दिमाग में कोई भी 'वैज्ञानिक मस्तिष्क' नहीं है इसलिए विज्ञान में उपयोगी करियर के लिए आमतौर पर ऐसे बच्चे अनुपयुक्त हैं. चीजों को और भी ख़राब बनाने के लिए, स्कूल की पाठ्यपुस्तकों और पाठ्यक्रम में भी अवैज्ञानिक विचारों को पेश किया जा रहा है.

शैक्षिक प्रशासकों और पाठ्यपुस्तकों के अनुचित व्यक्तिगत विश्वासों को शिक्षा प्रणाली में घुसपैठ करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. हाल के दिनों में गैर वैज्ञानिक मान्यताओं और अंधविश्वास फैलाने का प्रयास बढ़ रहा है. कभी-कभी, सबूतों की कमी के तौर पर अवैज्ञानिक विचारों को विज्ञान के रूप में प्रचारित किया जाता है जिसे रोका जाना चाहिए. वैज्ञानिकों का कहना है कि सरकार को आर्टिकल 51A थामना चाहिए और उन प्रयासों को रोकना चाहिए जो वैज्ञानिक मिजाज को आगे बढ़ने से रोक रहे हैं.


सुशील कुमार महापात्रा एनडीटीवी इंडिया के चीफ गेस्ट कॉर्डिनेटर हैं...

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