वन रैंक वन पेंशन : अर्धसैनिक बलों को भी हक़ चाहिए

वन रैंक वन पेंशन : अर्धसैनिक बलों को भी हक़ चाहिए

जंतर-मंतर पर वन रैंक वन पेंशन का विरोध करते हुए पूर्व सैनिक

नई दिल्ली:

वन रैंक वन पेंशन को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर पूर्व सैनिकों का आमरण अनशन अब दूसरे हफ्ते में दाखिल हो चुका है और सरकार का कोई भी नुमाइंदा अभी तक पूर्व सैनिकों से मिलने तक नहीं आया है। जबकि कांग्रेस की ओर से पूर्व रक्षा राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह और फिर हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा अपना समर्थन दे गए।

ऐसे में पूर्व सैनिकों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है और अब उन्होंने ऐलान कर दिया है कि वे आगे से किसी भी सरकारी कार्यक्रम का बहिष्कार करेंगे, इसमें सेना के कार्यक्रम शामिल नही हैं।

मोदी सरकार की ओर से एक बार नहीं कई बार भरोसा दिया गया कि सरकार वन रैंक वन पेंशन के वायदे से पीछे नहीं हटेगी। लेकिन धरने पर बैठे पूर्व सैनिकों का कहना है कि जब तक सरकार इसको लेकर किसी डेडलाइन का ऐलान नहीं करती है, उनका अनशन चलता रहेगा।

हर साल सेना से करीब 50 से 60 हजार जवान रिटायर हो जाते हैं। देशभर में पूर्व सैनिकों की तादाद करीब 25 लाख है। पूर्व सैनिकों को वन रैंक वन पेंशन मिले- इस बात का विरोध शायद ही कोई करे लेकिन अब पैरामिलेट्री फोर्सेज के जवान भी सरकार से मांग कर रहे हैं कि उनके साथ सौतेला व्यवहार कब तक चलता रहेगा।

यहां पर ये भी साफ कर देना जरूरी है कि पैरामिलेट्री फोर्सेज के लोग भी पूर्व सैनिकों के वन रैंक वन पेंशन का विरोध नहीं कर रहे बल्कि उनका मानना है कि वाजिब हक तो मिलना ही चाहिए। लेकिन उनकी शिकायत यह है कि एक भेदभाव उनके साथ भी होता है।

नक्सलवादी हों या आतंकवादी- सरहद हो या अंदर के जंगल, अर्द्धसैनिक बल ठीक उसी तरह लड़ते हैं जैसे सेना के लोग। लेकिन पैरामिलेट्री फोर्सेज के जवान सुविधाओं में पीछे रह जाते हैं। मिसाल के तौर पर अगर आइटीबीपी के जवान 18 हजार फुट पर सेना के जवानों के साथ सरहद की रखवाली करते हैं तो गर्मियों में तपते रेगिस्तान में भी बीएसएफ सरहद पर डटी रहती है।

इतना ही नहीं कश्मीर में आतंकियों और छतीसगढ़ व मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में नक्सलियों से अपनी जान की परवाह न कर लोगों की हिफाजत करती है। बावजूद इसके जब पैरामिलेट्री फोर्सेज के जवान भर्ती होते हैं तो उन्हें मात्र 18 से 20 हजार ही सैलरी मिलती है जबकि सेना के जवान की शुरुआत ही 23 से 24 हजार से होती है।

सेना में 15 साल की नौकरी के बाद पेंशन और पैरामिलेट्री फोर्सेज के जवान को 20 साल की नौकरी के बाद ही पेंशन का सहारा मिलता है। ये फर्क सेना और पैरामिलेट्री फोर्सेज के अफसरों की सैलरी में साफ नजर आता है।

हां, सेना के ज्यादातर जवान 35 से 37 साल की उम्र में रिटायर हो जाते हैं जबकि पैरामिलेट्री फोर्सेज के जवान करीब 57 साल तक नौकरी करते हैं। यही नहीं सेना से रिटायर जवानों को न सिर्फ पूर्व सैनिक का दर्जा मिलता है बल्कि दूसरी जगह नौकरी के साथ कई सुविधायें भी मिलती हैं।

हर साल करीब 20 से 25 हजार पैरामिलेट्री फोर्सेज के जवान रिटायर हो जाते हैं लेकिन आधे से ज्यादा लोग 20 साल की सर्विस होने के बाद स्वैच्छिक तौर पर फोर्स को छोड़ देते हैं। वहीं देश भर में करीब 10 लाख पैरामिलेट्री से रिटाय़र हुए जवान हैं। अपनी वाजिब मांग के लिए पैरामिलेट्री फोर्सेज ने सातवें केन्द्रीय वेतन आयोग को ज्ञापन भी दिया है।
इनका कहना है कि जब सेना और इनके काम करने के हालात एक हैं तो इन्हें भी बराबरी का दर्जा मिलना चाहिए। दरअसल ये पूरा मामला एक अजब विडंबना की ओर इशारा करता है। जो लोग देश के पहरेदार हैं, वे अपने अधिकार के लिए बरसों से एक वाजिब मांग के लिए आंदोलन कर रहे हैं।

नेताओं की तरफ़ से उन्हें सिर्फ आश्वासन मिल रहे हैं। यही नहीं, जाने-अनजाने हमारी व्यवस्था ने देश के लिए लड़ने वालों को भी बांट दिया है- कुछ वीआइपी पहरेदार हैं, कुछ कम वीआइपी पहरेदार हैं। जैसे जो सरहद पर मरता है, वह ज़्यादा बड़ा शहीद है और जो छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले में मारा जाता है, वह मामूली शहीद है।

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जबकि सच्चाई ये है कि इन दोनों की नौकरी को, दोनों की ज़िंदगी को, और दोनों की शहादत को बिल्कुल समान दर्जा मिलना चाहिए- जो उन्हें हासिल नहीं हो रहा।