कर्नाटक में कांग्रेस जेडीएस गठबंधन ने सबसे पहले अपना विधानसभा अध्यक्ष चुन लिया. केआर रमेश पांच बार जीते विधायक हैं और पिछली सिद्धारमैया सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे. रमेश कुमार 1994 से 1999 के बीच विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं. इस तरह आप कह सकते हैं कि कर्नाटक सरकार पर लगातार कांग्रेस अपनी पकड़ बनाए जा रही है. जी परमेश्वर के रूप में दलित उप मुख्यमंत्री पहले ही कांग्रेस बनवा चुकी है. ये भी तय है कि जब भी कुमारस्वामी मंत्रिमंडल का विस्तार होगा कांग्रेस के मंत्रियों की संख्या अधिक होगी. यानि कांग्रेस का कुमारस्वामी सरकार पर पूरी तरह से कब्जा होगा.
जेडीएस को इस बात से संतोष करना होगा कि 37 विधायकों वाली पार्टी का नेता मुख्यमंत्री है. कांग्रेस वित्त और गृह मंत्रालय पर भी अपना दावा पेश करेगी और दोनों मंत्रालय अपने पास रखना चाहेगी. मतलब साफ है, कांग्रेस की रणनीति है कि एक उप मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष और मंत्रिमंडल में दमदार मंत्रालय रखकर मुख्यमंत्री कुमारस्वामी को दबाब में रखा जाए. कांग्रेस कर्नाटक सरकार में अपने संख्या बल पर सत्ता का शक्ति संतुलन अपने पक्ष में रखना चाहती है. कांग्रेस चाहेगी कि अगले एक साल तक यह सरकार अच्छे ढंग से चले और सरकार में कांग्रेस की तूती बोले..फिर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस जेडीएस से सीट बंटवारे पर जमकर मोल-तोल कर सकती है.
यदि कांग्रेस सूत्रों की मानें तो फार्मूला साफ है कि कम सीटें होते हुए भी कुमारस्वामी को इसलिए मुख्यमंत्री बनाया गया कि जेडीएस राज्य में राज करे और कांग्रेस जेडीएस की मदद से लोकसभा की अधिकतर सीटों पर चुनाव लड़े. कांग्रेस को उम्मीद है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा के चुनाव होने हैं. जो कुछ सर्वे अभी आए हैं उससे इन राज्यों में कांग्रेस को बढ़त है. कांग्रेस नेता मान रहे हैं कि राजस्थान और मध्यप्रदेश में उनकी सरकार बन रही है. यदि ऐसा होता है तो लोकसभा चुनाव में कर्नाटक में कांग्रेस जेडीएस से मोल-तोल करने में बेहतर स्थिति में होगी. अब कुमारस्वामी को तय करना है कि उन्हें कर्नाटक की गद्दी चाहिए या नहीं. यदि कुमारस्वामी लोकसभा में कांग्रेस को अधिक तादाद में सीटें देते हैं और भरपूर मदद का भरोसा दिलाते हैं तो कांग्रेस के लिए बीजेपी को दक्षिण में पांव जमाने से रोकना आसान हो जाएगा. दक्षिण के बाकी राज्यों, चाहे वह तेलंगाना हो या आंध्रप्रदेश, केरल हो या तमिलनाडु, में बीजेपी है नहीं और यही चिंता का विषय है उनके लिए. यानि कर्नाटक ने एक रास्ता दिखाया है कि कैसे अब यदि बीजेपी से लड़ना है तो इकट्ठा होकर हार को जीत में बदला जा सकता है.
अगली परीक्षा चंद दिनों में उत्तर प्रदेश के कैराना लोकसभा चुनाव में होना है जहां बीजेपी के खिलाफ सपा-बसपा ने साझा उम्मीदवार खड़ा किया है. लोकसभा और विधानसभा की 10 सीटों पर चंद दिनों में उपचुनाव होने हैं और इसके नतीजे ही संकेत होंगे कि 2019 के लोकसभा चुनाव में क्या तस्वीर बनती है भारतीय राजनीति की....
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...
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This Article is From May 25, 2018
कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के मायने
Manoranjan Bharati
- ब्लॉग,
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Updated:मई 25, 2018 17:10 pm IST
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Published On मई 25, 2018 17:10 pm IST
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Last Updated On मई 25, 2018 17:10 pm IST
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