दिल्ली में भले ही ठंड अभी कायम है, मगर चुनाव को लेकर राजनीति काफी गरमा गई है। अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी ने चुनाव को काफी दिलचस्प बना दिया है।
पहले बहस न करने पर बहस हुई और अब आरोपों का दौर शुरू हो गया है। आम आदमी पार्टी का किरण बेदी पर आरोप है कि वह शुरू से ही बीजेपी की भेदिया थीं, अन्ना के आंदोलन के समय से ही।
उन पर यह आरोप है कि केजरीवाल जब अगस्त, 2012 में कोयला आवंटन घोटाले में मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और नितिन गडकरी के घरों का घेराव की योजना बना रही थी, तब किरण बेदी ने गडकरी के घर का घेराव न करने का सुझाव दिया था। कहा जाता है कि तभी से केजरीवाल और किरण बेदी के बीच मतभेद शुरू हो गए।
अब किरण बेदी का कहना है कि यदि ऐसा था तो, केजरीवाल ने मुझे आम आदमी पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनने का प्रस्ताव क्यों दिया था। किरण कहती हैं कि केजरीवाल 'खतरनाक' और 'नकारात्मक' सोच के नेता हैं। वहीं, आम आदमी पार्टी का कहना है कि यदि आप (किरण बेदी) घर वापसी, लव जेहाद, लड़कियों के ड्रेस कोड तय करने और काले धन के रूप में चंदा लेने वाली पार्टी का सीएम कैंडिडेट बनती हैं, तो आपके बारे में क्या राय बनाई जाए...
दरअसल, जब किरण बेदी ने बीजेपी ज्वाइन किया और जिस ढंग से उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ-साथ अरुण जेटली भी शामिल हुए और फिर आम आदमी पार्टी की शाजिया इल्मी आईं, तो लगा कि माहौल बीजेपी के पक्ष में बनता जा रहा है। मगर जब कृष्णा नगर में किरण बेदी पहली बार पहुंचीं, तो कार्यकर्ताओं में उतना उत्साह नहीं दिखा।
असल में बीजेपी की दिक्कत यह थी कि उनके पास केजरीवाल के मुकाबले चेहरा नहीं था और केजरीवाल दिल्ली के दंगल को केजरीवाल बनाम मोदी करना चाहते थे। ऐसे में बीजेपी ने सोचा कि लड़ाई के मोहरों को बदल दिया जाए। दिल्ली में बीजेपी एकजुट पार्टी नहीं रही। यह कई गुटों से मिलकर बनी पार्टी थी।
अब एक बाहरी को सीएम कैंडिडेट बनाकर बीजेपी ने इन सभी गुटों को नाराज कर दिया और यही सब गुट अब बेदी की लुटिया डुबोने के लिए एकजुट हो गए हैं। बीजेपी ने इसको देखते हुए एक बड़ी घेराबंदी की तैयारी की है। 70 सीटों के लिए 70 सांसदों और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने खुद कमान संभाल ली है।
यदि एक नेता का कहना मानें, तो बीजेपी ने इतने बड़े स्तर पर डाटाबेस तैयार किया है, जिसमें हरेक वोटर का नाम, उसकी जाति, यदि वह दिल्ली से बाहर का है, तो उसके गांव और जिला का नाम तक शामिल है। यदि आप बिहार के किसी जिला से हैं, तो वहां का आपकी जाति का नेता आपको फोन करेगा कि आप बीजेपी को वोट करें। आप भी सोचेगें कि एक वोट है, डाल ही देते हैं, जिला के नेता जी का फोन आया था...
वहीं, आम आदमी पार्टी अपने परंपरागत वोट और केजरीवाल के करिश्मे के भरोसे है। उसे लग रहा है कि वोटर उन्हें एक मौका जरूर देगा। यही वजह है कि केजरीवाल दोबारा सरकार न छोड़ने का भरोसा लोगों को दिला रहे हैं।
केजरीवाल और किरण बेदी दोनों के साथ दिक्कत है कि दोनों फितरत से नेता नहीं हैं। केजरीवाल थोड़ा सीख गए हैं, मगर किरण बेदी को अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है। अभी संघ को भी यह तय करना है कि वह किरण बेदी के लिए कितनी ताकत झोंकेगा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी मैदान में उतरना बाकी है। आगे आने वाले दिनों में जब चुनावी घमासान बढ़ेगा तभी तस्वीर साफ होगी, मगर शुरुआती दौर में बीजेपी थोड़ी नर्वस दिख रही है।