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This Article is From Mar 28, 2016

सांसद, दबंगई; लात-घूंसे : क्या कानून सिर्फ लोगों के लिए, इनके लिए नहीं

Rajeev Pathak
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 28, 2016 18:58 pm IST
    • Published On मार्च 28, 2016 18:45 pm IST
    • Last Updated On मार्च 28, 2016 18:58 pm IST
गांधीजी ने कहा था "मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।" यानि मैं जो कहता हूं वह मत करो लेकिन मैंने जो किया वैसा कीजिए। यह तो थे गांधीजी के आदर्श। अब देखते हैं आज के जमाने में जिन्हें आदर्श पेश करना है वे हमारे चुने हुए नेता क्या कर रहे हैं। वैसे तो सांसदों का काम है कानून बनाने का, लेकिन लगता है सांसदों को यह आदत होने लगी है कि कानून सिर्फ लोगों के लिए हैं, वे तो जो करें वह कानूनी है।

गुजरात में गांधी के जन्म स्थान पोरबंदर से भाजपा के सांसद हैं विट्ठल रादडिया। अभी उनका वीडियो वायरल हुआ है कि उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र में एक लोकसंगीत का कार्यक्रम (जिसे गुजराती में डायरो कहते हैं) के दौरान एक बुज़ुर्ग को लातों से पीटा। वीडियो वायरल होने के बाद भी उन्होंने सॉरी कहते हुए एक भी बयान नहीं दिया, लेकिन इस घटना को जायज ठहराने की कोशिश की। आखिर वे क्यों बिना हिचकिचाहट जिसे पब्लिक लाइफ में एक शर्मनाक घटना मानी जानी चाहिए, उसे जायज़ ठहराने की कोशिश करते हैं। शायद इसलिए कि उन्हें उनके खिलाफ किसी भी कार्रवाई का खौफ नहीं है।

आखिर यह खौफ क्यों नहीं है यह जानना भी काफी दिलचस्प है। विट्ठल रादडिया राजनैतिक तौर पर मजबूत लेउआ पाटीदार समाज से आते हैं। सौराष्ट्र में लेउआ पाटीदारों का कई सीटों पर दबदबा है और रादडिया उनके बड़े नेता माने जाते हैं। अभी 2012 तक विट्ठल रादडिया कांग्रेस के सांसद थे। 2012 के अन्त में गुजरात में विधानसभा चुनाव होने थे। कांग्रेस में यह सुगबुगाहट थी कि सौराष्ट्र के लेउआ पटेल समुदाय, जो कि आम तौर पर भाजपा का समर्थक माना जाता है, को लुभाने के लिए कांग्रेस रादडिया को केन्द्र में मंत्री बना सकती है ताकि 2012 विधानसभा में उसका फायदा उठाया जा सके। लेकिन इस सुगबुगाहट के बीच एक रात को सूरत से राजकोट जा रहे विट्ठल रादडिया से वडोदरा के करजण टोलबूथ पर देर रात को टोल कर्मचारियों ने टोल मांगने की गुस्ताखी कर दी। जब उनके ड्रायवर ने कहा कि गाड़ी में सांसद साहब हैं तो टोलबूथ कर्मचारी ने पहचान पत्र दिखाने को कहा। बस फिर क्या था - सांसद साहब भड़क गए और उन्होंने खुद अपने गार्ड की बंदूक निकाल ली और टोलबूथ कर्मचारियों को मारने की धमकी दे दी। सारी घटना टोलबूथ के सीसीटीवी में कैद हो गई।

इस पर राजनैतिक हंगामा हुआ। भाजपा की सरकार ने कहा कि रादडिया के खिलाफ कानून अपना काम करेगा। ज्यादा विरोध नहीं किया, आखिर राजनैतिक तौर पर महत्वपूर्ण समाज के नेता थे। कांग्रेस ने तो रादडिया का बचाव करने की कोशिश की। आखिर वह नहीं चाहती थी कि जिस मुद्दे का विरोध खुद विरोधी पक्ष नहीं कर रहा है उसे लेकर अपने महत्वपूर्ण नेता को नाराज़ करें। टोलबूथ मैनेजर ने उनके खिलाफ एफआईआर जरूर की थी लेकिन चूंकि घटना का सीसीटीवी फुटेज मीडिया में आ गया था इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर दबाव बना। कांग्रेस ने रादडिया के खिलाफ कोई कार्रवाई तो नहीं की लेकिन उनका केन्द्रीय मंत्री बनना टल गया।

रादडिया नाराज़ थे, लेकिन चुनाव में जुटे रहे। कोशिशों के बावजूद कांग्रेस 2012 में विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाई। गुजरात में दोबारा भाजपा की सरकार बनी। रादडिया को लगने लगा कि सत्ता में आना है तो भाजपा में जाना चाहिए। आखिर अगली बार केन्द्र में भी कांग्रेस की सरकार बनना मुश्किल लग रहा था। रादडिया ने अपने परिवार समेत कांग्रेस छोड़ दी और भाजपा में चले गए। बेटे ने विधानसभा चुनाव लड़ा, रादडिया ने सांसद का चुनाव लड़ा। बेटे को भाजपा सरकार में मंत्री पद भी मिल गया। भाजपा में शामिल होने के तुरंत बाद रादडिया के खिलाफ मामला भी वापस ले लिया गया। खुले तौर पर रादडिया के खिलाफ मामला था लेकिन राजनैतिक ताकत के आगे कानून झुक गया और केस का सबने राजनैतिक फायदा उठाया और फिर मामला रफादफा हो गया।

अब एक बार फिर रादडिया अपनी हरकत के कारण सुर्खियों में आ गए हैं, लेकिन इस बार भी कोई कार्रवाई होने की संभावना नहीं है। उनकी राजनैतिक धाक कम नहीं हुई बल्कि बढ़ ही गई है। पिछली बार वे राज्य के विरोधी पक्ष के सांसद थे अब तो सत्ताधारी पक्ष के सांसद हैं। इतना ही नहीं, इस बार वे सरकार से नाराज पाटीदार समाज को मनाने में सरकार के नुमाइंदे भी बने हैं। किसी ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की भी हिम्मत नहीं की। खुले तौर पर शर्मसार करने वाला वीडियो सामने आने के बावजूद उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं है। न उन्हें फिक्र है न किसी राजनैतिक पार्टी को।

शायद इसीलिए सांसदों को कानून का खौफ नहीं रहा है और उनकी दबंगई बढ़ती ही जा रही है। क्या जनता कभी इन चीजों को नैतिकता के मूल्यों पर भी तौलेगी और राजनैतिक पार्टियों पर भी दबाव बना पाएगी ताकि ऐसे दबंग नेताओं को सुधारा जा सके या उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए तो कम से कम दबाव बनाया जा सके?

(राजीव पाठक एनडीटीवी के चीफ करस्पांडेंट हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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