जब आप एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं तो आपके पास कई कहानियां होती हैं अपने इलाके, अपने लोगों और अपनी संस्कृति से जुड़ी, लेकिन कई बार इसके उलट भी होता है। जिन लोगों के बीच आप पहुंचते हैं उनके पास भी कहानियां होती हैं.. आपके इलाके की...कुछ सुनी सुनाई और कुछ सही भी।
हाल ही में दिल्ली के एक इलाके में मकान ढूंढते हुए एक शख्स (ब्रोकर) से मुलाकात हुई। नाम, प्रोफेशन आदि औपचारिक जानकारी लेने के बाद उन्होंने पूछा कि मैं कहां से हूं? जैसे ही मैंने बताया कि मैं छत्तीसगढ़ से हूं उनकी आंखों में थोड़ा अचरज मुझे दिखाई दिया। फिर वो पूछने लगे वहां तो खूब जंगल होते होंगे, नक्सली भी आसपास रहते होंगे...मैंने सुना है वहां लोग अभी भी कीड़े-मकोड़े खाते हैं... और भी न जाने क्या-क्या...
ऐसा मेरे साथ अक्सर होता है। लोग मुझसे कई सवाल पूछते हैं छत्तीसगढ़ के बारे में.. वे अक्सर मेरे राज्य के बारे में सुनी-सुनाई अचरज भरी बातें मुझे बताते हैं। और जानना चाहते हैं कि जो कुछ उन्होंने सुना है, वह सही है या नहीं?
आज से 6-7 साल पहले तक मुझे इस बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी कि छत्तीसगढ़ से बाहर के लोग इसके बारे में क्या सोचते हैं, क्या जानना चाहते हैं? शायद इसलिए कि हम अपनी ही दुनिया में मस्त रहने वाले लोग हैं या शायद इसलिए भी कि बाहर के लोगों से बहुत ज्यादा मुलाकात नहीं हुई थी कभी।
लेकिन साल 2010 में जब मैं पहली बार छत्तीसगढ़ से बाहर एक दूसरे राज्य में पढ़ने के लिए गई तब पता चला कि लोगों के मन में बहुत जिज्ञासा है, छत्तीसगढ़ की नक्सल समस्या... आदिवासी संस्कृति... परंपराएं...खानपान को लेकर। लोग इनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहते हैं। जानने की इस कोशिश में कई ऐसी बातें भी उन्हें पता होतीं हैं जो महज मिथक हैं या वह बातें जो उनकी नजर में छत्तीसगढ़ को अति पिछड़े इलाके रूप में प्रस्तुत करती हैं।
छत्तीसगढ़ में गांव हैं, जंगल हैं, पहाड़ हैं, आदिवासी जनजातियां हैं, वैसे ही जैसे दूसरे राज्यों में हैं। दिल्ली में रहते हुए महज महीनेभर में मुझे कई लोग मिले, जिन्होंने मुझसे कई तरह के सवाल पूछे। एक नक्सल समस्या को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर सवाल आदिवासियों से जुड़े हैं । मिथकीय और रहस्यवादी अवधारणाओं से प्रेरित होते हैं जो छत्तीसगढ़ से जुड़े तो हैं पर पूरी तरह सत्य नहीं हैं।
यहां कुछ सवाल मैं रखना चाहती हूं जो छत्तीसगढ़ से बाहर निकलने पर अक्सर मुझसे पूछे जाते हैं और साथ ही उन सवालों के जवाब देने की एक छोटी सी कोशिश भी-
वहां तो जंगल ही जंगल हैं, कैसे रहते हैं वहां लोग?
छत्तीसगढ़ की सरकारी वेबसाइट के अनुसार छत्तीसगढ़ के 44 प्रतिशत क्षेत्र में जंगल है। वन क्षेत्रफल के लिहाज से छत्तीसगढ़ देश का तीसरा बड़ा राज्य है। इन जंगलों के बीच कई गांव बसे हैं जहां बेशक जिंदगी बेहद कठिन होती है। इन इलाकों में, खासकर बस्तर में, नक्सलियों के खौफ के बीच ग्रामीणों की जिंदगी बीतती है। नक्सली खौफ के चलते घने जंगलों में बसे ज्यादातर गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं से दूर हैं। कोशिशें जारी हैं नक्सलियों से मुक्ति के लिए भी और इन गांवों तक विकास की बयार पहुंचाने की भी।
इन्हीं जंगलों में आयरन, कोयला और अन्य खनिजों के भंडार हैं। जिनका इस्तेमाल सेल, एनटीपीसी जैसी कंपनियां करती हैं। यह भी अपने आप में विरोधाभास है कि इन खदानों तक पहुंचने के लिए रेल ट्रैक का निर्माण तेजी से अबूझमाड़ की तरफ बढ़ रहा है (नक्सली खतरे के बावजूद) लेकिन जंगल के कई इलाकों तक अब तक मूलभूत सुविधाएं जैसे स्कूल, अस्पताल नहीं पहुंच सके हैं।
वहां अभी भी आदिवासी कीड़े मकोड़े खाते हैं?
छत्तीसगढ़ में भारत की सबसे प्राचीन जनजातियां निवास करती हैं। उनके खानपान में भले ही पिज्जा, बर्गर जैसी तथाकथित आधुनिक चीजें शामिल न हों लेकिन उनके खाने की ज्यादातर चीजें स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद लाभकारी हैं। मसलन, बस्तर क्षेत्र के अदिवासी चींटी की चटनी बेहद चाव से खाते हैं। इन चींटियों में एक विशेष प्रकार का रसायन होता है जो चटनी को स्वादिष्ट बनाने के साथ-साथ बुखार, सर्दी जैसी बीमारियों के इलाज में कारगर होता है।
पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोग उभिया नाम के एक कीड़े को आग में भूनकर महुए के साथ खाते हैं। गर्मी के दिनों में बारिश से ठीक पहले निकलने वाला यह कीड़ा महुए के साथ खाया जाता है जिससे शरीर की गर्मी शांत होती है।
इसी प्रकार यहां के आदिवासी सल्फी पेड़ का रस पीते हैं, यह रस यदि तुरंत पिया जाए तो एनर्जी ड्रिंक का काम करता है हालांकि रस निकलने के बाद ज्यादा देर तक रखने पर यह नशीला हो जाता है। आदिवासियों के खानपान में जंगलों में मिलने वाली ऐसी कई चीजें शामिल हैं जो स्वास्थ्य की दृष्टि से इतनी फायदेमंद हैं कि आजकल शहरों में बेहद महंगे दामों में बिकती हैं जैसे पुटु (मशरूम)।
वहां विष कन्याएं होती हैं?
छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के फरसपाल इलाके में बड़ी संख्या में सांप पाए जाते हैं, इसकी वजह यहां के वातावरण का सांपों के रहने के अनुकूल होना बताया जाता है। सांपों की अधिकता के कारण इस इलाके को नागलोक कहा जाता है। इसी तरह छत्तीसगढ़ के अलग-अलग इलाकों में सांप की कई दुर्लभ प्रजातियां मिलती हैं, जांजगीर चाम्पा जिले के एक गांव में पीपल के पेड़ में 50 सालों से बड़ी संख्या में अजगर रहते हैं, सिर्फ अनुकूल वातावरण के कारण। लेकिन इसका विषकन्या या सांपों से जुड़ी किसी फिल्मी कहानी से कोई संबंध नहीं है।
छत्तीसगढ़ से जुड़ा एक मिथक यह भी है कि वहां के लोग, वहां के आदिवासी बेहद पिछड़े हैं। सच यह है कि पिछड़े कहे जाने वाले इन आदिवासियों का विज्ञान कहीं आगे की सोच रखता है। उदाहरण के लिए-
वर्तमान खेती की प्रचलित पद्धति में किसान मौसम आधारित फसल ही खेत में उगाते हैं, जैसे खरीफ में धान और रबी में गेहूं, चना आदि। लेकिन मौसम अनुकूल नहीं होने पर पूरी फसल बर्बाद हो जाती है या कम उत्पादन होता है। छत्तीसगढ़ (और मध्यप्रदेश के कुछ जिलों) में रहने वाली आदिवासी जनजातियां बेवर खेती करती हैं। जिसमें एक समय पर खेत में 3-4 तरह के अनाजों के बीज लगाए जाते हैं। इसका फायदा यह होता है कि मौसम खराब होने, अति वर्षा, अल्प वर्षा की स्थिति में भी कोई न कोई अनाज उग जाता है। इससे किसानों की मेहनत बर्बाद नहीं होती।
इसी तरह, छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में रहने वाले आदिवासियों की प्रसव पद्धति को अमेरिका भी अपना चुका है। पीलिया होने पर बस्तर के आदिवासी मरीज के शरीर पर यहां मिलने वाली लाल चींटी छोड़ देते हैं। इस चींटी में फॉर्मिक एसिड होता है। चींटी के काटने पर वह एसिड मरीज के शरीर में बढ़े बिलुरुबिन को बिलुबर्डिन में बदल देता है जिससे शरीर का पीलापन कम हो जाता है। पीलिया के इलाज की इस पद्धति पर बस्तर यूनिवर्सिटी में रिसर्च भी हो रहा है।
बेशक आदिवासियों की लाइफ स्टाइल मॉडर्न नहीं है। वे आज के जमाने के आधुनिक कपड़े नहीं पहनते, स्मार्ट फ़ोन और कंप्यूटर का बहुत ज्यादा इस्तेमाल नहीं करते। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वे पिछड़े हैं। इस साल बस्तर के 3 छात्र छात्राओं का आईआईटी में सिलेक्शन भी इसी बात की ओर इशारा करता है कि शिक्षा के क्षेत्र में भी यहां के लोग तरक्की कर रहे हैं।
अपने गठन के 15 सालों में छत्तीसगढ़ 'पिछड़ा राज्य' से 'सबसे तेजी से विकास करता राज्य' बन चुका है। बस्तर और दूरस्थ क्षेत्रों में बसी आदिवासी जनजातियां भी शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं, यहां के लोग देश विदेश की छोटी बड़ी कंपनियों में काम करके अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहे हैं, राजधानी रायपुर की जीवनशैली तेजी से मेट्रो शहरों की तरह ‘मॉडर्न’ हो रही है।
राज्य की नई राजधानी 'नया रायपुर' एक आधुनिक शहर के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है। बेशक, छत्तीसगढ़ को पूरी तरह विकसित होने में अभी बहुत वक्त लगेगा। लेकिन यहां के लोग और उनकी जिंदगी उतनी पिछड़ी या अवैज्ञानिक नहीं हैं, जैसी इसकी छवि बना दी गई है। छत्तीसगढ़, मूलत: उन लोगों का ठिकाना है, जिन्हें ‘विकासवादियों’ ने जबरन आधुनिक बनाने का संकल्प लिया और उनके लोक जीवन को तहस - नहस करने के बाद उन्हें अपने कथित सभ्य- शहरी मॉडल में तराशने के संघर्ष में जुटे हैं...
कुसुम लता एनडीटीवी खबर में कार्यरत हैं।
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This Article is From Jul 18, 2016
हां, मैं छत्तीसगढ़ से हूं और वहां 'विष कन्याएं' नहीं होतीं...
Kusum Lata
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 19, 2016 12:26 pm IST
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Published On जुलाई 18, 2016 14:03 pm IST
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Last Updated On जुलाई 19, 2016 12:26 pm IST
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