विज्ञापन
This Article is From Apr 24, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : क्या दिल्ली के दिमाग में कश्मीर है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 24, 2017 21:44 pm IST
    • Published On अप्रैल 24, 2017 21:44 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 24, 2017 21:44 pm IST
व्हाट्स अप ने कश्मीर पर जितने प्रोफेसर कश्मीर के भीतर पैदा कर दिये हैं, उससे ज्यादा कश्मीर के बाहर. व्हाट्स अप के ज़रिये कश्मीर के ज़रिये जिस तरह के तथ्यों को गढ़ा जा रहा है उससे हालात बिगड़ ही रहे हैं. वही हाल शेष भारत में भी है. व्हाट्स अप यूनिवर्सिटी के कारण हर दूसरा आदमी कश्मीर पर राय रखता है. मैं कश्मीर नहीं जानता. मुझे यह केमिस्ट्री से भी टफ लगता है. लेकिन बाकी ऐसा नहीं कहते क्योंकि सबने ट्रकों पर लिखा वो संदेश पढ़ लिया है- दूध मांगोगे तो खीर देंगे, कश्मीर मांगोगे तो चीर देंगे. खीर देंगे और चीर देंगे सिद्धांत से कश्मीर समस्या का कितना समाधान हुआ, ये तो टीवी चैनलों के परमानेंट एक्सपर्ट ही बता सकते हैं. बीच-बीच में जब ट्रक फार्मूला फेल करता है तो लोगों को वाजपेयी फार्मूला याद आता है.

इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत - यह कश्मीर की समस्या की आयुर्वेदिक दवा है. जब ऐलोपेथिक फेल हो जाती है तो इसे याद किया जाता है. प्रधानमंत्री मोदी भी वाजपेयी की इस दवा का ज़िक्र करते रहे हैं. मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती अचानक ज़ोर-ज़ोर से कहने लगी हैं कि वाजपेयी जी के टाइम में भी बातचीत हुई, एल के आडवाणी डिप्टी पीएम थे तब हुर्रियत के साथ बात हुई. हमें जहां पर वाजपेयी जी छोड़ गए थे, वहीं से इसको आगे ले जाना पड़ेगा, वरना जम्मू-कश्मीर के हालात सुधरने का कोई चांस नहीं है.

कोई चांस नहीं है का क्या मतलब है. क्या महबूबा हुर्रियत या अलगाववादियों से बात करने के लिए कह रही हैं? इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत की ज़िम्मेदारी उनकी सरकार पर भी तो है, क्या उनकी सरकार इस दवा का वितरण नहीं कर पा रही है. नए-नए तथ्य गढ़े जा रहे हैं, उनका मुकाबला उनकी सरकार क्यों नहीं कर पा रही है. भारत के दूसरे हिस्से में भी व्हाट्स अप के ज़रिये नए-नए तथ्य गढ़े जा रहे हैं. महबूबा मुफ्ती को इसका उपाय खोजने के लिए लंदन जाने की ज़रूरत नहीं है. महबूबा मुफ्ती ने बातचीत की बात कर ही दी है तो किससे बात हो वो भी कर देनी चाहिए थी. जिस हुर्रियत को लेकर टीवी चैनलों और राजनीतिक प्रतिक्रियाओं में पाकिस्तान का एजेंट बनाकर पेश किया गया, हर रात आपके ख़ून में उबाल पैदा किया, क्या होता अगर महबूबा कह देती कि हुर्रियत या अलगाववादियों से बात होनी चाहिए तब सहयोगी बीजेपी की क्या प्रतिक्रिया होती. क्या बीजेपी मान जाएगी. बंदूक चलाने की बात होती है तो टीवी के एक्सपर्ट समझा देते हैं कि किस पर सीधे बंदूक चलानी है. बातचीत हो, बातचीत हो करने वाले यही नहीं बताते कि किससे बातचीत हो.

महबूबा ने कहा कि कब तक आप अपने लोगों के साथ ऐसा करेंगे. उन्हें यह भी बताना चाहिए था कि अपने लोगों के साथ अभी ऐसा क्या हो रहा है. कश्मीर को लेकर किसी भी बातचीत में इस बात को शामिल करना ज़रूरी है कि देश में कश्मीर को लेकर क्या हो रहा है. दरअसल वो राय कश्मीर की राय से ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गई है. इस स्थिति को बनाने में एक्सपर्ट और एंकरों ने बहुत मेहनत की है. उनके लिए पत्थर चलाने वाला आतंकवादी है और सेना का अपराधी है, उसके साथ उसी भाषा में कार्रवाई होनी चाहिए. लेकिन महबूबा मुफ्ती के बयान को ध्यान से सुना तो लगा कि दो तरह के पत्थरबाज़ हैं. पत्थरबाज़ी के लिए 2-3 वजहें हैं. एक तो जो लड़के हैं जो खफा हैं, दूसरे वो जिनको जानबूझ कर उकसाया जाता है. इस पर डिस्कशन होगा तो कोई ना कोई रास्ता ज़रूर निकल आएगा.

क्या ये 'हमारे' पत्थरबाज़ और 'पराये' पत्थरबाज़ वाला कोई फार्मूला है. महबूबा का यह बयान सेना के लिए है या सरकार के लिए. समझौते की जगह टकराव की नीति किसकी है, क्या महबूबा मुफ्ती अपने सहयोगी बीजेपी की नीतियों की आलोचना कर रही हैं. कश्मीर में जो कुछ हो रहा है उसका ख़मियाज़ा शेष भारत में पढ़ने निकले कश्मीरी छात्रों को उठाना पड़ रहा है.

बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी, पिलानी के छात्र हाशिम सोफी को उनके सहपाठियों ने आतंकवादी तक कह डाला. सोफ़ी संस्थान छोड़ने की बात कर रहे हैं. राजस्थान के ही मेवाड़ यूनिवर्सिटी के आठ कश्मीरी छात्रों को भी इसका सामना करना पड़ा. उन्हें भी आतंकवादी कहा गया. पत्थरबाज़ कह दिया. मेरठ में एक पोस्टर लगा दिया गया जिसमें लिखा था भारतीय सेना पर पत्थर मारने वाले कश्मीरियों का बहिष्कार, कश्मीरियों यूपी छोड़ो वरना.....पुलिस ने राष्ट्रीय नवनिर्माण सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित जानी को जेल भेज दिया है. अमित जानी ने ही 20 अप्रैल को पोस्टर लगाए थे. मेरठ के ज़िलाधिकारी और एसएसपी ने कश्मीरी छात्रों से मुलाकात की और सुरक्षा का वादा भी किया है.

इससे पहले गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने सभी मुख्यमंत्रियों से कहा था कि वे कश्मीरी छात्रों को तंग किये जाने की घटना को रोकें. प्रधानमंत्री ने भी मुख्यमंत्रियों से यही अपील की है. रविवार को नीति आयोग की बैठक में मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने सभी मुख्यमंत्रियों से कहा कि कश्मीरी छात्र भी आपके अपने ही बच्चे हैं. ये बच्चे कश्मीर में आपके राज्यों के दूत बनकर जाते हैं. आप उनसे बात कीजिए. उनका हालचाल लीजिए. आप कभी कभी उन्हें बुलाकर बात भी कर सकते हैं.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Previous Article
BLOG : हिंदी में तेजी से फैल रहे इस 'वायरस' से बचना जरूरी है!
प्राइम टाइम इंट्रो : क्या दिल्ली के दिमाग में कश्मीर है?
बार-बार, हर बार और कितनी बार होगी चुनाव आयोग की अग्नि परीक्षा
Next Article
बार-बार, हर बार और कितनी बार होगी चुनाव आयोग की अग्नि परीक्षा
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com