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This Article is From Feb 08, 2015

एक्जिट पोल पर राजीव रंजन का विश्लेषण : केजरीवाल नहीं, अपने 'दंभ' की वजह से हारेगी बीजेपी!

Rajeev Ranjan
  • Blogs,
  • Updated:
    फ़रवरी 08, 2015 08:46 am IST
    • Published On फ़रवरी 08, 2015 08:39 am IST
    • Last Updated On फ़रवरी 08, 2015 08:46 am IST

अब जबकि दिल्ली की जनता ने वोट डाल दिया है, तो हर किसी को नतीजों का इंतजार है। ज्यादातर न्यूज चैनलों के सर्वे बता रहें है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनेगी और बीजेपी के हाथ एक बार फिर दिल्ली की गद्दी आते-आते रह जाएगी।

हालांकि अभी बस कयास ही लगाए जा रहे हैं, पक्के तौर कोई भी कुछ नहीं कहा जा सकता। राजनीति की हवा का रुख बदलने में देर कितनी लगती है। वैसे अगर बीजेपी के हिस्से हार आई, तो इसके लिए कोई और नहीं सिर्फ और सिर्फ बीजेपी ही जिम्मेदार होगी।

कहने का मतलब है कि यह केजरीवाल की जीत से ज्यादा बीजेपी की हार होगी और वह भी अपनी गलतियों की वजह से और काफी हद तक अब तक तमाम राज्यों में मिली जीत की आत्ममुग्धता एवं दंभ  की वजह से।

बात सबसे पहले किरण बेदी की... आखिर बीजेपी की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार जो ठहरीं। बेदी पर दांव लगाना बीजेपी के लिए संभवतः उल्टा साबित हो गया। अगर बीजेपी पहले उन्हें पार्टी में लेकर आती, तो शायद विरोध के इतने स्वर ही नहीं उठते। अगर पार्टी किसी को मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी न घोषित करती, तो दिल्ली के सारे बीजेपी नेता जी-जान लगाकर कोशिश करते कि शायद सीएम की कुर्सी उन्हें मिल जाए। लेकिन जैसे ही बेदी का नाम आया, सब के सपने धरे के धरे रह गए।

इसमें कोई दो राय नहीं कि केजरीवाल की तुलना में बेदी भी कम विश्वासनीय नहीं है, उनकी छवि ईमानदार और मजबूत भी है, पर वह केजरीवाल की तरह राजनीति के दांव-पेंच समझ सकने वाली नेता नहीं हैं। बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक देरी से लगने की वजह से वह न तो चौका मार पाई और न ही छक्का। रही-सही कसर बेदी की छोटी-मोटी गलतियों ने पूरी कर दी। मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार घोषित होने से पहले कार्यकताओं और फिर बाद में दिल्ली के सासंदों को घर बुलाकर जिस अंदाज में उन्होंने मीटिंग ली, इससे गलत संदेश गया। बाद में डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश तो हुई, पर तब तक देर हो चुकी थी।

'आप' और कांग्रेस की तुलना में बीजेपी ने बहुत बाद में जाकर अपने कैंडिडेंट घोषित किए। इससे उन्हें जनता के बीच जाकर अपनी बात कहने के लिए मात्र 15 से 20 दिन का ही वक्त मिला। अपने मजबूत कैंडिडेंट छोड़कर बाहर से आए नेताओं को टिकट देना भी बीजेपी पर भारी पड़ा है। नतीजे बताएंगे कि बिन्नी और कृष्णा तीरथ जैसे नेताओं को टिकट देना कितना आत्मघाती कदम है।

पार्टी के अंदर भीतरघात इस कदर हावी था कि कई जगह पर ऐसा लगा कि संगठन चुनाव ही नहीं लड़ रहा है। खबर यह भी है कि सारे फैसले मिलकर नहीं, केवल चंद नेताओं ने लिए हैं। उम्मीदवारों के चयन में काफी लापरवाही बरती गई। प्रदेश पार्टी अध्यक्ष तक को टिकट नहीं मिला। सालों पार्टी में रहे कार्यकताओं की अनदेखी की गई, जिससे उनके अंदर निराशा फैली और वे घर से बाहर ही नहीं निकले और जब तक उन्हें निकालने की कोशिश हुई, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

पार्टी ने घोषणापत्र तक जारी नहीं किया और उसकी जगह पर विजन डाक्यूमेंट जारी किया गया। इसमें साफ-साफ कुछ भी नहीं था, मसलन बिजली और पानी के रेट कितने कम करेंगे...यानी विजन डाक्यूमेंट में भी बस रस्म अदायगी ज्यादा नजर आई। बिना वजह दिल्ली के चुनाव में इतने मंत्री और नेताओं को उतारा गया।

खुद प्रधानमंत्री ने जिस तरह की जुबान का इस्तेमाल किया, उससे फायदा कम, नुकसान ज्यादा हुआ। पर्सनल अटैक को केजरीवाल ने जिस तरह से टर्न किया, उससे बीजेपी को नुकसान ही हुआ और केजरीवाल को सहानुभूति मिली। समझदार लोग कहते हैं कि 'दुश्मन पर तभी हमला करो, जब घायल हो कराह रहा हो, उसे संभलने का मौका मत दो। उसे कमजोर भी मत समझो।'

अगर बीजेपी लोकसभा चुनाव के ठीक बाद चुनाव करवाती, तो नतीजे कुछ और होते। लेकिन उसने तो 'आप' को संभलने का मौका दे दिया। नतीजे सबके सामने आने वाले हैं। इतना ही नहीं 'आप' के हमले का जवाब तक ढंग से पार्टी नहीं दे पाई। उपद्रवी गोत्र को लेकर जिस तरह से केजरीवाल ने पूरे अग्रवाल समाज को उपद्रवी गोत्र से जोड़ा। उसका कोई जवाब बीजेपी को नहीं सूझा।

'आप' के नेता योगेंद्र यादव ने प्रधानमंत्री मोदी के भाषण की सड़क छाप से तुलना की, पर बीजेपी ने इस पर दमदार तरीके से विरोध नहीं दर्ज कराया। किसी जमाने में जनसंघ के गढ़ रहे दिल्ली में आरएसएस ने भी खुलकर लोकसभा चुनाव की तरह बीजेपी की मदद नहीं की। यह भी कह सकते हैं कि पार्टी ने खुलकर मदद लेने की जरूरत नहीं समझी। बीजेपी को लगा कि वह अपने दम पर जीत जाएगी, पर पार्टी के कुछ नेता दबे स्वर में ये भी कह रहे हैं कि दिल्ली का चुनाव हार जाएं, तो अच्छा है, इससे आंख तो खुलेगी और इससे सबक लेकर बिहार और बंगाल में शायद पार्टी ये गलतियां न दोहराए और अच्छा प्रदर्शन करे।

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