एक भक्त ने स्वामी विवेकानंद से सवाल किया कि मां को इतनी प्रमुखता क्यों दी जाती है? स्वामी विवेकानंद ने जवाब में पांच सेर वजन का एक पत्थर चौबीस घंटे तक पेट पर बांधकर रखने को कहा। व्यक्ति ने जवाब पाने की चाह में पत्थर बांध लिया। कुछ ही घंटों में वह परेशान होकर विवेकानंद के पास पहुंचा। कहा कि अब वह इस बोझ को और नहीं सह सकता। इस पर वे बोले “पेट पर यह बोझ तुमसे कुछ घंटे भी नहीं उठाया गया और मां अपने गर्भ में बच्चे को 9 माह तक रखकर काम करती है।'' मां के सिवा दूसरा कोई इतना कर सकता है क्या!
सोचिए यही मां इसी अवस्था के दौरान हिंसा का शिकार हो तो। जब एक स्त्री को देखभाल की सबसे अधिक जरूरत है, जब उसे परिवार के मानसिक और शारीरिक सहारे की सबसे ज्यादा जरूरत है उस स्थिति में भी वह हिंसा का शिकार हो, उसे मारा पीटा जाए, नाना प्रकार से सताया जाए तो..?
पूछा तक नहीं जाता कि तुम्हारी मर्जी क्या है?
भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से आयोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के चौथे दौर के नतीजे हाल—फिलहाल जारी हुए हैं। (हालांकि यह अभी 17 राज्यों की ही तस्वीर बता रहे हैं, शेष राज्यों के नतीजे आने शेष हैं) इनके मुताबिक हर 100 में से तीसरी महिला गर्भावस्था के दौरान किसी न किसी तरह की हिंसा की शिकार हो रही है। सर्वे यह भी बताता है कि सभी राज्यों में औसतन 17 से 20 फीसदी महिलाओं को परिवार के निर्णय में किसी तरह की भागीदारी नहीं दी जाती। यानी उनकी परिवार के पोषण से लेकर गर्भधारण तक में कोई सीधी भूमिका नहीं है, जबकि चूल्हे—चौके से लेकर अन्य घरेलू कामों में जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर ही अधिक होती है। इसके बावजूद उनसे पूछा तक नहीं जाता कि तुम्हारी क्या मर्जी है? तुम बच्चा चाहती हो या नहीं? घर में खाना किसकी पसंद का बनेगा? यह हमारे समाज की सबसे बड़ी पीड़ा बनकर सामने आती है। जहां एक ओर अपनी परंपरा के नवरात्रि से लेकर आयातित मदर्स डे मनाए जा रहे हैं, लेकिन दूसरी ओर एक ऐसा चेहरा भी है, जो चिंता में डालता है।
सामान्य महिलाएं भी हो रहीं पति से मारपीट का शिकार
केवल गर्भवती महिलाएं ही नहीं, सामान्य महिलाएं भी कहीं न कहीं अपने पति से मारपीट का शिकार हो रही हैं। सर्वे के मुताबिक तकरीबन 30 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें पति ने पीटा। अब से दस साल पहले जब इसी एजेंसी ने अपना तीसरा सर्वे जारी किया था तब भी देश में 37 प्रतिशत महिलाएं अपने पति से पिट रही थीं। दस सालों में हमने पैमाने को केवल सात बिंदु नीचे गिराया। जब हम अपने विकास के सारे पैमानों को बहुत तेजी से शिखर पर ले जाने को आतुर हैं तब सवाल यह है कि मानवीय मूल्यों को समृद्ध करने वाले इन मानकों को कैसे अनदेखा किया जा सकता है। तकनीकी विकास, आधारभूत विकास और अपनी सांख्यिकी को समृद्ध करते भारत में इस आधी दुनिया की आवाज को क्या हम केवल एक उत्सव ही मानते हैं या वाकई हमारा सम्मान और आस्था भी मजबूत हो रही है?
राज्य महिलाएं जिन्हें पति ने पीटा (%) गर्भावस्था के दौरान हिंसा का शिकार हुईं (%)
अंडमान निकोबार 18.8 3.2
आन्ध्रप्रदेश 43.2 4.8
बिहार 43.3 4.8
गोआ 12.00 1.6
हरियाणा 32.00 4.9
कर्नाटक 20.00 6.5
महाराष्ट्र 21.4 2.9
मणिपुर 53.1 3.4
मेघालय 28.7 0.4
मध्यप्रदेश 33.00 3.3
पुंडुचेरी 34.5 4.6
सिक्किम 02.6 0.4
तेलंगाना 43.00 5.9
तमिलनाडु 40.00 6.2
त्त्रिपुरा 27.9 2.2
उत्तराखंड 12.7 1.4
पश्चिम बंगाल 32.8 5.0
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4, (अभी केवल सत्रह राज्यों के नतीजे आए हैं)
प्रसव प्रक्रिया कितनी मुश्किल है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हर साल बड़ी संख्या में महिलाएं इस दौरान अपनी जान गंवा देती हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मुताबिक साल 2014-15 में 45 हजार 117 महिलाएं मातृत्व मृत्यु का शिकार हुई थीं, जबकि इसी अवधि में तकरीबन 16 लाख गर्भपात भी हुए।
अपना जीवन दांव पर लगा देने वाली स्त्री के लिए समाज कब और कैसे अपनी विचारधारा को विकसित करेगा, परिवार के निर्णयों में उसे कितना शामिल किया जाएगा, केवल यही नहीं, और भी पैमाने हैं जिनसे पता चलता है कि स्त्रियों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार जारी है। जैसे जमीन-जायदाद महिलाओं के नाम, मोबाइल फोन जिसे वह खुद इस्तेमाल भी करती हैं, पिछले एक साल में किया गया काम जिसका उन्हें कोई नगद भुगतान ही नहीं हुआ, तमाम जनधन योजनाओं के बाद भी महिलाओं के नाम बचत खातों की स्थिति। बातें बहुत हैं, और वक्त कम। फिलहाल तो आईए, मदर्स डे मनाएं...।
राकेश कुमार मालवीय एनएफआई के फेलो हैं, और सामाजिक मुद्दों पर शोधरत हैं...
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This Article is From May 07, 2016
हर तीसरी गर्भवती हिंसा का शिकार! आईए मनाएं मदर्स डे...
Rakesh Kumar Malviya
- ब्लॉग,
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Updated:मई 08, 2016 00:26 am IST
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Published On मई 07, 2016 21:10 pm IST
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Last Updated On मई 08, 2016 00:26 am IST
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