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This Article is From Mar 31, 2014

चुनाव डायरी : सबसे बड़ा रुपैया!

Akhilesh Sharma, Rajeev Mishra
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  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 13:07 pm IST
    • Published On मार्च 31, 2014 10:27 am IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 13:07 pm IST

क्या है इस लोकसभा चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा? विकास, महंगाई, भ्रष्टाचार, खस्ता अर्थव्यवस्था, सांप्रदायिकता, अशिक्षा, बेरोजगारी या फिर कुछ और? प्रमुख नेताओं के भाषणों में इन सारे मुद्दों का जिक्र बार-बार हो रहा है। अपनी पहली चुनावी रैली में सोनिया गांधी ने कहा कि कांग्रेस ने गंगा-जमुनी तहज़ीब को मजबूत किया है जबकि बीजेपी नफरत की राजनीति कर देश को कमजोर कर रही है। वहीं, नरेंद्र मोदी यूपीए सरकार की नाकामियों का जिक्र कर विकास को बड़ा मुद्दा बनाना चाह रहे हैं।

तो क्या बीजेपी ने हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों को ताक पर रख दिया है? उत्तर प्रदेश में कई रैलियों को संबोधित कर चुके नरेंद्र मोदी ने एक बार भी अयोध्या में राम मंदिर का जिक्र नहीं किया। जम्मू-कश्मीर में अपनी रैली में मोदी ने धारा 370 पर नए सिरे से बहस की मांग की थी। उनके भाषणों से समान नागरिक संहिता का मुद्दा भी गायब है। राम मंदिर, धारा 370 और समान नागरिक संहिता वो तीन मुद्दे हैं जिनसे बीजेपी के कट्टर हिंदुत्व की पहचान होती है। लेकिन 1998 में सरकार बनाने के साथ ही बीजेपी इन्हें ताक पर रखती आई है और इस बार भी ऐसा ही हो रहा है।

इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख पत्र पांचजन्य में एक सर्वे प्रकाशित हुआ है। इसके मुताबिक अधिकांश लोगों को राम मंदिर नहीं विकास चाहिए। सर्वे कहता है कि लोग रोजगार, बिजली, पानी, सड़क, अस्पताल, बिजली और सस्ता अनाज चाहते हैं। लोगों से पूछा गया था कि रोज़मर्रा की जिंदगी में उनके लिए क्या जरूरी है और इसका यही जवाब मिला। शायद इसी से इशारा मिलता है कि बीजेपी इस चुनाव में हिंदुत्व के मुद्दों पर ध्यान क्यों नहीं दे रही है।

3 अप्रैल को बीजेपी का घोषणापत्र जारी होगा। घोषणापत्र तैयार करने वाले नेताओं ने संकेत दिया है सबसे ज्यादा ध्यान अर्थव्यवस्था पर दिया जाएगा। बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आधारभूत ढांचे में बड़े पैमाने पर निवेश को प्रोत्साहन करने का वादा होगा। युवाओं के लिए रोजगार मुहैया कराने का वादा होगा। महंगाई की मार झेल रहे मध्य और निम्न वर्ग के लिए करों में सुधार का वादा होगा। सरसरी तौर पर राम मंदिर का जिक्र किया जाएगा। इस बारे में वही वादा होगा जो 2009 में किया गया था यानी आपसी बातचीत या अदालत के फैसले के जरिये इस विवाद का समाधान।

2014 के चुनाव को मुद्दा विहीन चुनाव कहा जा रहा है मगर ऐसा है नहीं। इस चुनाव में महंगाई और रोजगार बड़े मुद्दे बन कर उभर रहे हैं। ये ऐसा पहला चुनाव नहीं है, जहां देश की अर्थव्यवस्था एक बड़ा मुद्दा बन गई है। इससे पहले के कई चुनावों में भी लोगों के जीवन को बेहतर बनाने या फिर गरीबी हटाने जैसे वादे कर राजनीतिक दलों ने कामयाबी हासिल की हैं। कांग्रेस ने पिछला चुनाव तो आम आदमी के नाम पर ही जीता था।

लेकिन बीजेपी के लिए ये चुनाव अपने से छिटक गए मध्य वर्ग को फिर पास लाने का है। शहरी इलाकों में इस वर्ग की कांग्रेस से नाराजगी को भुनाने, दस करोड़ नए युवा वोटरों को रोजगार के मुद्दे पर साथ लाने और ग्रामीण क्षेत्रों में तरक्की का लाभ पहुँचाने का वादा कर बीजेपी मैदान में उतरी है। इसीलिए नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में बार-बार गुजरात और अन्य बीजेपी शासित राज्यों में हो रहे विकास की बात करते हैं।

पार्टी ने आर्थिक मोर्चे पर वाजपेयी सरकार और यूपीए सरकार की तुलना करने वाले आँकड़े भी जारी किए हैं। इनके जरिये बीजेपी ने ये साबित करने की कोशिश की है कि वाजपेयी सरकार एक मजबूत अर्थव्यवस्था छोड़ कर गई थी लेकिन यूपीए ने उसे पटरी से उतार दिया। पिछले दो दिनों में बीजेपी ने अलग-अलग शहरों में प्रेस कांफ्रेंस कर वित्त मंत्री पी चिदंबरम पर हमला बोला है। जाहिर है बीजेपी की कोशिश अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दों को बड़े चुनावी मुद्दे बनाने की है।

वैसे तो आंकड़ों के मायाजाल से भरपूर अर्थव्यवस्था एक ऐसा विषय है जो चुनाव के लिहाज से बेहद रूखा माना जाना चाहिए। खासतौर से भारत जैसे देश में जहां उम्मीदवार की जाति और धर्म पहले पूछा जाता है पार्टी और विचारधारा बाद में। अर्थव्यवस्था कोई भावनात्मक मुद्दा भी नहीं है। मगर रोटी, कपड़ा और मकान इंसान की बुनियादी जरूरत है। शायद इसीलिए कहते भी हैं सबसे बड़ा रुपैया!

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