चीन की एक बड़ी अच्छी कहावत है - "यदि आप छह महीने की योजना बनाते हैं, तो धान बोएं... यदि 10 साल की योजना बनाते हैं, तो बाग लगाएं... और यदि आप 100 साल की योजना बनाते हैं, तो स्कूल खोलें..." यदि हम इस नीतिपरक कहावत को इनकम टैक्स देने पर लागू करें, तो बात कुछ यूं कही जा सकती है - "यदि आप एक साल के बारे में सोचते हैं, तो आयकर की चोरी करें... यदि आप 10 साल के बारे में सोचते हैं, तो आयकर बचाएं... और यदि आप आने वाली पीढ़ियों के बारे में सोचते हैं, तो आयकर दें..."
यह मात्र कहावत नहीं है, सच है, और यह सच भी केवल कानूनी और नैतिक सच न होकर अच्छा-खासा आर्थिक सच है. दरअसल, हमारे सोचने की आंखें 'मायोपिया' का शिकार हो गई हैं, जिन्हें नज़दीक का, यानी कि तुरंत का नफा-नुकसान तो दिखाई देता है, दूर का, यानी कि भविष्य का दिखाई नहीं देता. यहां इन्कम टैक्स देने से भविष्य में होने वाले उन फायदों का लेखा-जोखा पेश किया जा रहा है, जिनकी हम एकदम अनदेखी कर खुद को अनावश्यक ही कमज़ोर, भयभीत तथा आर्थिक अपराधी बना देते हैं.
पहले यह सबसे महत्वपूर्ण गणना. आपको अपनी एक लाख रुपये की करयोग्य आय पर 10 प्रतिशत की दर से 10,000 रुपये इनकम टैक्स के रूप में देने होते हैं. यदि आप टैक्स दे देते हैं, तो आपके पास बचते हैं 90,000 रुपये, जो व्हाइट कहलाने लगेंगे. यदि आप टैक्स नहीं देते हैं, तो आपके पास पूरे एक लाख रुपये बचे रहेंगे, जो ब्लैक कहलाएंगे. यानी 10,000 रुपये की बचत का काला रंग आपके शेष 90,000 पर भी फैलकर पूरी रकम को काला कर देगा.
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यदि आपके पास व्हाइट मनी के रूप में 90,000 रुपये हैं, तो आप इस रकम को बैंक में जमा करके न्यूनतम आठ प्रतिशत सालाना की दर से कमाई कर सकते हैं. इस प्रकार टैक्स के रूप में दिए गए आपके 10,000 की भरपाई महज डेढ़ साल में हो जाएगी, और आगे भी आपकी रकम इसी प्रकार बढ़ती चली जाएगी.
अब टैक्स न देने की स्थिति को देखते हैं. इस एक लाख को या तो आप अपने पास ही रखेंगे या किसी को ब्याज पर दे देंगे. यदि अपने पास रखेंगे, तो इसकी वास्तविक मूल्य महंगाई की दर से कम होती जाएगी. यदि यह दर पांच प्रतिशत है, तो उस एक लाख की क्रयशक्ति पांच प्रतिशत घटकर 95,000 रह जाएगी. यह क्रम आगे भी चलता रहेगा, यानी वह निरंतर कम होता जाएगा. याद रखिए, नकद मुद्रा दुनिया की वह एकमात्र संपत्ति है, जिसकी वैल्यू समय के साथ घटती जाती है.
यदि आप इस काले धन को किसी को ब्याज पर दे देते हैं, और वह व्यक्ति आपको लौटाने से इंकार कर देता है, तो आप अपने इस धन के लिए कहीं भी वैध दावा नहीं कर सकेंगे. यहां तक कि धन के गायब हो जाने पर भी, चाहे वह सोने के आभूषणों के रूप में ही क्यों न हो.
आपकी स्थायी साख का निर्माण करने वाला तत्व केवल आपकी सफेद संपत्ति होती है. यदि आप भविष्य में कोई बड़ा काम करने, संपत्ति खरीदने या किसी अन्य ज़रूरत के लिए बैंक से कर्ज लेना चाहते हैं, तो बैंक आपका मूल्यांकन आपकी वैध संपत्ति के आधार पर ही करेगा. भारत में ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है, जो हैं तो करोड़पति, पर बैंक उन्हें लोन देने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं. यानी कि काले धन की गड्डियां भविष्य के विस्तार के लिए दीवार बन जाती हैं.
ज़ाहिर है, यदि आपके पास धन कैश में है, तो आप और आपके घरवाले उसे बेतहाशा खर्च करने में हिचकिचाएंगे नहीं, जो दरअसल बेवजह के खर्च होंगे. इस खर्च के प्रतिशत की दर किसी भी हालत में आयकर की दर से कम नहीं होती है, तो क्या टैक्स देकर उसे बैंक में जमा कर देना अधिक लाभदायक नहीं होगा...?
वस्तुतः काले धन की नींव पर खड़े महल का तल दलदल का होता है, जो कभी भी धंसकर गायब हो सकता है. भुजियावाले जैसों के महल का हश्र आप पढ़ ही रहे हैं, जबकि सफेद धन से बनाई गई एक झोंपड़ी भी चट्टान पर खड़ी रहती है, जिसके अस्तित्व और साथ के प्रति आप आश्वस्त हो सकते हैं.
डॉ. विजय अग्रवाल वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं...
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This Article is From Dec 23, 2016
नोटबंदी, काला धन और इनकम टैक्स : दरअसल, टैक्स देने से जाता नहीं, बच जाता है धन
Dr Vijay Agrawal
- ब्लॉग,
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Updated:दिसंबर 27, 2016 14:59 pm IST
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Published On दिसंबर 23, 2016 16:00 pm IST
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Last Updated On दिसंबर 27, 2016 14:59 pm IST
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