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This Article is From Oct 01, 2018

यूपी में पुलिस को किसकी शह? 

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 01, 2018 19:22 pm IST
    • Published On अक्टूबर 01, 2018 19:22 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 01, 2018 19:22 pm IST
क्या उत्तर प्रदेश में पुलिस राज कायम हो गया है? क्या राज्य में सड़कों पर अब लोगों को पुलिस से डर लगने लगा है? राज्य सरकार ने पुलिसवालों को 'ऑपरेशन क्लीन' के नाम पर जो हथियार थमाए हैं क्या उनके निशाने पर अब निर्दोष नागरिक आ गए हैं? ये सारे सवाल लखनऊ में विवेक तिवारी की दो पुलिसवालों के हाथों हत्या के बाद उठ खड़े हुए हैं. सवाल यह भी है कि क्या योगी आदित्यनाथ सरकार ने गुंडो-बदमाशों और आतंकवादियों को मार गिराने के लिए पुलिस वालों को जो शूट टू किल का अधिकार दे दिया है वो अब निर्दोष आम नागरिकों पर भारी पड़ रहा है. क्या गेहूं के साथ घुन भी पिस रहा है? ये सवाल कोई पहली बार नहीं उठे हैं.

विवेक तिवारी की हत्या के बाद जिस तरह से कुछ पुलिस अफसरों ने उन दो पुलिसवालों को बचाने की कोशिश की उससे भी पुलिस की मंशा शक के दायरे में आ जाती है. पहली एफआईआर में दो पुलिसवालों का नाम न होना और आरोपी पुलिसवाले से पुलिस हिरासत में इंटरव्यू दिलवाना इसी ओर इशारा कर रहा है. यह कोई हैरानी नहीं है कि जब सरकार और पुलिस पर चौतरफा दबाव पड़ा, तब मृतक की पत्नी की ओर से दोनों पुलिसवालों के नाम से हत्या की एफआईआर दर्ज हुई. इसी तरह से हत्या में नामजद सिपाही प्रशांत चौधरी की मदद के लिए जिस तरह से कुछ पुलिसवाले सोशल मीडिया पर अभियान चला रहे हैं और चंदा जमा कर रहे हैं, वह भी बता रहा है कि विवेक तिवारी की विधवा को इंसाफ के लिए लंबा इंतजार करना पड़ सकता है. यह बात सरकार भी मान रही है कि आरोपी पुलिसवालों की मदद हो रही है.

आखिर पुलिसवालों की इतनी हिम्मत कैसे हो गई कि वे न सिर्फ आरोपियों का बचाव करें, बल्कि सड़क चलते हर किसी को गोली मार दें? जानकार मानते हैं कि इसके पीछे योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से पुलिस को मुठभेड़ की खुली छूट देना भी हो सकता है. इसी के चलते पुलिसवालों के हौंसले आसमान पर जा पहुंचे और उन्हें लगने लगा कि वे चाहे कुछ भी कर लें, उनका बाल तक बांका नहीं हो सकता. यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद से मुठभेड़ के आंकड़े इसी ओर इशारा भी कर रहे हैं.

योगी आदित्यनाथ ने पिछले साल मार्च में सूबे की कमान संभाली. तब से अब तक उत्तर प्रदेश में करीब डेढ़ हजार एनकाउंटर हो चुके हैं. खबरों के मुताबिक इन मुठभेड़ों में 66 कथित अपराधी मारे गए, जबकि करीब सात सौ अपराधी घायल हुए. इन एनकाउंटर में चार पुलिसवाले भी मारे गए, जबकि पांच सौ अन्य लोग जख्मी हुए हैं. यह चौंकाने वाले आंकड़े हैं. सबसे ज्यादा एनकाउंटर मेरठ जोन में हुईं और उसके बाद आगरा जोन का नंबर आता है. तीसरे नंबर पर बरेली जोन है.

लेकिन राज्य पुलिस एनकाउंटर का बचाव कर रही है. राज्य के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने 11 सितंबर को कहा था कि एकाउंटर रणनीति का हिस्सा हैं ताकि दुर्दांत अपराधियों को पकड़ा जा सके. यह अपराध रोकने के लिए है. अब ओपी सिंह विवेक गुप्ता की मौत के लिए माफी मांग रहे हैं. लेकिन हालत यहां तक पहुंच गए हैं कि पुलिस ने एनकाउंटर का सीधा प्रसारण करने के लिए मीडिया तक को बुला लिया. ऐसा 20 सितंबर को अलीगढ़ में हुआ. जहां दो कथित अपराधियों मुस्तकीम और नौशाद को मार डाला गया. यूपी पुलिस के एनकाउंटर अभियान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर हो चुकी है और सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है. वैसे योगी आदित्यनाथ कह चुके हैं कि विवेक तिवारी की मौत एक दुर्घटना है. सब तरफ से दबाव पड़ने के बाद आज उन्होंने विवेक की विधवा और दो बेटियों से मुलाकात की. मुआवजे और नौकरी का एलान किया गया. विवेक की मौत पर सियासत तेज है. इसे जातीय और सांप्रदायिक रंग भी दिया जा रहा है. बीजेपी कठघरे में खड़ी है.

लेकिन बढ़ रहे अपराधों की रोकथाम का क्या तरीका हो? क्या सिपाही को लाठी की जगह पिस्तौल थमा देना इसका हल है? जानकार इसे लेकर एक राय नहीं हैं. उनका कहना है कि पुलिस को प्रशिक्षण देना बेहद आवश्यक है. लेकिन जाहिर है जब तक राजनीतिक नेतृत्व की ओर से कड़ा संदेश नहीं दिया जाता, तब तक ऐसे हादसों को नहीं रोका जा सकेगा.

(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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