आज अहमदगढ़ गांव कई बेरोज़गार युवा बैंड से जुड़े हैं
लुधियाना:
लुधियाना-मलेरकोटला हाइवे पर अहमदगढ़ का गांव पोहीड़ बैंड वालों लिए देश भर में मशहूर है. बैंड बजाने वाले ज़्यादातर युवा पढ़े लिखे बेरोज़गार हैं, जिनका चुनावी वादों से मोह भंग हो चुका है. लोगों का ध्यान खींचने के लिए बैंड बाजा सस्ता और सुलभ ज़रिया है. अहमदगढ़ की ख़ास पहचान पाइप बैंड वाले चुनावी मौसम में खासे व्यस्त हैं. उम्मीदवार चुनाव प्रचार के लिए इनका इस्तेमाल कर रहे हैं. आम आदमी पार्टी के साथ पांच सीटों पर तालमेल करने वाली लोक इंसाफ़ पार्टी के राजू पंजाबी कहते हैं, 'हम अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं अपने कार्यकर्ताओं का उत्साह देखकर. इसलिए हमने पहले से ही बैंड कर रखा है. इनको देखकर लोग बाहर आते हैं और हमें विक्टरी का साईन दिखाते हैं.' यूं तो बैंड वाले हर शहर में होते हैं. लेकिन अहमदगढ़ के बैंडवाले ब्रास की जगह पाइप पर सुर मिलाते हैं, जो आम तौर पर फ़ौज में बजाई जाती है.
गांव में इसकी शुरुआत क़रीब 20 साल पहले सिख रेजिमेंट के पूर्व सैनिक गुरदीप सिंह ने की. गुरदीप अपनी रेजिमेंट की बैंड का हिस्सा रहे. आज पोहीड़ गांव से गुज़रने वाली सड़क के दोनों तरफ़ बैंड वालों की दो दर्जन से ज़्यादा दुकानें सजी हैं. गुरदीप सिंह बताते हैं कि रिटायर होकर गांव आए तो पेंशन बहुत कम थी, फ़ैक्टरी में काम किया लेकिन तनख़्वाह ज़्यादा नहीं थी इसलिए जो काम बरसों अपनी रेजिमेंट में किया उसे ही पेश बना लिया. वो कहते हैं, 'भूतपूर्व सैनिकों के लिए वादे तो सभी करते हैं लेकिन मुड़ के कोई नहीं पूछता, रिटायर होने के बाद ये काम शुरू किया, गांव के बेरोज़गार लड़कों को भी ट्रेनिंग दी और आज गांव कई बेरोज़गार युवा बैंड से जुड़े हैं.'
गुरदीप की बदौलत गांव के कई पढ़े लिखे बेरोज़गार नौजवान रोज़ी रोटी कमा रहे हैं. सोढी बैंड में ड्रम बजाने वाला भूपिंदर बीएड है, टीचर ट्रेनिंग भी पास कर चुका है. वो कहता है, 'पढ़े लिखे होकर बैंड बजाना पड़ रहा है क्योंकि काम नहीं मिल रहा, प्राइवेट वाले सैलरी नहीं देते, सरकार नौकरी नहीं निकाल रही. इसलिए मजबूरी में ये काम करना पड़ रहा है. पार्टी वाले कहते हैं हम भत्ता देंगे. हमें भत्ता नहीं नौकरी चाहिए.' बैंड मास्टर रणदीप सिंह कहते हैं, 'हम सभी पार्टियों के चुनाव प्रचार में जाते हैं, वहां वो कई वादे करते हैं, लेकिन अगर उसे पूरा करते तो आज हम बैंड नहीं बजा रहे होते, हम सब पढ़े लिखे हैं. मैंने हेल्थ वर्कर की पढ़ाई की है लेकिन बेरोज़गार हूं.'
पंजाब में क़रीब 75 लाख बेरोज़गार युवा हैं जिनका वोट हासिल करने के लिए सियासी पार्टियों ने घर घर नौकरी, बेरोज़गारी भत्ता, स्किल सेंटर, सरकारी ठेकों में तरजीह, कारोबार के लिए ब्याज मुक्त लोन जैसे तमाम वादे किए हैं.
गांव में इसकी शुरुआत क़रीब 20 साल पहले सिख रेजिमेंट के पूर्व सैनिक गुरदीप सिंह ने की. गुरदीप अपनी रेजिमेंट की बैंड का हिस्सा रहे. आज पोहीड़ गांव से गुज़रने वाली सड़क के दोनों तरफ़ बैंड वालों की दो दर्जन से ज़्यादा दुकानें सजी हैं. गुरदीप सिंह बताते हैं कि रिटायर होकर गांव आए तो पेंशन बहुत कम थी, फ़ैक्टरी में काम किया लेकिन तनख़्वाह ज़्यादा नहीं थी इसलिए जो काम बरसों अपनी रेजिमेंट में किया उसे ही पेश बना लिया. वो कहते हैं, 'भूतपूर्व सैनिकों के लिए वादे तो सभी करते हैं लेकिन मुड़ के कोई नहीं पूछता, रिटायर होने के बाद ये काम शुरू किया, गांव के बेरोज़गार लड़कों को भी ट्रेनिंग दी और आज गांव कई बेरोज़गार युवा बैंड से जुड़े हैं.'
गुरदीप की बदौलत गांव के कई पढ़े लिखे बेरोज़गार नौजवान रोज़ी रोटी कमा रहे हैं. सोढी बैंड में ड्रम बजाने वाला भूपिंदर बीएड है, टीचर ट्रेनिंग भी पास कर चुका है. वो कहता है, 'पढ़े लिखे होकर बैंड बजाना पड़ रहा है क्योंकि काम नहीं मिल रहा, प्राइवेट वाले सैलरी नहीं देते, सरकार नौकरी नहीं निकाल रही. इसलिए मजबूरी में ये काम करना पड़ रहा है. पार्टी वाले कहते हैं हम भत्ता देंगे. हमें भत्ता नहीं नौकरी चाहिए.' बैंड मास्टर रणदीप सिंह कहते हैं, 'हम सभी पार्टियों के चुनाव प्रचार में जाते हैं, वहां वो कई वादे करते हैं, लेकिन अगर उसे पूरा करते तो आज हम बैंड नहीं बजा रहे होते, हम सब पढ़े लिखे हैं. मैंने हेल्थ वर्कर की पढ़ाई की है लेकिन बेरोज़गार हूं.'
पंजाब में क़रीब 75 लाख बेरोज़गार युवा हैं जिनका वोट हासिल करने के लिए सियासी पार्टियों ने घर घर नौकरी, बेरोज़गारी भत्ता, स्किल सेंटर, सरकारी ठेकों में तरजीह, कारोबार के लिए ब्याज मुक्त लोन जैसे तमाम वादे किए हैं.
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