New Delhi:
भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी से लेकर कनाडा के आशीष बगई तक की निगाह 2 अप्रैल को वानखेड़े स्टेडियम में जिस चमचमाती ट्रॉफी को उठाने पर लगी है, वह वास्तव में असली विश्व कप ट्रॉफी की प्रतिकृति होगी, जिसमें पिछले विजेताओं के नाम को छोड़कर बाकी कोई भी अंतर नहीं होगा। टीमों के बीच इस ट्रॉफी के लिए शनिवार से जंग शुरू होगी, जो सोने और चांदी से तैयार की गई है और जिसका वजन 11 किग्रा है। विश्व कप की यह ट्रॉफी 1999 में गेर्राड एंड कंपनी के कारीगरों ने दो महीने के अंदर बड़ी मेहनत से तैयार की है। गेर्राड एंड कंपनी ब्रिटेन के शाही परिवार के ज्वैलर्स भी हैं। इस ट्रॉफी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह क्रिकेट को पूरी तरह से परिभाषित करती है। इसमें बल्लेबाजी, गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण तीनों विभाग का बहुत ही आकर्षक तरीके से समावेश किया गया है। ट्रॉफी की कुल लंबाई 60 सेंटीमीटर है, जिसमें तीन स्तंभों के सहारे पर ऊपर स्वर्णिम ग्लोब है। ट्रॉफी पर लगे तीनों स्तंभ बल्लेबाजी, गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके निचले वाले हिस्से में पिछले विजेताओं के नाम लिखे गए हैं और अब भी 10 और टीमों के नाम इसमें समा सकते हैं। मतलब यदि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद अगले 10 विश्व कप में भी इसी ट्रॉफी को बनाए रखना चाहे, तो वह ऐसा कर सकती है। विश्व कप की शुरुआत 1975 में हुई थी, लेकिन इसे स्थायी ट्रॉफी 1999 में जाकर मिली थी। इससे पहले जब भी कोई नया प्रायोजक मिलता, तो ट्रॉफी भी बदल जाती थी। आईसीसी ने भी फीफा की तर्ज पर पहली बार 1999 में खुद की ट्रॉफी तैयार करने और विजेता टीम को उसे देने का फैसला किया था। पहले तीन विश्व कप की प्रायोजक प्रूडेंशियल कंपनी थी, इसलिए उसे प्रूडेंशियल ट्रॉफी कहा गया। इसके बाद 1987 में जब भारत और पाकिस्तान ने विश्व कप की मेजबानी की तो रिलायंस मुख्य प्रायोजक था और इसलिए ट्रॉफी का नाम पड़ा था रिलायंस ट्रॉफी। इसी तरह से ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में 1992 में हुए विश्व कप को बेंसेन एंड हेजज विश्व कप और इसके चार साल बाद 1996 में भारतीय उपमहाद्वीप में खेले गए टूर्नामेंट को विल्स विश्व कप के नाम से जाना गया था। आईसीसी के इस टूर्नामेंट के अब भी कई प्रायोजक हैं, लेकिन उनका नाम ट्रॉफी या विश्व कप से नहीं जुड़ता है। अब इस टूर्नामेंट को आईसीसी क्रिकेट विश्व कप और ट्रॉफी को आईसीसी ट्रॉफी कहा जाता है।