New Delhi:
गुरुवार से शुरू होने जा रहे 'क्रिकेट महाकुम्भ' आईसीसी विश्व कप - 2011 के दौरान क्रिकेट प्रेमियों की नजरें जहां अपने-अपने पसंदीदा स्टार क्रिकेटरों पर रहेगी, वहीं तमाम स्टार जिस ट्रॉफी के लिए आपस में भिड़ेंगे, उसकी हैसियत भी किसी सुपरस्टार से कम नहीं... विजेता चाहे जो भी रहे, लेकिन अंतिम पलों में फोटोग्राफर सबसे अधिक तस्वीरें इसी ट्रॉफी की लेने वाले हैं... यही नहीं, 2 अप्रैल को देर रात तक और 3 अप्रैल की सुबह देश और दुनिया के तमाम टेलीविजन चैनल, समाचारपत्र और वेब पोर्टलों पर विजेता टीम के साथ-साथ जिस चीज़ का बोलबाला रहेगा, वह यही ट्रॉफी होगी... 11 किलोग्राम वजनी और 60 सेंटीमीटर ऊंची इस ट्रॉफी के लिए गुरुवार से 14 टीमों के बीच 43 दिनों तक अब लगातार जंग चलेगी... इसे हासिल करने वाला अगले चार वर्ष तक विश्व क्रिकेट का बादशाह कहलाएगा और विजेता कप्तान इसे देख-देखकर इतराया करेगा... आइए, जानते हैं, आखिर कैसी है यह ट्रॉफी और क्या है इसका इतिहास... वर्ष 1999 के विश्व कप में इस ट्रॉफी को एक आधिकारिक नाम दिया गया, आईसीसी विश्वकप ट्रॉफी... इससे पहले उसे प्रूडेंशियल कप, बेंसन एंड हेजेज़ कप, विल्स ट्रॉफी और रिलायंस कप के नाम से जाना गया... यह वह दौर था, जब विश्वकप के साथ प्रायोजकों का नाम जोड़ने का चलन था, लेकिन 1999 के बाद आईसीसी ने इसके साथ हमेशा के लिए अपना नाम जोड़ दिया... वर्ष 1975 में जब पहली बार विश्वकप खेला गया था, इंग्लैंड की जीवन बीमा कम्पनी प्रूडेंशियल कॉर्प ने इसे प्रायोजित करने का फैसला किया था, और उसकी शर्त थी कि कप के साथ उसका नाम जोड़ा जाए, सो, आईसीसी ने वही किया... इसके बाद वर्ष 1979 और 1983 के विश्वकप के दौरान भी ट्रॉफी को प्रूडेंशियल कप के नाम से जाना गया... इसी कारण शुरुआती तीनों विश्वकप इंग्लैंड में ही खेले गए... 1983 में भारत ने विश्वकप जीता और इस तरह यह कप पहली बार भारत आया... वर्ष 1987 में विश्वकप पहली बार इंग्लैंड से बाहर खेला गया, और इसका आयोजन तत्कालीन चैम्पियनों की धरती भारत में किया गया, पाकिस्तान सह-आयोजक था। इस विश्वकप का मुख्य प्रायोजक थी, रिलायंस इंड्रस्ट्रीज, सो, विश्वकप ट्रॉफी या विश्वकप को रिलायंस कप के नाम से जाना गया... रिलायंस आज भी विश्वकप का आधिकारिक प्रायोजक है, लेकिन अब ट्रॉफी के साथ उसका नाम नहीं जुड़ा है... इसके बाद विश्वकप 1992 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड की मेज़बानी में खेला गया, जिसे प्रायोजित किया सिगरेट बनाने वाली बड़ी कम्पनी बेन्सन एंड हेजेज़ ने, और यही कारण था कि इस विश्वकप को बेंसन एंड हेजेज़ कप के नाम से जाना गया... ऑस्ट्रेलिया की सैर करने और नए नाम से जाने जाने के बाद विश्वकप ट्रॉफी एक बार फिर नए नाम से मशहूर होने के लिए तैयार थी... 1996 में विश्वकप का आयोजन फिर भारत में हुआ और इस बार इसे प्रायोजित किया सिगरेट बनाने वाली कम्पनी आईटीसी के सबसे बड़े ब्रांड विल्स ने, सो, इस ट्रॉफी को विल्स कप के नाम से जाना गया... स्थान और नाम बदलते-बदलते ट्रॉफी मानो थक गई थी, सो, उसने नाम में स्थायित्व की गुहार लगाई, जिसे आईसीसी ने सुना और 1999 में इंग्लैण्ड, वेल्स, आयरलैण्ड, नीदरलैण्ड और स्कॉटलैण्ड की संयुक्त मेज़बानी में खेले गए विश्वकप के आठवें संस्करण से इस ट्रॉफी को आईसीसी विश्वकप ट्रॉफी नाम दे दिया गया... अब दिलचस्प तथ्य यह था कि आईसीसी ने ट्रॉफी को एक नया नाम तो दे दिया था, लेकिन उसके पास विजेता टीम को देने के लिए असल में कोई ट्रॉफी थी ही नहीं... प्रूडेंशियल कप (1975, 1979 और 1983) के बाद जितने भी विश्वकप खेले गए, ट्रॉफियां हमेशा के लिए विजेता टीमों को दे दी गईं, लेकिन आईसीसी आने वाले समय में ऐसा नहीं करने वाला था... इसी को ध्यान में रखकर उसने एक आकर्षक ट्रॉफी तैयार करने का फैसला किया, जो सोने और चांदी से बनी होनी चाहिए थी और इसी कारण आईसीसी ने इस महत्वपूर्ण काम का जिम्मा लंदन के मशहूर ज्वेलर गेरार्ड एंड कम्पनी को सौंपा, जिसे दुनिया क्राउन ज्वेलर्स के नाम से जानती थी... ज्वेलर ने दो महीने में 60 सेंटीमीटर और 11 किलोग्राम वजनी एक खास तरह की ट्रॉफी तैयार की, जिसमें सोने और चांदी का प्रयोग किया गया। इसमें सोने की परत चढ़ा एक ग्लोब बना है, जिसे तीन ओर से स्टम्प्स और बेल्स (विकेट और गिल्लियां) ने घेर रखा है... ग्लोब गेंद का परिचायक है और स्टम्प्स और बेल्स क्रिकेट के तीन विभागों - गेंदबाजी, बल्लेबाजी और क्षेत्ररक्षण - के परिचायक हैं... ट्रॉफी पर पूर्व विजेताओं के नाम उकेरे जाते हैं और सबसे खास बात यह है कि मूल ट्रॉफी संयुक्त अरब अमीरात के शहर दुबई में स्थित आईसीसी के मुख्यालय में रखी रहती है... विश्वकप जीतने वाली टीमों को आईसीसी चैम्पियंस ट्रॉफी की प्रतिकृति दी जाती है... क्रिकेट के बहुतेरे प्रशंसक भले ही न जानते हों कि विश्वकप जीतने वाली टीमों को मूल ट्रॉफी नहीं, बल्कि प्रतिकृति दी जाती है, लेकिन इसके बावजूद ट्रॉफी को लेकर खिलाड़ियों के रोमांच में किसी प्रकार की कमी नहीं आती... अब सच्चाई यह है कि क्रिकेट विश्वकप का यह महाकुम्भ फीफा फुटबॉल विश्वकप के बाद विश्व में सर्वाधिक देखा जाने वाला खेल आयोजन बना हुआ है और जिस ट्रॉफी के लिए यह महाकुम्भ होता है, उसकी हैसियत किसी सुपरस्टार से कम नहीं...
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