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This Article is From Jun 14, 2020

चे ग्वारा,एक ऐसा क्रांतिकारी जो लंदन, क्यूबा, दिल्ली के जेएनयू की दिवारों तक में बसा है

आज चेग्वेरा का 88th बर्थडे है. भले ही 'चेग्वेरा' इस दुनिया में नहीं है लेकिन अपने विचारों की वजह से दुनिया के हर वह इंसान में बसे है, जो इस बाजारवाद के खिलाफ लड़ाई में खड़ा है.

चे ग्वारा,एक ऐसा क्रांतिकारी जो लंदन, क्यूबा, दिल्ली के जेएनयू की दिवारों तक में बसा है
चे ग्वारा,एक ऐसा क्रांतिकारी जो देश -दुनिया से लेकर जेएनयू की दिवारों तक में बसा है
नई दिल्ली:

आज चेग्वेरा का 88th बर्थडे है. भले ही 'चेग्वेरा' इस दुनिया में नहीं है लेकिन अपने विचारों की वजह से दुनिया के हर वह इंसान में बसे है, जो इस 'बाजारवाद' के खिलाफ लड़ाई में खड़ा है. चाहे वह लंदन में पढ़ रहे स्टूडेंट हो या क्यूबा के बच्चों के मुंह पर उनका नाम, सिर्फ इतना ही नहीं जेएनयू के दीवारों और वहां के स्टूडेंट के विचारों से लेकर हर गली- मोहल्ले के दिवारों पर 'चे' कि वह खूबसूरत तस्वीर जिसमें वह सिर पर टोपी पहने अपनी आंखों से लोगों को बिना बोले बहुत कुछ समझाना चाहते हैं. 'चे' आम आदमी होते हुए भी गरीबों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं थे. दुनिया के ऐसे बहुत सारे देश हैं जहां चेग्वेरा की पूजा 'भगवान' की तरह की जाती है. चे के बारे में जितना भी लिखा जाए कम है लेकिन आज उनका जन्मदिन है और इस खास मौके पर हम आपको बताएंगे आखिर क्यों पूरी दुनिया में इस महान क्रांतिकारी 'अर्नेस्तो चे ग्वेरा' के विचार लोगों के शरीर में खून की तरह दौड़ती है..

आपको बता दें कि चे सिर्फ 39 साल के थे तभी उन्हें मार दिया गया था. लेकिन मौत के इतने साल बाद भी कोई इनके विचार को नहीं मार पाया. इस महान क्रांतिकारी आज भी के विचार आज भी लोगों को दिलों में बसती है. मरने से पहले चे ने कहा भी था, 'तुम एक इंसान को मार रहे हो, लेकिन उसके विचारों को नहीं मार सकते'. जिस तरह से भारत में भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद सहित दूसरे क्रांतिकारियों को जाना जाता है ठीक उसी तरह चे लैटिन अमेरिका, क्यूबा सहित दुनिया के कई देशों के लिए किसी हीरों से कम नहीं है. जिसके विचार ने लोगों की जिंदगी बदल दी.

भारत में बहुत से ऐसे लोग हैं, जो चे ग्वेरा के विचारों से प्रेरित हैं और उनकी तरह बनना चाहते हैं. भारत का सबसे मशहूर सेंट्रल यूनिवर्सिटी जेएनयू के दिवारों से लेकर वहां के प्रोफेसर, स्टूडेंट तक आपको चे के विचारों पर बात करते हुए और इसे फॉलो करते हुए दिख जाएंगे. चे की लोकप्रियता आप इससे समझ सकते हैं कि किसी भी देश का स्टूडेंट हो वह इनके विचारों को पढ़ते हैं और उन्हें फॉलो करते हैं. एक समय अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन कहे जाना वाला आज कई लोगों की नजर में एक महान क्रांतिकारी और नायक है.

अगर चे चाहते तो अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स के कॉलेज में डॉक्टर बनने के बाद अपनी जिंदगी आराम से बिता सकते थे लेकिन उन्होंने क्रांति को चुना. कॉलेज के समय से ही चे अपने आसपास की गरीबी और शोषण को देखकर मार्क्सवाद की तरफ उनका खास झुकाव था. सिर्फ इतना ही नहीं अपनी मोटरसाइकिल से लैटिन अमेरिकी देशों की यात्रा की थी, जहां उन्होंने गरीबी और भूख को काफी करीब से महसूस किया था. अपनी इस यात्रा पर चे ने एक डायरी भी लिखी थी, जिसे उनकी मौत के बाद 'द मोटरसाइकिल डायरी' के नाम से छापा गया. इसके अलावा 2004 में 'द मोटरसाइकिल डायरीज' के नाम से एक फिल्म भी बन चुकी है.

 चे को क्यूबा का जनक भी कहा जाता है क्योंकि वह चे ही थे जिन्होंने फिदेल कास्त्रा के साथ मिलकर ही 100 'गुरिल्ला लड़ाकों' की एक फौज बनाई और मिलकर तानाशाह बतिस्ता के शासन को उखाड़ फेंका था.क्यूबा को आजाद कराया था. चे ग्वेरा क्रांति के नायक माने जाने वाले फिदेल कास्त्रो के सबसे भरोसेमंद थे, इसके बाद फिदेल कास्त्रो आजाद क्यूबा के पहले प्रधानमंत्री बने, जबकि चे ग्वेरा को महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार सौंपा गया. करीब 17 सालों तक क्यूबा के प्रधानमंत्री रहने के बाद फिदेल कास्त्रो राष्ट्रपति बने और 2008 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.

चे ग्वेरा को 8 अक्टूबर 1967 को बोलिविया से गिरफ्तार किया गया और गिरफ्तारी के अगले ही दिन उन्हें मार दिया गया. उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 39 साल की थी. चे को मरवाने की पीछे अमेरिका का बहुत बड़ा हाथ था. क्योंकि जब चे बोलिविया में पकड़े गए तो उन्हें  गिरफ्तार करने के बाद बोलिवियाई सरकार ने चे के दोनों हाथ काट दिए और उनके शव को एक अनजान जगह पर दफना दिया था. 


 

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