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This Article is From Apr 22, 2017

खचाखच भरी ट्रेन में टॉयलेट तक नहीं जा पाए, अब रेलवे को देना पड़ेगा हर्जाना

खचाखच भरी ट्रेन में टॉयलेट तक नहीं जा पाए, अब रेलवे को देना पड़ेगा हर्जाना
नई दिल्ली: अगर आप भारतीय रेलवे की स्लिपर क्लास से लगातार सफर करते आए हैं, तो इस बात को तो समझ ही सकते होंगे कि रिज़र्वेशन होने के बावजूद अक्सर यह सफर इतना आसान नहीं होता. आरक्षित सीटों पर हम न चाहते हुए भी किसी न किसी वेटिंग टिकट वाले व्यक्ति को 'एडजस्ट' करके जगह दे ही देते हैं. इसके अलावा जो बिना टिकट के यात्रा करते हैं, वह भी अपने लिए जगह बना ही लेते हैं. यानि रिज़र्वेशन के बावजूद तमाम तरह के समझौते करने ही पड़ते हैं लेकिन क्या हो जब इस भीड़ की वजह से आपको टॉयलेट जाने के लिए भी खुद को रोकना पड़े.

ऐसा ही कुछ दिल्ली के निवासी देव कांत के साथ साल 2009 में हुआ था. वह अपने परिवार के साथ अमृतसर से दिल्ली जा रहे थे और उन्होंने इसके लिए रिज़र्वेशन करवाया था. लेकिन ट्रेन जब लुधियाना पहुंची तो अचानक उन लोगों का झुंड ट्रेन में घुस आया जिनके पास टिकट नहीं था. इसके बाद ट्रेन इस कदर खचाखच भर गई कि देव कांत और उनके जैसे कई लोगों को रास्ते भर टॉयलेट तक जाने के लिए भी जगह नहीं मिली.

देव कांत भारत सरकार के क़ानून मंत्रालय में डिप्टी क़ानूनी सलाहकार हैं. उन्होंने इस कड़वे अनुभव की शिकायत 2010 में रेल मंत्रालय से की और फिर उपभोक्ता अदालत का भी रुख़ किया. हाल ही में उपभोक्ता अदालत ने इस मामले पर फैसला सुनाते हुए रेल विभाग से देवकांत को 30 हज़ार रुपये बतौर हर्जाना देने का आदेश दिया है.

वैसे तो कोर्ट ने रेलवे को दो साल पहले ही यह हर्जाना देने का आदेश दिया था, लेकिन रेलवे ने इसका विरोध करते हुए राज्य आयोग में अपील की थी. वहां भी इस अपील को खारिज करते हुए आदेश बरकरार रखा गया. देव कांत ने बीबीसी से हुई एक बातचीत में बताया कि उन्होंने और उनके सहयात्रियों ने इस बारे में सबसे पहले टीसी से शिकायत की थी. लेकिन टिकट कलेक्टर ने भीड़ न हटा पाने को लेकर अपनी मजबूरी जाहिर कर दी.

देवकांत ने बताया कि ट्रेन के डिब्बे में नीचे, चलने के रास्ते पर सभी जगह पर लोग भरे हुए थे. कई औरतें और बच्चे तो बाथरूम के सामने भी लेटे हुए थे ऐसे में उनके लिए पास ही के टॉयलेट तक जाना नामुमकिन हो गया. वह और उनके परिवार के लोगों को कई घंटों तक पेशाब रोक कर बैठे रहना पड़ा. कोर्ट ने यह भी कहा कि यह रेलवे की ड्यूटी है कि वह सिर्फ उन्हीं लोगों को ट्रेन में सफर करने दें जिनके पास इसका अधिकार (टिकट) हो. रेलवे अधिकारियों का यह कर्तव्य है कि आरक्षित डिब्बे में गैर अधिकृत लोगों को घुसने से रोके.

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