एक ड्रेस की खरीददारी के दौरान उसके रंग को लेकर चली दो दोस्तों और परिवार वालों की बहस से इंटरनेट की दुनिया सनसनाने लगी। ट्विटर, फेसबुक, बजफीड, वाशिंगटन पोस्ट, यूएस मैग्जीन के अलावा सैकड़ों फैशन ब्लागर और दुनिया भर की न्यूज़ वेबसाइटों पर चार दिनों तक चली बहस के बाद ये पता चल गया है कि ड्रेस का असली रंग क्या था।
ड्रेस का असली रंग ब्लू और ब्लैक ही है। ऐसे में बड़ा सवाल ये उभरता है कि आखिर लाखों लोगों को ये ड्रेस गोल्डेन और सफेद क्यों नजर आ रही थी। क्या एक साथ इतने लोगों के देखने की क्षमता में अंतर संभव है।
न्यूरो, आंख और प्रकाश विज्ञान से जुड़े कई विशेषज्ञों ने इस दिलचस्प मामले की पड़ताल कर अपने नतीजे बताने शुरू कर दिए हैं। कई विशेषज्ञों का मानना है कि अगर तस्वीर को ओवरएक्सपोजड किया जाए तो उसके रंग को लेकर लोगों के नजरिए में अंतर संभव है।
रॉकेस्टर इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नालॉजी के प्रोग्राम ऑफ कलर साइंस विभाग के निदेशक मार्क फेयरचाइल्ड ने बताया है कि इंटरनेट पर मौजूद इस तस्वीर का ब्लू और ब्लैक रंग इसलिए छुप गया क्योंकि यह तस्वीर बेहद नजदीक से ली गई है और इसके पीछे से रोशनी भी आ रही है। मार्क के सहयोगी राय बर्न्स की राय में अगर इस ड्रेस की तस्वीर को थोड़ी दूरी से लिया जाता तो यह ब्लू और ब्लैक ही नजर आता।
वहीं, राकेस्टर यूनिवर्सिटी के ब्रेन एंड काजिनिटिव साइंस के प्रोफेसर डुजे टाडिन के मुताबिक आंखों की रेटिना में मौजूद फोटोरिस्पेटर, जिसे कोन कहते हैं, की संख्या में विभिन्नता के चलते लोग एक ही रंग को अलग-अलग देख पाते हैं। इंसानी आंखों के रेटिना में साठ लाख कोन होते हैं जो हरे, लाल और ब्लू रंग के प्रति संवेदनशील होते हैं। इन कोन से मिले संकेत के आधार पर ही दिमाग रंग की पहचान करता है।
डॉ टाडिन ने इस मसले पर न्यूयार्क टाइम्स से अपनी बातचीत में कहा है- ब्लू रंग के मामले में ऐसा होता है, क्योंकि हमारे रेटिना में ब्लू रंग की संवेदनशीलता वाले कोन सबसे कम होते हैं, ऐसे ब्लू रंग सफेद रंग के करीब दिखता है।
लीड्स यूनिवर्सिटी में कलर साइंस एंड टेक्नॉलॉजी के प्रोफेसर स्टीफन वेस्टलैंड ने बीबीसी से बताया है कि इस ड्रेस को जिस रोशनी में लिया गया है वो विचित्र किस्म का है, इसके चलते ही कंफ्यूजन की स्थिति बनी है।
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