एन्नी दिव्या ने 21 साल की उम्र में बोईंग 777 उड़ाना शुरू किया. तस्वीर: प्रतीकात्मक
नई दिल्ली:
भारत की एक और बेटी एन्नी दिव्या ने देश का नाम रोशन किया है. अपनी दिव्या बोइंग 777 उड़ाने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की पायलट बन गई हैं. बोइंग 777 दुनिया के सबसे बड़े यात्री विमानों में से एक गिना जाता है, जिसे दिव्या ने महज 30 साल की उम्र में उड़ाकर इतिहास रच दिया है. एन्नी दिव्या को 19 साल की उम्र में बोईंग-737 उड़ाने का अवसर मिला. उसके बाद कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा. 21 साल की उम्र में उन्होंने बोईंग 777 उड़ाना शुरू किया. वहीं भारत में महज 15 प्रतिशत महिलाएं पायलट हैं जबकि विश्व स्तर पर यह आंकड़ा तो सिर्फ 5 प्रतिशत ही है. इस पेशे में पुरुषों का वर्चस्व बरकरार है.
देश की बेटी दिव्या के पिताजी रिटायर्ड फौज में हैं. वे मूल रूप से पंजाब के पठानकोट के हैं. पिता की नौकरी के चलते एन्नी दिव्या का बचपन आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में बीता. न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में एन्नी दिव्या ने कहा, 'मैं आज जो कुछ भी हूं, उसके लिए अपने मां-बाप और शिक्षकों की शुक्रगुजार हूं.
कुछ यूं रहा दिव्या का अब तक का सफर
दिव्या को बचपन से ही हवाई जहाज उड़ाने का शौक था, शायद इसलिए वह इस मुकाम तक पहुंच पाई हैं. हालांकि दिव्या यह भी कहती हैं कि इस मुकाम को पाने के बाद ऐसा लगता है कि अगर उनकी मां और पिताजी ने साथ नहीं दिया तो शायद यहां तक का सफर तय करना आसान नहीं था.
दिव्या ने बताया कि जब वह पायलट की पढ़ाई शुरू करने की सोच रही थीं, तो अंग्रेजी आड़े आ रही थी. फ्लाइंग अकादमी आने के बाद उन्होंने अंग्रेजी की चुनौती से पार कर पाई.
21 साल की उम्र में उन्होंने बोईंग 777 उड़ाना शुरू किया. वहीं भारत में महज 15 प्रतिशत महिलाएं पायलट हैं जबकि विश्व स्तर पर यह आंकड़ा तो सिर्फ 5 प्रतिशत ही है. इस पेशे में पुरुषों का वर्चस्व बरकरार है.
12 वीं पास करने के बाद जब ऐनी का यूपी के फ्लाइंग स्कूल इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी में एडमिशन हुआ तो पढ़ाई के लिए कर्ज लेना पड़ा. ऐनी की खराब अंग्रेजी का अक्सर
लोग मजाक उड़ाया करते थे, लेकिन बाद में स्कॉलरशिप जीती.
देश की बेटी दिव्या के पिताजी रिटायर्ड फौज में हैं. वे मूल रूप से पंजाब के पठानकोट के हैं. पिता की नौकरी के चलते एन्नी दिव्या का बचपन आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में बीता. न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में एन्नी दिव्या ने कहा, 'मैं आज जो कुछ भी हूं, उसके लिए अपने मां-बाप और शिक्षकों की शुक्रगुजार हूं.
कुछ यूं रहा दिव्या का अब तक का सफर
दिव्या को बचपन से ही हवाई जहाज उड़ाने का शौक था, शायद इसलिए वह इस मुकाम तक पहुंच पाई हैं. हालांकि दिव्या यह भी कहती हैं कि इस मुकाम को पाने के बाद ऐसा लगता है कि अगर उनकी मां और पिताजी ने साथ नहीं दिया तो शायद यहां तक का सफर तय करना आसान नहीं था.
दिव्या ने बताया कि जब वह पायलट की पढ़ाई शुरू करने की सोच रही थीं, तो अंग्रेजी आड़े आ रही थी. फ्लाइंग अकादमी आने के बाद उन्होंने अंग्रेजी की चुनौती से पार कर पाई.
21 साल की उम्र में उन्होंने बोईंग 777 उड़ाना शुरू किया. वहीं भारत में महज 15 प्रतिशत महिलाएं पायलट हैं जबकि विश्व स्तर पर यह आंकड़ा तो सिर्फ 5 प्रतिशत ही है. इस पेशे में पुरुषों का वर्चस्व बरकरार है.
12 वीं पास करने के बाद जब ऐनी का यूपी के फ्लाइंग स्कूल इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी में एडमिशन हुआ तो पढ़ाई के लिए कर्ज लेना पड़ा. ऐनी की खराब अंग्रेजी का अक्सर
लोग मजाक उड़ाया करते थे, लेकिन बाद में स्कॉलरशिप जीती.
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