
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अफगानिस्तान की स्थिति पर प्रस्ताव पर वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया और इस रुख को कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना गया.
- भारत ने अफगानिस्तान में सकारात्मक और संतुलित नीति अपनाने पर जोर दिया, जिससे संघर्ष के बाद की स्थिति में सुधार हो सके.
- भारत ने अफगानिस्तान को मानवीय सहायता प्रदान की है, जिसमें गेहूं, दवाएं, कीटनाशक और महिलाओं के पुनर्वास के लिए सामग्री शामिल है.
भारत, अफगानिस्तान पर एक ड्राफ्ट रिजॉल्यूशन पर संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में हुई वोटिंग से नदारद रहा. भारत स्थायी प्रतिनिधि पर्वतनेनी हरीश ने अफगानिस्तान की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव पर वोटिंग को लेकर रुख स्पष्ट किया. भारत की तरफ से कहा गया है कि जो नजरिया अंतरराष्ट्रीय समुदाय की तरफ से अफगानिस्तान के लोगों के लिए अपनाया जा रहा है, उससे अपेक्षित परिणाम प्राप्त होने की संभावना नहीं है. 193 सदस्यों वाली महासभा ने सोमवार को जर्मनी की तरफ से 'अफगानिस्तान की स्थिति' पर पेश किए गए ड्राफ्ट रिजॉल्यूशन को स्वीकार कर लिया है. इस प्रस्ताव के पक्ष में 116 वोट्स पड़े जबकि इसके विरोध में दो मत पड़े. वहीं भारत समेत 12 सदस्यों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया.
रूस के नक्शेकदम पर भारत!
भारत की तरफ से जो कदम उठाया गया, वह कूटनीतिक स्तर पर काफी महत्वपूर्ण करार दिया जा रहा है. यहां यह याद करना भी जरूरी है कि पिछले दिनों अफगानिस्तान में कई अहम घटनाक्रम हुए हैं जिनमें सबसे अहम है, रूस का तालिबान को मान्यता देना. इसके बाद से ही यह कयास लगाए जाने लगे थे कि कुछ और देश जिसमें भारत भी शामिल है, रूस के नक्शेकदम पर चल सकता है. साल 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता में वापसी की है और तब से ही भारत का रवैया कुछ बदला हुआ सा है. काबुल में अगस्त 2021 में भारत ने दूतावास को अस्थायी तौर पर बंद कर दिया था. फिर जून 2022 में उसे फिर से खोल दिया गया. इसके बाद तालिबान अधिकारियों से मिलने के लिए राजनयिकों को भेजा गया. फिर, जनवरी 2025 में, भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री मुत्ताकी के साथ बैठक के लिए दुबई गए. इस साल में मई में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मुत्ताकी से फोन पर बात की थी. पहली बार था तब भारत ने सार्वजनिक तौर पर इस कॉल को स्वीकार किया था.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को खरी-खरी
महासभा में भारत के स्थायी प्रतिनिधि, राजदूत पार्वथानेनी हरीश ने मतदान को लेकर जो कुछ कहा है उससे उसने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी एक बड़ा संदेश देने की कोशिश की है. भारत ने दो टूक शब्दों में कहा है कि संघर्ष के बाद की स्थिति से निपटने के लिए जो भी नीति तैयार की जाए वह सकारात्मक बर्ताव को प्रोत्साहित करने वाली हो. भारत के अनुसार अफगानिस्तान में सिर्फ सजा देने वाला रवैया सफल नहीं होगा बल्कि इसके लिए एक संतुलित नीति का होना बहुत जरूरी है. राजदूत हरीश ने कहा, 'सिर्फ सजा पर आधारित नीति, हमारे अनुसार, सफल नहीं हो सकती. संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने कई संघर्षों के बाद अधिक संतुलित और सूक्ष्म दृष्टिकोण अपनाए हैं.'
तालिबान से सहयोग की अपील
भारत की तरफ से प्रस्ताव में तालिबान से अपील की गई है कि वह इच्छुक साझेदारों के साथ सहयोग की व्यवस्था बनाए और उनके अनुभव का लाभ उठाए. साथ ही यह भी कहा गया है कि अफगानिस्तान, मध्य और दक्षिण एशिया को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक केंद्र बन सकता है, और उसकी अर्थव्यवस्था में स्थिरता और विकास के लिए क्षेत्रीय सहयोग बेहद जरूरी है. राजदूत हरीश ने अफगानिस्तान में भारत की प्राथमिकताओं का जिक्र करते हुए कहा कि भारत ने मानवीय सहायता के साथ-साथ अफगान नागरिकों के कौशल विकास में भी भागीदारी निभाई है.
उन्होंने बताया कि भारत ने अगस्त 2021 के बाद से अब तक अफगानिस्तान को करीब 50,000 मीट्रिक टन गेहूं, 330 मीट्रिक टन दवाएं और वैक्सीन, 40,000 लीटर मलेथियॉन कीटनाशक और बाकी जरूरी वस्तुएं भेजी हैं. इसके अलावा, नशीली दवाओं के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम (UNODC) के तहत भारत ने 84 मीट्रिक टन दवाएं और 32 मीट्रिक टन सामाजिक सहायता सामग्री भेजी हैं, खासकर महिलाओं के पुनर्वास के लिए.
600 से ज्यादा अफगान छात्राएं भारत में पढ़ रही हैं. भारत ने 2023 से अब तक 2,000 अफगान छात्रों को ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्सेज के लिए स्कॉलरशिप्स दी हैं. इनमें करीब 600 लड़कियां और महिलाएं शामिल हैं. अंत में, हरीश ने दोहराया कि अफगान जनता के साथ भारत के ऐतिहासिक रिश्ते रहे हैं और भारत उनकी मानवीय और विकासात्मक जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है.
इशारों-इशारों में पाकिस्तान का जिक्र
भारत अफगानिस्तान की सुरक्षा स्थिति पर नजर बनाए हुए है. भारत ने इस बात पर जोर दिया कि अफगानिस्तान की सुरक्षा स्थिति पर उसकी कड़ी नजर है. हरीश ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तरफ नॉमिनेट किए गए आतंकी संगठनों, अल-कायदा, आईएसआईएल, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और इनके क्षेत्रीय साझेदार, अफगानिस्तान की जमीन का प्रयोग आतंकी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल न कर सकें. भारत ने नाम नहीं लिया लेकिन साफ था कि उसका इशारा पाकिस्तान की तरफ था.
कई देशों की सराहना
भारत की तरफ से इस प्रस्ताप में अफगानिस्तान के लोगों के कल्याण के क्षेत्रीय सहयोग की अहमियत भी बताई. इसमें भारत, ईरान और तुर्किये जैसे देशों की तरफ से अफगान छात्रों को दी जा रही शिक्षा सुविधाओं की भी जमकर तारीफ की गई. वहीं भारत ने इसके अलावा, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान की तरफ से उच्च शिक्षा में सहयोग के क्षेत्रीय कार्यक्रमों का भी जिक्र किया गया. भारत ने कहा कि ये प्रयास क्षेत्रीय एकजुटता और अफगानिस्तान के भविष्य में निवेश का उदाहरण हैं.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं