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15 अगस्त का दिन, टक्कर में थी शोले, कम बजट फिर भी 45 हफ्ते तक सिनेमाघर से नहीं उतरी ये फिल्म
- Friday August 15, 2025
- Edited by: रोज़ी पंवार
15 अगस्त हमारी आजादी का दिन. ऐसे में देश के साथ ही फिल्म इंडस्ट्री के लिए भी ये दिन बेहद खास है. भारतीय सिनेमा के इतिहास में ये दिन इसलिए भी अमर है कि 1975 में दो अलग-अलग जॉनर की फिल्मों ने सिनेमाघरों में दस्तक दी थी.
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1975 में रिलीज हुई इस धार्मिक फिल्म ने शोले की राह में अटकाए रोड़े, सिनेमाघरों में मनाई गोल्डन जुबली
- Friday August 15, 2025
- Edited by: आनंद कश्यप
In 1975 Sholay get tough competition : 1975 का साल बॉलीवुड के लिए ऐतिहासिक माना जाता है. इसी साल रिलीज हुई थी ‘शोले', जिसे आज भी सबसे बड़ी फिल्मों में गिना जाता है. लेकिन इसी साल एक और फिल्म आई जिसने अपनी धार्मिक और भावनात्मक कहानी से दर्शकों का दिल जीत लिया.
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सिनेमाघरों में शुरू होने से पहले इस फिल्म ही होती थी पूजा, चप्पल उतारकर देखते थे दर्शक, ना ये आदिपुरुष ना ही रामायण
- Friday July 4, 2025
- Written by: आनंद कश्यप
हॉल के अंदर, कई महिलाएं अपनी चप्पलें उतार देती थीं. कुछ तो नंगे पांव ही थीं. वे स्क्रीन पर चल रही कहानी को श्रद्धा और आश्चर्य के साथ देखती थीं, जैसे वे किसी सत्संग में शामिल हों.
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15 अगस्त का दिन, टक्कर में थी शोले, कम बजट फिर भी 45 हफ्ते तक सिनेमाघर से नहीं उतरी ये फिल्म
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- Edited by: रोज़ी पंवार
15 अगस्त हमारी आजादी का दिन. ऐसे में देश के साथ ही फिल्म इंडस्ट्री के लिए भी ये दिन बेहद खास है. भारतीय सिनेमा के इतिहास में ये दिन इसलिए भी अमर है कि 1975 में दो अलग-अलग जॉनर की फिल्मों ने सिनेमाघरों में दस्तक दी थी.
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1975 में रिलीज हुई इस धार्मिक फिल्म ने शोले की राह में अटकाए रोड़े, सिनेमाघरों में मनाई गोल्डन जुबली
- Friday August 15, 2025
- Edited by: आनंद कश्यप
In 1975 Sholay get tough competition : 1975 का साल बॉलीवुड के लिए ऐतिहासिक माना जाता है. इसी साल रिलीज हुई थी ‘शोले', जिसे आज भी सबसे बड़ी फिल्मों में गिना जाता है. लेकिन इसी साल एक और फिल्म आई जिसने अपनी धार्मिक और भावनात्मक कहानी से दर्शकों का दिल जीत लिया.
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सिनेमाघरों में शुरू होने से पहले इस फिल्म ही होती थी पूजा, चप्पल उतारकर देखते थे दर्शक, ना ये आदिपुरुष ना ही रामायण
- Friday July 4, 2025
- Written by: आनंद कश्यप
हॉल के अंदर, कई महिलाएं अपनी चप्पलें उतार देती थीं. कुछ तो नंगे पांव ही थीं. वे स्क्रीन पर चल रही कहानी को श्रद्धा और आश्चर्य के साथ देखती थीं, जैसे वे किसी सत्संग में शामिल हों.
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