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'भारत में जो कुछ हो रहा है, उसपर US ने चुप्पी साध रखी है'- लोकतंत्र पर बोले राहुल गांधी
- Saturday April 3, 2021
- Reported by: सुनील प्रभु, Translated by: तूलिका कुशवाहा
राहुल शुक्रवार को पूर्व में भारत में अमेरिका के राजदूत रहे निकोलस बर्न्स के साथ एक ऑनलाइन बातचीत में हिस्सा ले रहे थे. 'चीन और रूस की ओर से पेश किए जा रहे कठोर विचारों के खिलाफ लोकतंत्र के विचार' पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने कहा, 'भारत में जो कुछ भी हो रहा है, उसपर यूएस की सत्ता से कुछ भी सुनने को नहीं मिलता है.'
- ndtv.in
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आप प्रधानमंत्री की जगह होते तो क्या करते? राहुल गांधी ने दिया ये जवाब
- Saturday April 3, 2021
- Edited by: सिद्धार्थ चौरसिया
कोरोना संकट और लॉकडाउन के असर पर कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘ मैंने लॉकडाउन की शुरुआत में कहा था कि शक्ति का विकेंद्रीकरण किया जाए... लेकिन कुछ महीने बाद केंद्र सरकार की समझ में आया, तब तक नुकसान हो चुका था.’’ अर्थव्यवस्था को गति देने के उपाय से जुड़े सवाल पर कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘अब सिर्फ एक ही विकल्प है कि लोगों के हाथों में पैसे दिए जाएं. इसके लिए हमारे पास ‘न्याय’ का विचार है.’’ उन्होंने चीन के बढ़ते वर्चस्व की चुनौती के बारे में पूछे जाने पर कहा कि भारत और अमेरिका जैसे देश लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ ही समृद्धि और विनिर्माण क्षेत्र के विकास से बीजिंग की चुनौती से निपट सकते हैं.
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'भारत में जो कुछ हो रहा है, उसपर US ने चुप्पी साध रखी है'- लोकतंत्र पर बोले राहुल गांधी
- Saturday April 3, 2021
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राहुल शुक्रवार को पूर्व में भारत में अमेरिका के राजदूत रहे निकोलस बर्न्स के साथ एक ऑनलाइन बातचीत में हिस्सा ले रहे थे. 'चीन और रूस की ओर से पेश किए जा रहे कठोर विचारों के खिलाफ लोकतंत्र के विचार' पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने कहा, 'भारत में जो कुछ भी हो रहा है, उसपर यूएस की सत्ता से कुछ भी सुनने को नहीं मिलता है.'
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- Saturday April 3, 2021
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कोरोना संकट और लॉकडाउन के असर पर कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘ मैंने लॉकडाउन की शुरुआत में कहा था कि शक्ति का विकेंद्रीकरण किया जाए... लेकिन कुछ महीने बाद केंद्र सरकार की समझ में आया, तब तक नुकसान हो चुका था.’’ अर्थव्यवस्था को गति देने के उपाय से जुड़े सवाल पर कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘अब सिर्फ एक ही विकल्प है कि लोगों के हाथों में पैसे दिए जाएं. इसके लिए हमारे पास ‘न्याय’ का विचार है.’’ उन्होंने चीन के बढ़ते वर्चस्व की चुनौती के बारे में पूछे जाने पर कहा कि भारत और अमेरिका जैसे देश लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ ही समृद्धि और विनिर्माण क्षेत्र के विकास से बीजिंग की चुनौती से निपट सकते हैं.
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