'Ethics in politics'

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  • Blogs | रवीश कुमार |मंगलवार मार्च 14, 2017 10:23 PM IST
    भारतीय राजनीति में सब कुछ है बस एक तराजू नहीं है, जिस पर आप नैतिकता तौल सकें. चुनाव बाद की कोई नैतिकता नहीं होती है. राज्यपाल के बारे में संविधान की जितनी धाराएं और उनकी व्याख्याएं रट लें, व्यवहार में राज्यपाल सबसे पहले अपनी पार्टी के हित की रक्षा करते हैं. यही हम कई सालों से देख रहे हैं, यही हम कई सालों तक देखेंगे. राज्यपालों ने संविधान की भावना और आत्मा से खिलवाड़ न किया होता तो कर्नाटक, बिहार, अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड के मामले में अदालत को राज्यपाल के फैसले पलटने नहीं पड़ते. उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को जब चुनौती दी गई तब उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा था लोग गलत फैसले ले सकते हैं चाहे वे राष्ट्रपति हों या जज. ये कोई राजा का फैसला नहीं है जिसकी न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती है.
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