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जलवायु परिवर्तन ने हिमाचल प्रदेश में सेब के उत्पादन को कैसे किया बुरी तरह प्रभावित

हिमाचल प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 5 फीसदी से अधिक का योगदान देने वाला सेब व्यापार 2023 में जलवायु परिस्थितियों से बुरी तरह प्रभावित रहा.

Jan 10, 2024 09:22 IST
  • जलवायु परिवर्तन ने हिमाचल प्रदेश में सेब के उत्पादन को कैसे किया बुरी तरह प्रभावित
    पिछले साल मार्च और अगस्त के बीच हिमाचल प्रदेश में बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने से भारी नुकसान देखने को मिला. इससे न केवल घर, कार और सड़क बल्कि राज्य के सेब उत्पादन को भी बुरी तरह नुकसान हुआ. राज्य का सेब व्यापार इसके कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 5 फीसदी से अधिक है. लेकिन इस साल बारिश के कारण हुई तबाही से सेब का उत्पादन सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ.
  • जलवायु परिवर्तन ने हिमाचल प्रदेश में सेब के उत्पादन को कैसे किया बुरी तरह प्रभावित
    सेब के उत्पादन में गिरावट सीधे तौर पर मौसम के बिगड़े मिजाज के कारण देखने को मिली, जिसे राज्य ने 2023 में देखा. भारी बारिश ग्लोबल वार्मिंग का एक अपेक्षित नतीजा है.
  • जलवायु परिवर्तन ने हिमाचल प्रदेश में सेब के उत्पादन को कैसे किया बुरी तरह प्रभावित
    सेब एक समशीतोष्ण (Temperate) फसल है, जिसे ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है. इसकी अच्छी उपज काफी हद तक मानसून और बर्फबारी पर निर्भर रहती है. हालांकि, 2023 में इसे दोहरी मार झेलनी पड़ी. क्योंकि सर्दियों के मौसम में बहुत कम या न के बराबर बर्फबारी हुई. इसके बाद फूल आने के समय बारिश हो गई. जबकि फलों पूरी तरह से विकसित होने के बाद ओले पड़ने और भूस्खलन के चलते फसल बर्बाद हो गई.
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    सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की 'भारत 2023: चरम मौसम की घटनाओं का आकलन' संबंधी रिपोर्ट के अनुसार 1 जनवरी से 30 सितंबर, 2023 के बीच हिमाचल प्रदेश में 75,760 हेक्टेयर फसल को नुकसान पहुंचा.
  • जलवायु परिवर्तन ने हिमाचल प्रदेश में सेब के उत्पादन को कैसे किया बुरी तरह प्रभावित
    हिमाचल प्रदेश में शिमला के तीसरी पीढ़ी के सेब उत्पादक प्रणव रावत ने बताया कि राज्य में सेब उत्पादक अब कम ऊंचाई वाले सेब के पेड़ों की ओर शिफ्ट हो रहे हैं, जो प्लानटेशन के दो से तीन साल बाद फल देते हैं.
  • जलवायु परिवर्तन ने हिमाचल प्रदेश में सेब के उत्पादन को कैसे किया बुरी तरह प्रभावित
    रावत का मानना है कि यह सब कुछ इंसानी लालच के चलते जंगलों को काटे जाने का नतीजा है. पहले की तरह बारिश और बर्फबारी के लिए वह फिर से जंगल लगाने का सुझाव देते हैं.
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    दूसरी ओर, कोतगढ़ गांव के एक 86 वर्षीय अनुभवी किसान हरि चंद रोच ने कहा कि कम ठंड में पनपने वाली किस्मों को उगाना इस समस्या का एक उपाय है. इसके अलावा फलों के पेड़ की ग्रोथ के लिए डालों की ग्राफ्टिंग करने का तरीका भी अपनाया जा रहा है. क्योंकि इस प्रक्रिया से लगभग आधे समय में फल पककर तैयार हो जाते हैं. लेकिन रोच अधिकतम उपज के लिए ठंडे तापमान और धूप की आवश्यकता पर जोर देते हैं.
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